Home   »   Crisis in Sri Lanka   »   Sri Lanka Crisis

संपादकीय विश्लेषण- द अपराइजिंग

श्रीलंकाई संकट- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 2: अंतर्राष्ट्रीय संबंध– भारत के हितों पर विकसित एवं विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव।

संपादकीय विश्लेषण- द अपराइजिंग_3.1

 समाचारों में श्रीलंकाई संकट

  • जनता का क्रोध श्रीलंका में महत्वपूर्ण बदलाव का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। द्वीपीय राष्ट्र की आर्थिक स्थिति में त्वरित गिरावट के विरुद्ध जारी विरोध प्रदर्शन चरम पर पहुंच गए हैं।

 

श्रीलंकाई संकट- हालिया घटनाक्रम

  • राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के सचिवालय पर हजारों लोगों ने कब्जा कर लिया तथा उनके आधिकारिक आवास पर उग्र प्रदर्शनकारियों का कब्जा हो गया।
  • प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के निजी आवास को भी आग के हवाले कर दिया गया।
  • श्रीलंका के राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री दोनों ने अपने-अपने पदों से त्यागपत्र देने की इच्छा व्यक्त की है।
  • एक वैकल्पिक सर्वदलीय सरकार श्रीलंका के मामलों को संभालने हेतु अस्तित्व में आई है जैसा कि हाल ही में श्रीलंका की लोकसभा अध्यक्ष की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक में चर्चा की गई थी।
  • वर्तमान अध्यक्ष, महिंदा यापा अभयवर्धने, राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार ग्रहण कर चुके हैं, ताकि 30 दिनों के भीतर, संसद गुप्त मतदान द्वारा एक नए राष्ट्रपति का निर्वाचन कर सके।
    • देश के संविधान के तहत, प्रधानमंत्री एवं संसद के अध्यक्ष सर्वोच्च पद के रिक्त होने पर राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार ग्रहण करने हेतु कतार में हैं।
    • हालाँकि, ये कदम वास्तव में मूर्त रूप में आने वाले त्यागपत्र पर निर्भर होंगे।

 

श्रीलंकाई संकट- संबद्ध चिंताएं

  • विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त
    • 2019 के अंत में, श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा भंडार में 7.6 बिलियन डॉलर (5.8 बिलियन पाउंड) था। मार्च 2020 तक यह गिरकर 1.93 बिलियन डॉलर (1.5 बिलियन पाउंड) हो गया था एवं हाल ही में सरकार ने कहा था कि उसके पास मात्र 50 मिलियन डॉलर (40.5 मिलियन पाउंड) ही शेष बचा है।
    • कुछ विदेशी सहायता के आने एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड/आईएमएफ) के लिए एक प्रक्रिया प्रारंभ होने के बावजूद, लोगों, विशेष रूप से निर्धनों एवं कमजोर लोगों के लिए कोई महत्वपूर्ण राहत नहीं मिली है।
  • वैकल्पिक सरकार की स्थिरता: चिंता यह है कि क्या राजनीतिक वर्ग अपने मतभेदों से ऊपर उठ सकता है तथा एक वैकल्पिक शासन स्थापित कर सकता है जो देश को आर्थिक सुधार की ओर ले जा सकता है।

संपादकीय विश्लेषण- द अपराइजिंग_4.1

श्रीलंकाई संकट-निष्कर्ष

  • दो मुख्य पदों के अधिभोगियों को अपने निर्णय शीघ्रता से करने होंगे ताकि देश का एक स्थिर शासन में परिवर्तन आसान हो सके।
  • यह तर्क दिया जा सकता है कि मात्र शासन परिवर्तन से किसी को लाभ नहीं हो सकता है, जनता को शांत करने के अतिरिक्त और कुछ हासिल नहीं होगा एवं लोगों के आर्थिक संकट को कम नहीं करेगा।

 

भारत में तंबाकू की खेती  आईटी अधिनियम की धारा 69 ए जी-20 के विदेश मंत्रियों की बैठक 2022 राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम
मिशन वात्सल्य योजना लैंगिक बजटिंग अधिनियम संपादकीय विश्लेषण- बीटिंग द हीट रोहिणी आयोग को 13वां विस्तार मिला
संपादकीय विश्लेषण- रुपये की गिरावट का अर्थ समझना ब्रिक्स के संचार मंत्रियों की बैठक 2022 उष्ण कटिबंध पर ओजोन का क्षरण  अंतरिक्ष स्थिरता हेतु सम्मेलन 2022 

Sharing is caring!