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द हिंदू संपादकीय विश्लेषण
यूपीएससी एवं अन्य राज्य पीएससी परीक्षाओं के लिए प्रासंगिक विभिन्न अवधारणाओं को सरल बनाने के उद्देश्य से द हिंदू समाचार पत्र के संपादकीय लेखों का संपादकीय विश्लेषण। संपादकीय विश्लेषण ज्ञान के आधार का विस्तार करने के साथ-साथ मुख्य परीक्षा है बेहतर गुणवत्ता वाले उत्तरों को तैयार करने में सहायता करता है।
अवयस्कों के लिए डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण
- जब अवयस्कों के डेटा संरक्षण की बात आती है तो प्रस्तावित प्रारूप डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) विधेयक, 2022 में अनेक खामियां हैं।
अवयस्कों के लिए डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) विधेयक में अंतराल
- माता-पिता अथवा अभिभावक की सहमति का प्रावधान: डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) विधेयक, 2022 का प्रारूप वर्तमान में 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति के रूप में परिभाषित बच्चों द्वारा सभी डेटा प्रसंस्करण गतिविधियों के लिए माता-पिता अथवा अभिभावक की अनिवार्य सहमति का प्रावधान करता है।
माता-पिता की सहमति से संबंधित समस्या
- अवयस्कों के लिए सक्रिय रूप से सुरक्षित एवं बेहतर सेवाओं के निर्माण के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को प्रोत्साहित करने के स्थान पर, यह विधेयक सभी मामलों में बच्चे की ओर से सहमति देने के लिए माता-पिता पर निर्भर करता है।
- निम्न डिजिटल साक्षरता वाले देश में, जहां वास्तव में माता-पिता प्रायः अपने बच्चों (जो डिजिटल मूल निवासी हैं) पर इंटरनेट नेविगेट करने में उनकी सहायता करने हेतु विश्वास करते हैं, यह बच्चों को ऑनलाइन सुरक्षित रखने के लिए एक अप्रभावी तरीका है।
अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप
- यह “बच्चे के सर्वोत्तम हितों” को ध्यान में नहीं रखता है। यह बाल अधिकारों पर अभिसमय, 1989 में उत्पन्न होने वाला एक मानक है, जिसका भारत एक हस्ताक्षरकर्ता है।
- भारत ने इस मानक को निम्नलिखित कानूनों में बरकरार रखा है जैसे-
- बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005,
- निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009, तथा
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के उपयोग पर स्पष्टता का अभाव
- यह विधेयक इस बात पर ध्यान नहीं देता है कि किशोर आत्म-अभिव्यक्ति एवं व्यक्तिगत विकास के लिए विभिन्न इंटरनेट प्लेटफार्मों का उपयोग कैसे करते हैं तथा यह इन दिनों किशोरों के अनुभव के लिए कितना महत्वपूर्ण है।
- संगीत की शिक्षा ग्रहण करने से लेकर परीक्षाओं की तैयारी करने तक समान विश्वदृष्टि वाले लोगों के साथ समुदाय निर्मित करने तक, इंटरनेट विश्व के लिए एक खिड़की है।
- जबकि विधेयक सरकार को भविष्य में सख्त माता-पिता की सहमति आवश्यकताओं, प्रोफाइलिंग, ट्रैकिंग निषेध इत्यादि से छूट प्रदान करने की अनुमति प्रदान करता है।
- यह श्वेत सूचीकरण प्रक्रिया इस बात को स्वीकार नहीं करती है कि किसी प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग किन चीज़ों के लिए किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए, इंस्टाग्राम दृढ़ता से एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है, किंतु संपूर्ण विश्व के लाखों कलाकारों द्वारा नियमित रूप से एक शैक्षिक एवं व्यावसायिक विकास उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है।
माता-पिता की सहमति के सत्यापन पर चिंता
- डीपीडीपी विधेयक के वर्तमान प्रारूप में एक अन्य मुद्दा यह है कि प्रत्येक मंच को अवयस्कों के मामले में ‘माता-पिता की सत्यापन योग्य सहमति’ प्राप्त करनी होगी।
- यह प्रावधान, यदि सख्ती से लागू किया जाता है, तो इंटरनेट की प्रकृति को परिवर्तित कर सकता है जैसा कि हम जानते हैं।
- चूंकि यह बताना संभव नहीं है कि उपयोगकर्ता अपनी आयु की पुष्टि किए बिना अवयस्क है या नहीं, प्लेटफॉर्म को प्रत्येक उपयोगकर्ता की आयु को सत्यापित करना होगा।
- सरकार बाद में बताएगी कि क्या सत्यापन आईडी-प्रूफ या चेहरे की पहचान अथवा संदर्भ-आधारित सत्यापन या किसी अन्य माध्यम पर आधारित होगा।
आगे की राह
असमानों के साथ समान व्यवहार करने एवं किशोरों के लिए इंटरनेट तक पहुंच को अवरुद्ध करने की मूर्खता से बचने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने की आवश्यकता है।
- व्यापक प्रतिबंध से बचें: हमें ट्रैकिंग, निगरानी इत्यादि पर एक व्यापक प्रतिबंध से आगे बढ़ना चाहिए एवं प्लेटफ़ॉर्म दायित्वों के प्रति जोखिम-आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
- प्रभावी जोखिम मूल्यांकन: अवयस्कों के लिए जोखिम मूल्यांकन करने के लिए प्लेटफार्मों को अधिदेशित किया जाना चाहिए।
- उन्हें न केवल आयु-सत्यापन-संबंधी संबंधित दायित्वों को पूरा करना चाहिए, बल्कि डिफ़ॉल्ट सेटिंग्स एवं सुविधाओं के साथ ऐसी सेवाएं भी डिज़ाइन करनी चाहिए जो बच्चों को नुकसान से बचाती हैं।
- यह दृष्टिकोण बच्चों के लिए बेहतर उत्पादों को डिजाइन करने के लिए प्लेटफार्मों के लिए प्रोत्साहन बनाकर सह-विनियमन का एक तत्व लाएगा।
- माता-पिता अथवा अभिभावक की सहमति के लिए आयु में छूट: हमें संपूर्ण विश्व के कई अन्य न्यायालयों के अनुरूप सभी सेवाओं के लिए माता-पिता अथवा अभिभावक की अनिवार्य सहमति की आयु में 13 वर्ष की छूट देने की आवश्यकता है।
- यह डेटा संग्रह को कम करेगा, जो उन सिद्धांतों में से एक है जिन पर विधेयक निर्मित किया गया है।
- यह ऊपर बताए गए जोखिम कम करने के दृष्टिकोण के अनुरूप है, जो बच्चों को ऑनलाइन अभिगम की अनुमति प्रदान करते हुए उनके लिए सुरक्षा हासिल करेगा।
- व्यापक स्तर पर सर्वेक्षण: भारत सरकार को बच्चों एवं माता-पिता अथवा अभिभावक दोनों की ऑनलाइन आदतों, डिजिटल साक्षरता, वरीयताओं एवं दृष्टिकोण के बारे में अधिक जानने के लिए व्यापक स्तर पर सर्वेक्षण करना चाहिए।
निष्कर्ष
- भारत को एक ऐसी नीति तैयार करनी चाहिए जो ऑनलाइन बच्चों की सुरक्षा एवं एजेंसी को संतुलित करे। अपने बच्चों को सुरक्षित रखने का दायित्व केवल माता-पिता अथवा अभिभावक पर ही नहीं होना चाहिए, बल्कि यह पूरे समाज का दायित्व होना चाहिए।
डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) बिल, 2022 के बारे में प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न
प्र. डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) बिल, 2022 के प्रारूप में अवयस्कों के लिए क्या प्रावधान है?
उत्तर. डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) विधेयक, 2022 का प्रारूप वर्तमान में 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति के रूप में परिभाषित बच्चों द्वारा सभी डेटा प्रसंस्करण गतिविधियों के लिए माता-पिता अथवा अभिभावक की अनिवार्य सहमति का प्रावधान करता है।
प्र. यूपीएससी परीक्षा के लिए हिंदू संपादकीय विश्लेषण क्यों पढ़ें?
उत्तर. यूपीएससी एवं अन्य राज्य पीएससी परीक्षाओं के लिए प्रासंगिक विभिन्न अवधारणाओं को सरल बनाने के उद्देश्य से द हिंदू समाचार पत्र के संपादकीय लेखों का संपादकीय विश्लेषण। संपादकीय विश्लेषण ज्ञान के आधार का विस्तार करने के साथ-साथ मुख्य परीक्षा है बेहतर गुणवत्ता वाले उत्तरों को तैयार करने में सहायता करता है।