प्रासंगिकता
- जीएस 2: कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की संरचना, संगठन तथा कार्यप्रणाली-सरकार के मंत्रालय एवं विभाग;
प्रसंग
- एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (एडीआर) की हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार, 2019-20 में राजनीतिक दलों द्वारा द्वारा 3,429.56 करोड़ रुपए के चुनावी ऋण-पत्र भुनाए गए, एवं इसमें से 29% चार राष्ट्रीय दलों – भाजपा, कांग्रेस, टीएमसी एवं राकांपा को प्राप्त हुए।
चुनावी ऋण-पत्र के बारे में
- चुनावी ऋण-पत्र राजनीतिक दलों को संदान (चंदा) देने के निमित्त एक वित्तीय साधन है।
- यह आर्थिक मामलों के विभाग, वित्त मंत्रालय की एक पहल है।
चुनावी ऋण-पत्र की विशेषताएं
- चुनावी ऋण-पत्र एक वचन पत्र एवं एक ब्याज मुक्त बैंकिंग साधन की प्रकृति में है।
- भारत का एक नागरिक या भारत में निगमित निकाय ऋण-पत्रों के क्रय हेतु पात्र होंगे।
- भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की निर्दिष्ट शाखाओं से, किसी भी मूल्य के लिए, 1,000 के गुणकों में चुनावी ऋण-पत्र जारी / क्रय किए जाएंगे।
- ऋण-पत्र में आदाता का नाम नहीं होगा।
- चुनावी ऋण-पत्रों की वैधता मात्र 15 दिनों की होती है, जिसके दौरान इसका उपयोग केवल उन राजनीतिक दलों को दान करने के लिए किया जा सकता है, जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत पंजीकृत हैं एवं, जिन्हें लोक सभा अथवा विधानसभा के लिए विगत आम चुनाव के मतदान में कम से कम एक प्रतिशत मत प्राप्त हुए हों। ।
- योजना के अंतर्गत ऋण-पत्र जनवरी, अप्रैल, जुलाई तथा अक्टूबर के महीनों में 10 दिनों की अवधि के लिए क्रय हेतु उपलब्ध होंगे, जैसा केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया जाए।
- ऋण-पत्र को एक पात्र राजनीतिक दल द्वारा अधिकृत बैंक में निर्दिष्ट बैंक खाते के माध्यम से ही भुनाया जाएगा।
चुनावी ऋण-पत्र के साथ मुद्दे
- अनामता: न तो दाता एवं न ही राजनीतिक दल को दाता के नाम का प्रकटीकरण करना आज्ञापित है। इस गोपनीयता से चुनावी प्रक्रिया में काले धन का प्रवेश हो सकता है।
- उपयोग पर नियंत्रण: इन ऋण-पत्रों के उपयोग की जांच करने के निमित्त कोई तंत्र नहीं है, न्यायालय ने सरकार से यह भी पूछा है कि क्या राजनीतिक दलों द्वारा इन दानों का किस प्रकार उपयोग किया गया था, इस पर कोई नियंत्रण है।
- सत्तारूढ़ दल को अधिक ऋण-पत्र: जब से चुनावी ऋण-पत्र अस्तित्व में आया है, अधिकांश चुनावी ऋण-पत्र सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में गए हैं। यद्यपि इसका कारण न्यायोचित हो सकता है, निहित स्वार्थ के लिए चुनावी ऋण-पत्र के दुरुपयोग की संभावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
- मनी लॉन्ड्रिंग की संभावना: चुनावी ऋण-पत्रों ने कंपनी अधिनियम के माध्यम से राजनीतिक दलों को व्यावसायिक घरानों के चंदे में मौजूद सभी सुरक्षा उपायों को समाप्त कर दिया।
- भारतीय, विदेशी एवं यहां तक कि मुखौटा कंपनियां किसी को भी योगदान के बारे में सूचित किए बिना राजनीतिक दलों को चंदा देती हैं।
- अपनाई गई प्रक्रिया पर प्रश्न: इस योजना को वित्त विधेयक में संशोधन के माध्यम से लाया गया था क्योंकि सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं था।
- संसदीय प्रावधानों को दरकिनार करने के कारण इसकी आलोचना की गई थी।