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लोक प्रशासन में सिद्धांतकारों के विभिन्न विधाएं- संकीर्ण दृष्टिकोण सिद्धांतकार

लोक प्रशासन- प्रासंगिकता ईएसआईसी उप निदेशक परीक्षा

  • भर्ती परीक्षा (आरटी) का भाग-बी: लोक प्रशासन एवं विकास के मुद्दे।

लोक प्रशासन- परिभाषा

  • लोक प्रशासन ‘कार्रवाई में सरकार’ के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है। लोक प्रशासन कार्यपालिका की क्रियान्वयन शाखा है।
    • लोक प्रशासन सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन हेतु उत्तरदायी है।
  • लोक प्रशासन सभी राष्ट्रों की एक विशेषता है, चाहे उनकी सरकार की प्रणाली कुछ भी हो।
    • राष्ट्रों के भीतर केंद्रीय, मध्यवर्ती एवं स्थानीय स्तरों पर लोक प्रशासन का उद्यम किया जाता है।
    • एक राष्ट्र के भीतर सरकार के विभिन्न स्तरों के मध्य संबंध लोक प्रशासन के लिए एक बढ़ती हुई समस्या का निर्माण करती है।

लोक प्रशासन में सिद्धांतकारों के विभिन्न विधाएं- संकीर्ण दृष्टिकोण सिद्धांतकार_3.1

 

लोक प्रशासन में परिप्रेक्ष्य

  • सिद्धांतकारों के विभिन्न शाखाओं ने लोक प्रशासन के क्षेत्र को एक दूसरे से भिन्न विषय के रूप में परिभाषित किया है।
  • उन्होंने लोक प्रशासन एवं उसके कार्यात्मक क्षेत्रों की अपनी परिभाषा एवं समझ के अनुसार इस विधा के कार्यक्षेत्र का निर्माण किया।
  • इस संदर्भ में, आज हम लोक प्रशासन में संकीर्ण दृष्टिकोण के परिप्रेक्ष्य पर चर्चा करेंगे।

 

लोक प्रशासन- संकीर्ण दृष्टिकोण सिद्धांतकार

  • लूथर गुलिक इस दृष्टिकोण के प्रमुख प्रतिपादक हैं। उनका मानना ​​है कि लोक प्रशासन केवल राज्य की कार्यकारी शाखा तक ही सीमित है।
    • हर्बर्ट साइमन, विलोबी, फेयोल, आर्डवे टीड, इत्यादि सिद्धांतकार लोक प्रशासन के संकीर्ण दृष्टिकोण के अन्य प्रमुख प्रस्तावक हैं।
  • इसे पोस्डकॉर्ब दृष्टिकोण के रूप में भी माना जाता है। यह मानता है कि लोक प्रशासन प्रशासन के केवल उन पहलुओं से संबंधित है जो कार्यकारी शाखा एवं उसके सात प्रकार के प्रशासनिक कार्यों से संबंधित हैं।
  • ये सात पोस्डकॉर्ब (POSDCoRB) हैं-
  1. योजना (प्लानिंग)- उन चीजों की व्यापक रूपरेखा तैयार करना जिन्हें संपादित करने की आवश्यकता है।
  2. संगठन (ऑर्गेनाइजेशन)- प्राधिकरण की औपचारिक संरचना की स्थापना जिसके माध्यम से परिभाषित उद्देश्य के लिए कार्य वितरित, व्यवस्थित एवं समन्वयित किया जाता है।
  3. कार्मिक व्यवस्था (स्टाफिंग)- कर्मचारियों की भर्ती एवं प्रशिक्षण तथा कर्मचारियों के लिएकार्य की अनुकूल दशाओं के अनुरक्षण से संबंधित।
  4. निर्देशन (डायरेक्टिंग)- यहनिर्णय निर्माण एवं उन्हें विशिष्ट तथा सामान्य आदेशों एवं निर्देशों के रूप में निर्देशित करने तथा इस प्रकार उद्यम का मार्गदर्शन करने का निरंतर कार्य है।
  5. समन्वय (कोआर्डिनेशन)- संगठन के विभिन्न भागों जैसे शाखाओं, प्रभागोंइत्यादि को आपस में अंतर्संबंधित करना। इसका उद्देश्य संगठन के भीतर दोहराव (अतिव्याप्ति) को समाप्त करना है।
  6. प्रतिवेदन (रिपोर्टिंग) – यह उस प्राधिकारी को सूचित करने के बारे में है जिसके प्रति कार्यपालिका उत्तरदायी है कि संगठन मेंक्या हो रहा है।
  7. बजट बनाना (बजटिंग)- यह लेखांकन, राजकोषीय योजना निर्माण एवं नियंत्रण के बारे में है। यह मूल रूप से अपनी विभिन्न शाखाओं, प्रभागों एवं उपखंडों के मध्य संगठनात्मक संसाधनों का आवंटन है।

 

  • मुख्य विशेषताएं:
    • यह लोक प्रशासन का एक सीमित एवं संकीर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
    • प्रशासन के सार के स्थान पर लोक प्रशासन के साधनों पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है।
    • यह एक विषय-उन्मुख परिप्रेक्ष्य होने के स्थान पर एक तकनीक-उन्मुख परिप्रेक्ष्य है।

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