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चलंत पशु चिकित्सा इकाई (एमवीयू): प्रासंगिकता
- जीएस 3: पशु-पालन का अर्थशास्त्र।

चलंत पशु चिकित्सा इकाई (एमवीयू): प्रसंग
- 20वीं पशुधन जनगणना के अनुसार, भारत की कुल पशुधन आबादी लगभग 537 मिलियन है। कुल पशुओं की आबादी में से लगभग 96% ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्रित है।
पशु चिकित्सा सेवाओं का मुद्दा
- एम.के. जैन समिति की रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि पशुपालक किसानों को पारंपरिक कृषि कार्य करने वाले किसानों की तुलना में, विशेष रूप से ऋण एवं पशुधन बीमा तक पहुँचने में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- हमारे देश के ग्रामीण एवं सुदूरवर्ती क्षेत्रों में पशु चिकित्सा सेवाओं तक पहुंच एक व्यापक चुनौती है।
- पशुपालकों को प्रायः, जब भी उनके पशुओं को उपचार की आवश्यकता होती है, उन्हें अपने गांवों से दूर जाने के लिए बाध्य होना पड़ता है।
- यह उनके पशुधन की दीर्घायु एवं उत्पादकता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है।
सरकार का फोकस
- सरकार ने पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण (एलएच एंड डीसी) कार्यक्रम के प्रावधानों को संशोधित किया है जहां ‘पशु चिकित्सा सेवाओं की स्थापना एवं सुदृढ़ीकरण – चलंत पशु चिकित्सा इकाइयों (एमवीयू)’ पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- इससे पहले, सरकार कृत्रिम गर्भाधान एवं पशुओं के टीकाकरण से संबंधित सेवाएं घर-घर प्रदान कर रही थी।
- एमवीयू डोरस्टेप डिलीवरी मॉडल का निर्माण करेंगे, क्योंकि अधिकांश पशुपालक स्थायी अस्पतालों तक सुगमता से नहीं पहुंच सकते हैं।
चलंत पशु चिकित्सा इकाइयों (एमवीयू)- के लाभ
परीक्षण सुविधा के मुद्दे को हल करना
- एक संसदीय स्थायी समिति ने पाया है कि पशु चिकित्सा रोगों के लिए अपर्याप्त परीक्षण एवं उपचार सुविधाएं एक व्यापक चुनौती है, विशेष रूप से अब जहां पशुजन्य (जूनोटिक) रोगों के मामलों में भारी वृद्धि हुई है।
- देश के अधिकांश गांवों में परीक्षण सुविधाओं का अभाव है एवं यहां तक कि जब नमूने एकत्र किए जाते हैं, तब भी उन्हें परीक्षण के परिणाम के लिए पास के प्रखंड/जिलों में भेजने की आवश्यकता होती है।
- अतः, एमवीयू इस संदर्भ में अंतराल को पाटने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।
एंटीबायोटिक की प्रतिरोधकता को कम करना
- प्रतिसूक्ष्मजीवी (रोगाणुरोधी) प्रतिरोध से संबंधित समस्याएं तब उत्पन्न होती हैं जब जानवर उस दवा के प्रति प्रतिक्रिया नहीं करता है जिसके प्रति वह मूल रूप से प्रतिक्रियाशील था।
- एमवीयू मॉडल रोगाणुरोधी प्रतिरोध के मुद्दे को कम करेगा एवं डब्ल्यूएचओ की वैश्विक कार्य योजना द्वारा निर्धारित ‘वन हेल्थ विजन’ के अनुरूप है।
दुग्ध की हानि को कम करना
- भारत की दुग्ध आपूर्ति का 70% उन किसानों से प्राप्त होती है जिनके पास पांच से कम पशु हैं एवं अकेले स्तनशोथ/थनैला रोग (मैस्टाइटिस) के कारण होने वाली हानि से प्रत्येक दुग्ध उत्पादक फार्म लगभग 10 लीटर प्रतिदिन दुग्ध की हानि होती है।
- बोवाइन मास्टिटिस एक ऐसी स्थिति है जो या तो शारीरिक आघात या सूक्ष्मजीवों के कारण होने वाले संक्रमण के कारण थन ऊतक की लगातार एवं शोथ (इन्फ्लेमेटरी) प्रतिक्रिया से प्रकट होती है।
- हानि मोटे तौर पर 300 रुपए-350 रुपए प्रति दिन में परिवर्तित हो जाती है।
- अतः, अधिकांश किसानों के लिए, पशुओं की मृत्यु अथवा रोग का अर्थ आजीविका एवं भुखमरी के मध्य का अंतर हो सकता है।
- एमवीयू अनेक राज्यों में, विशेष रुप से भौगोलिक दृष्टि से दुर्गम क्षेत्रों में सकारात्मक परिणाम एवं वर्धित पहुंच के साथ सफल रहे हैं।
रोजगार प्रदान करना
- देश भर में एमवीयू को अपनाने से पशु चिकित्सकों एवं सहायकों के लिए रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी।



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