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जलवायु परिवर्तन प्रबंधन में नेतृत्व: प्रासंगिकता
- जीएस 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन।
जलवायु परिवर्तन प्रबंधन में नेतृत्व: प्रसंग
- हाल ही में, आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने भारत में शहरी पेशेवरों के चैंपियन जलवायु कार्रवाई में सहायता प्रदान करने हेतु जलवायु परिवर्तन प्रबंधन कार्यक्रम में नेतृत्वकर्ता (लीडर्स इन क्लाइमेट चेंज मैनेजमेंट प्रोग्राम) की शुरुआत की है।
जलवायु परिवर्तन प्रबंधन में नेतृत्व: प्रमुख बिंदु
- लीडर्स इन क्लाइमेट चेंज मैनेजमेंट (LCCM) एक अभ्यास-आधारित शिक्षण कार्यक्रम है जिसे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स (NIUA) और वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (WRI) इंडिया द्वारा विमोचित किया गया है।
- इसका उद्देश्य भारत में सभी क्षेत्रों और भौगोलिक क्षेत्रों में जलवायु कार्रवाई का नेतृत्व करने के लिए शहरी पेशेवरों के बीच क्षमता निर्माण करना है। इस मुखाभिमुख (आमने-सामने) अधिगम कार्यक्रम को सुविधाजनक बनाने के लिए, प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान (एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रेंनिंग इंस्टीट्यूट/एटीआई), मैसूर ने एनआईयूए तथा डब्ल्यूआरआई इंडिया के साथ एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर भी हस्ताक्षर किए, जो एलसीसीएम कार्यक्रम का पहला वितरण भागीदार बन गया।
- एलसीसीएम का लक्ष्य 5,000 पेशेवरों को सक्षम बनाना है, जिनमें मध्य से कनिष्ठ स्तर के सरकारी अधिकारी एवं फ्रंटलाइन कार्यकर्ता शामिल हैं तथा उन्हें भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने के लिए समन्वित प्रयास की दिशा में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन समाधान के लिए तैयार करना है।
जलवायु परिवर्तन प्रबंधन (एलसीसीएम) में नेतृत्वकर्ताओं के बारे में
- लीडर्स इन क्लाइमेट चेंज मैनेजमेंट एक क्षमता-निर्माण कार्यक्रम है जो सभी क्षेत्रों एवं भौगोलिक क्षेत्रों में चैंपियन तथा जलवायु कार्रवाई का नेतृत्व करने के लिए नेतृत्वकर्ताओं का एक समूह निर्मित करने का प्रयास करता है।
- कार्यक्रम को राष्ट्रीय शहरी मामलों के संस्थान (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स/एनआईयूए), विश्व संसाधन संस्थान (वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट/डब्ल्यूआरआई) – भारत, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनाइटेड नेशंस इन एनवायरमेंट प्रोग्राम/यूएनईपी) तथा इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी) जैसे प्रमुख भागीदारों के माध्यम से अभिकल्पित एवं कार्यान्वित किया गया है।
- एलसीसीएम शहरी अभ्यासकर्ताओं के लिए एक मिश्रित शिक्षण कार्यक्रम है जो प्रभावी जलवायु कार्रवाई प्रदान करने हेतु कौशल बढ़ाने तथा स्वयं को तैयार करने की तलाश में है।
- कार्यक्रम के चार चरण हैं: पहला चरण- एक ऑनलाइन शिक्षण मॉड्यूल है जिसे आठ सप्ताह में पूरा किया जा सकता है; अगले चरण में चार से छह दिनों तक चलने वाले मुखाभिमुख (आमने-सामने) सत्र सम्मिलित हैं; तीसरा चरण प्रतिभागियों को छह से आठ महीने में एक परियोजना को पूरा करने एवं एक्सपोजर यात्राओं में भाग लेने हेतु अधिदेशित करता है तथा अंतिम चरण में नेटवर्किंग एवं अभ्यास का एक समुदाय स्थापित करना शामिल है।
- विगत वर्ष कॉप 26 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक नेतृत्व कर्ताओं के लिए एक पांच गुना रणनीति – पंच अमृत – का प्रस्ताव रखा, जिसमें 5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत के सहयोग का विस्तार किया गया।
पंचामृत कॉप 26
- पहला- भारत 2030 तक अपनी गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता 500 गीगावाट तक पहुंच जाएगा।
- दूसरा- भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा से 2030 तक पूरा करेगा।
- तीसरा- भारत अब से 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करेगा।
- चौथा- 2030 तक भारत अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45 प्रतिशत से भी कम कर देगा।
- पांचवां- वर्ष 2070 तक भारत निवल शून्य (नेट जीरो )का लक्ष्य हासिल कर लेगा। ये पंचामृत जलवायु कार्रवाई में भारत का अभूतपूर्व योगदान होगा।