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लोक प्रशासन का कार्य-क्षेत्र

लोक प्रशासन- प्रासंगिकता ईएसआईसी उप निदेशक परीक्षा

  • भर्ती परीक्षा (आरटी) का भाग-बी: लोक प्रशासन एवं विकास के मुद्दे।

लोक प्रशासन का कार्य-क्षेत्र_3.1

 

लोक प्रशासन- परिभाषा

  • लोक प्रशासन को परिभाषित करना:
    • लोक प्रशासन दो अलग-अलग शब्दों- लोक एवं प्रशासन से निर्मित हुआ है।
    • लोक: का अर्थ है सरकार जो मुख्य रूप से सरकारी क्रियाकलापों एवं कार्यों पर ध्यान केंद्रित करती है
    • प्रशासन: एक लैटिन शब्द “एडमिनिस्टर” से लिया गया है जिसका अर्थ है लोगों की सेवा करना, निर्देशित करना, नियंत्रण करना, ख्याल रखना या उनकी देखभाल करना। “प्रशासन” शब्द का अर्थ सार्वजनिक अथवा निजी मामलों का प्रबंधन है।
    • अतः, मात्र लोक प्रशासन को लोक मामलों के प्रबंधन के रूप में जाना जाता है।
  • लोक प्रशासन ‘कार्रवाई में सरकार’ के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है। लोक प्रशासन कार्यपालिका की क्रियान्वयन शाखा है।
    • लोक प्रशासन सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन हेतु उत्तरदायी है।
  • लोक प्रशासन सभी राष्ट्रों की एक विशेषता है, चाहे उनकी सरकार की प्रणाली कुछ भी हो।
    • राष्ट्रों के भीतर केंद्रीय, मध्यवर्ती एवं स्थानीय स्तरों पर लोक प्रशासन का उद्यम किया जाता है।
    • एक राष्ट्र के भीतर सरकार के विभिन्न स्तरों के मध्य संबंध लोक प्रशासन के लिए एक बढ़ती हुई समस्या का निर्माण करती है।

 

लोक प्रशासन का कार्य क्षेत्र- पोस्डकॉर्ब (POSDCoRB)  दृष्टिकोण 

  • पोस्डकॉर्ब (POSDCoRB) विचारधारा का मानना ​​है कि लोक प्रशासन का विस्तार क्षेत्र प्रत्येक संगठन के लिए समान है चाहे वह सार्वजनिक हो अथवा निजी।
  • यह मानता है कि लोक प्रशासन संगठन के भीतर विभिन्न प्रबंधकीय प्रक्रियाओं एवं तकनीकों जैसे योजना, आयोजन, समन्वय इत्यादि से संबंधित है।
  • इस विधा के मुख्य प्रस्तावक, लूथर गुलिक ने प्रतिपादित किया कि लोक प्रशासन के विस्तार-क्षेत्र को पोस्डकॉर्ब (POSDCoRB)  गतिविधियों के माध्यम से परिभाषित किया जा सकता है।
  • ये पोस्डकॉर्ब (POSDCoRB) गतिविधियां हैं-
  1. योजना (पी / प्लानिंग)- उन चीजों की व्यापक रूपरेखा तैयार करना जिन्हें संपादित करने की आवश्यकता है।
  2. संगठन ( ओ / ऑर्गेनाइजेशन)- प्राधिकरण की औपचारिक संरचना की स्थापना जिसके माध्यम से परिभाषित उद्देश्य के लिए कार्य वितरित, व्यवस्थित एवं समन्वयित किया जाता है।
  3. कार्मिक व्यवस्था (एस / स्टाफिंग)- कर्मचारियों की भर्ती एवं प्रशिक्षणतथा कर्मचारियों के लिए कार्य की अनुकूल दशाओं के अनुरक्षण से संबंधित।
  4. निर्देशन (डी / डायरेक्टिंग)- यह निर्णय निर्माण एवं उन्हें विशिष्ट तथा सामान्य आदेशों  एवं निर्देशों के रूप में निर्देशित करने  तथा इस प्रकार उद्यम का मार्गदर्शन करने का निरंतर कार्य है।
  5. समन्वय (सीओ / कोआर्डिनेशन)- संगठन के विभिन्न भागों जैसे शाखाओं, प्रभागों इत्यादि को आपस में अंतर्संबंधित करना। इसका उद्देश्य संगठन के भीतर दोहराव (अतिव्याप्ति) को समाप्त करना है।
  6. प्रतिवेदन (आर / रिपोर्टिंग) – यह उस प्राधिकारी को सूचित करने के बारे में है जिसके प्रति कार्यपालिका उत्तरदायी है कि संगठन में क्या हो रहा है।
  7. बजट बनाना (बी / बजटिंग)- यह लेखांकन, राजकोषीय योजना निर्माण एवं नियंत्रण के बारे में है। यह मूल रूप से अपनी विभिन्न शाखाओं, प्रभागों एवं उपखंडों के मध्य संगठनात्मक संसाधनों का आवंटन है।

लोक प्रशासन के सिद्धांत- व्यापक दृष्टिकोण परिप्रेक्ष्य

लोक प्रशासन का कार्य क्षेत्र- विषय वस्तु दृष्टिकोण

  • विषय-वस्तु दृष्टिकोण के समर्थकों का मानना ​​है कि लोक प्रशासन के क्रियाकलाप मात्र विभिन्न प्रक्रियाओं (पोस्डकॉर्ब दृष्टिकोण) तक ही सीमित नहीं हैं, यह प्रशासन के मूलभूत मामलों जैसे रक्षा, विधि एवं व्यवस्था, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, न्याय, कल्याण,  पर्यावरण, आदि से भी संबंधित हैं।
  • प्रशासन के इन मूल पहलुओं के लिए न केवल सामान्य प्रबंधकीय तकनीकों की आवश्यकता होती है, बल्कि उनके स्वयं के विशेष कौशल की आवश्यकता होती है जो पोस्डकॉर्ब दृष्टिकोण से कवर नहीं होते हैं।
  • उदाहरण के लिए:
    • पुलिस प्रशासन : यहाँ अपराध का पता लगाने, कानून व्यवस्था बनाए रखने, अपराधों की रोकथाम इत्यादि की इसकी तकनीक एक प्रभावी एवं कुशल पुलिस प्रशासन सुनिश्चित करने में अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
    • दूसरी ओर, कार्मिक प्रबंधन, पदानुक्रम, समन्वय, वित्त,  इत्यादि जैसे संगठनों के औपचारिक सिद्धांत प्रत्येक प्रकार के प्रशासन के लिए समान हैं।

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