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विश्व व्यापार संगठन एवं भारत: भारत ने तीसरी बार विश्व व्यापार संगठन के शांति खंड का आह्वान किया 

पीस क्लॉज यूपीएससी: प्रासंगिकता

  • जीएस 3: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह तथा भारत से जुड़े एवं/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समझौते।

विश्व व्यापार संगठन एवं भारत: भारत ने तीसरी बार विश्व व्यापार संगठन के शांति खंड का आह्वान किया _3.1

विश्व व्यापार संगठन तथा भारत: संदर्भ

  • हाल ही में, भारत ने तीसरी बार शांति खंड (पीस क्लॉज) का आह्वान किया है क्योंकि चावल उत्पादक किसानों को सहायिकी पर 10% की अधिकतम सीमा पार कर गया है

 

भारत ने पीस क्लॉज का आह्वान किया: प्रमुख बिंदु

  • भारत ने विश्व व्यापार संगठन को सूचित किया कि 2020-21 में उसके चावल उत्पादन का मूल्य 45.56 बिलियन डॉलर था, जबकि उसने 6.9 बिलियन डॉलर की सब्सिडी प्रदान की, जो कि अनुमन्य 10% सीमा के मुकाबले 14% है
  • विश्व व्यापार संगठन का शांति खंड भारत के खाद्य खरीद कार्यक्रमों को सब्सिडी की सीमा के उल्लंघन की स्थिति में विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों की कार्रवाई से बचाता है।

 

भारत तथा विश्व व्यापार संगठन का शांति खंड

  • भारत ने पहली बार 2020 में वर्ष 2018-19 के लिए शांति खंड का आह्वान किया क्योंकि देश ने चावल किसानों को दिए जाने वाले समर्थन पर 10 प्रतिशत की सीमा को पार कर लिया है।
  • भारत ने पुनः 2021 में एक शांति खंड का आह्वान किया जब चावल किसानों को समर्थन 10% की सीमा के मुकाबले 13.7 प्रतिशत था
  • 2022 में, भारत ने फिर से शांति खंड लागू किया क्योंकि सब्सिडी 10% की सीमा को पार कर गई थी।

 

कृषि पर विश्व व्यापार संगठन समझौता

  • कृषि पर विश्व व्यापार संगठन समझौते में कृषि तथा व्यापार नीति के 3 व्यापक क्षेत्रों: बाजार पहुंच, घरेलू समर्थन तथा निर्यात सब्सिडी में प्रावधान सम्मिलित हैं।

 

बाजार पहुंच

  • इसमें प्रशुल्कीकरण, प्रशुल्क में कमी तथा पहुंच के अवसर सम्मिलित हैं।
  • प्रशुल्कीकरण: इसका तात्पर्य है कि सभी गैर-प्रशुल्क बाधाएं जैसे कोटा, परिवर्तनीय लेवी, न्यूनतम आयात मूल्य इत्यादि को समाप्त करने  एवं एक समान टैरिफ में परिवर्तित करने की आवश्यकता है।
  • उनके प्रशुल्कीकरण के परिणामस्वरूप होने वाले सामान्य प्रशुल्क को 6 वर्ष की अवधि में प्रत्येक प्रशुल्क मद के लिए 15% की न्यूनतम दर के साथ औसतन 36% कम किया जाना था।
  • विकासशील देशों को 10 वर्षों में प्रशुल्क में 24% की कमी करने की आवश्यकता थी।
  • विशेष रक्षोपाय प्रावधान अतिरिक्त शुल्क लगाने की अनुमति प्रदान करते हैं जब या तो एक विशेष स्तर से ऊपर आयात वृद्धि होती है या विशेष रूप से 1986-88 के स्तर की तुलना में कम आयात कीमतें होती हैं।

 

घरेलू समर्थन

  • घरेलू समर्थन नीतियों, समर्थन के कुल समग्र उपाय (टोटल एग्रीगेट मेजर ऑफ सपोर्ट/एएमएस) द्वारा मापे गए, विकसित देशों में 20% (विकासशील देशों में 13.3%) कम किया जाना चाहिए।
  • कमी प्रतिबद्धताओं का संबंध समर्थन के कुल स्तरों से है न कि व्यक्तिगत वस्तुओं से।
  • वि-न्यूनतम स्तर: नीतियां जो विकसित देशों के लिए उत्पादन के मूल्य के 5% से कम तथा विकासशील देशों के लिए 10% से कम पर घरेलू समर्थन समतुल्य हैं, उन्हें भी किसी भी कमी प्रतिबद्धताओं से बाहर रखा गया है।

 

निर्यात सब्सिडी

  • समझौते में निर्यात सब्सिडी को कम करने के लिए सदस्यों की प्रतिबद्धता के प्रावधान सम्मिलित हैं।
  • विकसित देशों को 6 वर्षों में अपने निर्यात सब्सिडी व्यय को 36% तथा मात्रा 21% तक, समान किस्तों में (1986-1990 के स्तर से) कम करने की आवश्यकता है।
  • विकासशील देशों के लिए, 10 वर्षों में समान वार्षिक किस्तों में प्रतिशत कटौती क्रमशः 24% एवं 14% है।

 

विश्व व्यापार संगठन में न्यूनतम स्तर क्या है?

  • विश्व व्यापार संगठन में, घरेलू समर्थन की न्यूनतम मात्रा जो अनुमन्य हैं भले ही वे व्यापार को विकृत करते हों:
    • विकसित देशों के लिए उत्पादन के मूल्य का 5% तक,
    • विकासशील देशों के लिए उत्पादन के मूल्य का 10% तक

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शांति खंड/पीस क्लॉज क्या है?

  • घरेलू खाद्य सुरक्षा के लिए भी किसानों को घरेलू समर्थन के मुद्दे पर विकसित एवं विकासशील संघर्ष।
  • बाली मंत्रिस्तरीय सम्मेलन 2013 में, एक अस्थायी शांति खंड समाविष्ट किया गया था जिसमें कहा गया था कि किसी भी देश को खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों से कानूनी रूप से प्रतिबंधित नहीं किया जाएगा, भले ही सब्सिडी कृषि पर विश्व व्यापार संगठन समझौते में निर्दिष्ट सीमाओं का उल्लंघन करती हो।
  • यह ‘शांति खंड’ 2017 तक चार वर्ष की अवधि तक प्रवर्तन में रहने की संभावना थी, उस समय तक समर्थक समस्या का स्थायी समाधान खोजने की अपेक्षा कर रहे थे।
  • भारत चिंतित है क्योंकि यदि स्थायी समाधान होने से पूर्व यह खंड समाप्त हो जाता है, तो खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम एवं किसानों की सुरक्षा के लिए नीतियां, जैसे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य, अस्तित्व में नहीं रहेंगे

 

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