Table of Contents
वन अधिकार अधिनियम 2006- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
सामान्य अध्ययन III- केंद्र एवं राज्यों द्वारा आबादी के कमजोर वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं तथा इन योजनाओं का प्रदर्शन; इन कमजोर वर्गों की सुरक्षा एवं बेहतरी के लिए गठित तंत्र, कानून, संस्थान एवं निकाय।
वन अधिकार अधिनियम 2006 चर्चा में क्यों है?
ओडिशा 2024 तक पूर्ण रूप से लागू करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है, जबकि अनेक राज्य ऐतिहासिक अधिनियम के क्रियान्वयन को पूरा करने के करीब नहीं हैं।
औपनिवेशिक विरासत
- वनों के भीतर रहने वाले आदिवासी एवं वन में निवास करने वाले समुदायों को पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र के साथ काश्तकारी सामंजस्य का सामना करना पड़ा क्योंकि अंग्रेजों ने अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए राष्ट्र की प्रचुर वन संपदा को अपने लाभ की ओर मोड़ दिया।
- वन के अधिकारों से संबंधित भारतीय वन अधिनियम, 1927 का अनुपालन नहीं किया गया।
वन अधिकारों पर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- राष्ट्रीय वन नीति, 1988 ने वनों के संरक्षण, पुनरुद्धार एवं विकास में जनजातीय (आदिवासी) लोगों को जोड़ने की आवश्यकता के बारे में चर्चा की।
- नागरिकों के मध्य उपेक्षित सामाजिक-आर्थिक वर्ग की रक्षा करना एवं उनके जीवन तथा आजीविका के अधिकार के साथ पर्यावरण के अधिकार को संतुलित करने हेतु।
वन अधिकार अधिनियम 2006
- 2006 में अधिनियमित एवं 2008 में लागू किया गया। यह वन में निवास करने वाले आदिवासी समुदायों तथा अन्य पारंपरिक वनवासियों के वन संसाधनों के अधिकारों से संबंधित है।
- वन में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों (फॉरेस्ट द्वेलिंग शेड्यूल्ड ट्राइब्स/FDST) एवं अन्य पारंपरिक वनवासियों (अदर ट्रेडिशनल फॉरेस्ट द्वेलर्स/OTFD) को, जो पीढ़ियों से ऐसे वनों में निवास कर रहे हैं, वन भूमि में वन अधिकारों एवं अधिवास को विधिक मान्यता प्रदान करता है।
- व्यक्तिगत वन अधिकार (इंडिविजुअल फॉरेस्ट राइट्स/आईएफआर) अथवा सामुदायिक वन अधिकार (कम्युनिटी फॉरेस्ट राइट्स/सीएफआर) अथवा दोनों जो एफडीएसटी एवं ओटीएफडी को प्रदान किए जा सकते हैं, की प्रकृति एवं सीमा निर्धारित करने के लिए प्रक्रिया प्रारंभ करने हेतु प्राधिकार ग्राम सभा में निहित है।
पात्रता
- जो “मुख्य रूप से वनों में निवास करते हैं” एवं जो आजीविका के लिए वनों एवं वन भूमि पर निर्भर हैं।
- दावेदार को उस क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति का सदस्य होना चाहिए अथवा उसे 75 वर्षों से वन का निवासी होना चाहिए।
अधिकारों की मान्यता
- ग्राम सभा अथवा ग्राम एक प्रस्ताव पारित करने हेतु सम्मिलित होती है कि किन संसाधनों पर किसके अधिकारों को मान्यता दी जानी चाहिए।
- प्रस्ताव की जांच की जाती है एवं उप-मंडल/अनुमंडल (अथवा तालुका) के स्तर पर एवं तत्पश्चात जिला स्तर पर अनुमोदित किया जाता है।
वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत अधिकार
स्वामित्व अधिकार
-
-
- एफडीएसटी एवं ओटीएफडी के लिए अधिकतम 4 हेक्टेयर की सीमा के अधीन आदिवासियों या वनवासियों द्वारा खेती की जाने वाली भूमि पर स्वामित्व का अधिकार
- स्वामित्व उस भूमि का होता है जिस पर संबंधित परिवार द्वारा खेती की जाती है।
- वन निवासियों के अधिकारों का विस्तार लघु वनोपज निष्कर्षण (निकालने) तक भी है।
-
वन प्रबंधन अधिकार
-
-
- किसी भी सामुदायिक वन संसाधन की सुरक्षा, पुनरुत्पादन या संरक्षण अथवा प्रबंधन का अधिकार जिसे वे पारंपरिक रूप से सतत उपयोग हेतु सुरक्षित एवं संरक्षित करते रहे हैं, एफआरए में सम्मिलित हैं।
-
महत्व
-
- संविधान की पांचवीं एवं छठी अनुसूचियों के अधिदेश का विस्तार करता है जो स्थानिक जनजातीय समुदायों के भूमि अथवा वनों पर दावों की रक्षा करता है।
- अधिकारियों द्वारा वन संसाधनों के दोहन को नियंत्रित करता है, वन प्रशासन में सुधार करता है एवं यह सुनिश्चित करके आदिवासी अधिकारों का बेहतर प्रबंधन करता है कि लोगों को स्वयं की क्षमता द्वारा संसाधनों का प्रबंधन करना है।
निवासियों के लिए अधिकार चर्चा में क्यों है?
वन अधिकार अधिनियम, 2006 निम्नलिखित आवश्यकताओं पर बल देता है
-
- 13 दिसंबर, 2005 से पूर्व अधिवास वाली वन भूमि पर काश्तकारी सुरक्षा।
- वन एवं वन उत्पाद पर वन अधिकार की मान्यता।
- वनों पर सामुदायिक संसाधनों की सुरक्षा एवं संरक्षण।
- वनभूमि के भीतर स्थित सभी वन ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तित करना।
- 13 दिसंबर, 2005 से बिना क्षतिपूर्ति के बेदखल किए गए विस्थापितों का यथास्थान पुनर्वास।
-
- विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों के पैतृक डोमेन (निवास) अधिकार की मान्यता।
- वन भूमि पर खानाबदोश, पशुचारी एवं अर्ध-घुमंतू समुदायों के लिए मौसमी पहुंच।
- तत्कालीन सरकारों, जमींदारों एवं राजाओं द्वारा सभी पट्टों का स्थायी भूमि अभिलेखों में परिवर्तन।
वन अधिकार अधिनियम के मुद्दे
- सक्रिय राजनीतिक भागीदारी का अभाव।
- जनजातीय कार्य विभाग के पास पर्याप्त मानव एवं वित्तीय संसाधनों का अभाव।
- वन अधिकारियों से समन्वय का अभाव।
- जिला एवं अनुमंडल स्तर की समितियों द्वारा अपर्याप्त कार्य निष्पादन करना, जो ग्राम सभा द्वारा प्रस्तुत किये गये दावों पर विचार करती हैं।
- पर्यावरण मंत्रालय द्वारा वन अधिकार अधिनियम के तहत 40 मिलियन हेक्टेयर में से मात्र 13% का सीमांकन किया गया है।
क्या किया जा सकता है?
- स्थानीय लोगों एवं अधिकारियों को अधिनियम के प्रावधानों के बारे में सूचित करने के लिए स्थानीय स्तर पर जागरूकता अभियान आयोजित किए जाने चाहिए।
- वन अधिकार अधिनियम को लागू करने के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों एवं संस्थाओं जैसे पंचायत, ग्राम सभा, ग्राम स्तरीय वन अधिकार समिति का प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण नियमित रूप से आयोजित किया जाना चाहिए।
- दावों को समयबद्ध तरीके से निपटाने के लिए समय सीमा को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए।




TSPSC Group 1 Question Paper 2024, Downl...
TSPSC Group 1 Answer key 2024 Out, Downl...
UPSC Prelims 2024 Question Paper, Downlo...
