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गेहूं निर्यात प्रतिबंध विवाद- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 3: भारतीय अर्थव्यवस्था- आयोजना, संसाधनों का अभिनियोजन, वृद्धि, विकास एवं रोजगार से संबंधित मुद्दे।
गेहूं निर्यात प्रतिबंध विवाद
- हाल ही में भारत ने गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने के अपने निर्णय से विश्व को चकित कर दिया था।
- यद्यपि, सरकार अपने गेहूं निर्यात आदेश पर रक्षात्मक हो गई तथा इसे संशोधित कर दिया।
- प्रारंभ में, केंद्र ने सीमा शुल्क विभाग की प्रणालियों में पंजीकृत निर्यात खेपों को अनुमति प्रदान कर आदेश में संशोधन किया था एवं 13 मई को या उससे पूर्व जांच के लिए सौंप दिया था।
गेहूं निर्यात प्रतिबंध विवाद का प्रभाव
- संयुक्त राष्ट्र “ग्लोबल फूड सिक्योरिटी कॉल टू एक्शन” मंत्रिस्तरीय बैठक को संबोधित करते हुए, विदेश राज्य मंत्री ने इस बात पर बल दिया कि प्रतिबंधों ने उन देशों के लिए वृत्ति निर्मित की जिन्हें खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता थी।
- किसानों से अधिक, यह व्यापारी हैं जो गेहूं निर्यात प्रतिबंध के प्रतिबंधों में सीमित छूट से लाभान्वित होते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में आलोचना: भारत को गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध आरोपित करने के अपने निर्णय के कारण जी -7 के कृषि मंत्रियों की आलोचना का सामना करना पड़ा है।
गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध क्यों?
- आपूर्ति-मांग असंतुलन: मांग तथा आपूर्ति में असंतुलन के संकेत स्पष्ट थे, जिससे गेहूं की कीमतों में वृद्धि हुई एवं सरकार द्वारा निर्यात प्रतिबंध आरोपित कर दिया गया।
- मांग आपूर्ति असंतुलन के प्रमुख कारण हैं-
- थोक तथा खुदरा मुद्रास्फीति का बढ़ता स्तर,
- रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव एवं
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए केंद्रीय संहति (पूल) में गेहूं का एक निम्न आरंभिक संतुलन
- प्रतिकूल मौसम के कारण निम्न उत्पादन: उत्तर में गेहूं उत्पादक राज्यों के अनेक हिस्सों में मार्च-अप्रैल में असामान्य रूप से गर्म मौसम का अनुभव हुआ।
- उपरोक्त के कारण, सरकार ने इस माह के आरंभ में, अनुमानित गेहूं उत्पादन को 111.32 मिलियन टन से थोड़ा कम करके 105 मिलियन टन कर दिया।
- गेहूं की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय कीमतें: संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन/एफएओ) ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध से पूर्व भी गेहूं की कीमतें अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थीं।
- अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतों में वृद्धि मुख्य रूप से बाजार की स्थितियों एवं ऊर्जा, उर्वरकों तथा अन्य कृषि सेवाओं की ऊंची कीमतों के कारण हुई।
गेहूं निर्यात प्रतिबंध- सरकार की ओर से मिले जुले संकेत
- मिश्रित विचार: गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से पूर्व केंद्र ने स्पष्ट किया कि गेहूं के निर्यात पर अंकुश लगाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है. केंद्र ने इसे इस रूप में फायदेमंद माना-
- निर्यातकों के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में विक्रय करने हेतु यह उपयुक्त समय था क्योंकि अर्जेंटीना तथा ऑस्ट्रेलिया से गेहूं अगले माह तक आना प्रारंभ हो जाएगा।
- गेहूं निर्यात को प्रोत्साहन देना: निर्यात प्रतिबंध से ठीक पूर्व, केंद्र सरकार ने गेहूं निर्यात को प्रोत्साहन देने हेतु अनेक पहल प्रारंभ की थी जैसे-
- एक आधिकारिक घोषणा की गई कि गेहूं निर्यात की संभावनाओं का पता लगाने के लिए मोरक्को, ट्यूनीशिया एवं इंडोनेशिया जैसे देशों में व्यापार प्रतिनिधिमंडल भेजे जाएंगे।
- मिस्र के अतिरिक्त, तुर्की ने भारतीय गेहूं के आयात के लिए अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी थी।
- गेहूं निर्यात के लक्ष्य में वृद्धि करना: एक घोषणा की गई थी कि गेहूं निर्यात के लिए चालू वर्ष का लक्ष्य 10 मिलियन टन निर्धारित किया गया है, जो विगत वर्ष की तुलना में 30 लाख टन अधिक है।
गेहूं निर्यात प्रतिबंध विवाद- आगे की राह
- सरकार को गेहूं के निर्यात पर “प्रतिबंध” की अपनी वर्तमान स्थिति के साथ बहुत लंबे समय तक जारी नहीं रहना चाहिए, क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि इस कदम ने किसानों को दुष्प्रभावित किया है।
- अतीत से सीख: 15 वर्ष पूर्व के अनुभव से सबक लिया जाना चाहिए जब भारत को गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने में लगभग दो वर्ष का समय लग गया था, उस समय तक थाईलैंड एवं वियतनाम पूर्ण लाभ लेने के लिए आगे बढ़ चुके थे।
निष्कर्ष
- भोजन की कमी की आशंकाएँ अनुप्रयुक्त हैं एवं सरकार के लिए अच्छा होगा कि “प्रतिबंधों” को जल्द से जल्द हटा दिया जाए।