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सोप्स फॉर वोट- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 2: शासन, प्रशासन एवं चुनौतियां
- विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकार की नीतियां एवं अंतः क्षेप तथा उनकी अभिकल्पना एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।
वोट के लिए रिश्वत चर्चा में क्यों है?
- सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा लोगों को मुफ्त में उपहार देने के अपने पूर्व के निर्णय पर रोक लगा दी है एवं इस मुद्दे को तीन-न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया है।
- इससे पूर्व, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने चुनावी घोषणापत्र में मतदाताओं को मुफ्त सामान देने का वादा करने वाले राजनीतिक दलों से संबंधित मुद्दों की जांच के लिए एक विशेषज्ञ निकाय के गठन पर विचार किया।
चुनावी घोषणा पत्र में मुफ्त उपहारों पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- हाल के एक निर्णय में, सर्वोच्च न्यायालय ने एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु (2013) में पहले के निर्णय की सत्यता पर गहराई से विचार करने के लिए संदर्भित किया, जिसने फैसला सुनाया कि घोषणा पत्र में वादे करना एक भ्रष्ट अभ्यास नहीं होगा।
- पिछले हफ्ते भारत के अब सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली एक पीठ के समक्ष कार्यवाही ने कल्याणवाद, समाजवाद एवं ‘मुफ्त उपहारों’ के चुनाव पूर्व वादों की राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण दृष्टिकोण पेश किए।
चुनावी घोषणा पत्र में राजनीतिक मुफ्त उपहारों पर सरकार का रुख
- जिन लोगों ने तर्कहीन वादों के खिलाफ न्यायालय का रुख किया है, उन्हें केंद्र सरकार का समर्थन प्राप्त हुआ है।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मुफ्त उपहार ‘फ्रीबी’ की संस्कृति को अस्वीकार करने वाली सार्वजनिक टिप्पणियों के पश्चात, सरकार का रुख कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
- हालांकि, सरकार राजनीतिक दलों के मध्य चर्चा के माध्यम से इस मुद्दे की जांच करने हेतु अनिच्छुक थी एवं न्यायिक रूप से नियुक्त पैनल का समर्थन किया।
- किंतु, ऐसा पैनल ज्यादा हासिल नहीं कर सकता है।
चुनावी घोषणा पत्र में मुफ्त उपहार पर विपक्षी दलों का रुख
- अधिकांश दल अपनी पसंद के माध्यम से मतदाताओं से अपील करने के अपने अधिकार पर किसी भी बंधन का विरोध करते हैं एवं यदि निर्वाचित होते हैं, तो कानून तथा विधायी अनुमोदन के अधीन, धन एवं संसाधनों को वितरित करने हेतु जैसा भी उचित समझें, अपने जनादेश का उपयोग करती हैं।
- उनकी शिकायतों को कम करने के लिए, खंडपीठ ने अपने संदर्भ में, मामले में न्यायिक हस्तक्षेप के दायरे तथा क्या कोई लागू करने योग्य आदेश पारित किया जा सकता है, इस पर पर सवाल उठाए।
मुफ्त उपहारों एवं राज्य के नीति निदेशक तत्वों पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियां
- 2013 में दो-न्यायाधीशों की खंडपीठ के निर्णय ने गरीबों को टेलीविजन सेट वितरित करने के वादे तथा इसे लागू करने पर 2006 में डीएमके के सत्ता में आने की पृष्ठभूमि में इस मुद्दे की जांच की थी।
- इसने निर्णय दिया कि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत ऐसी योजनाओं की अनुमति प्रदान करते हैं तथा उन पर सार्वजनिक धन के व्यय पर प्रश्न नहीं किया जा सकता है यदि यह विधायिका द्वारा पारित विनियोग पर आधारित है।
- यह भी निष्कर्ष निकाला कि किसी दल द्वारा चुनावी वादों को ‘भ्रष्ट आचरण’ नहीं कहा जा सकता है।
- उस खंडपीठ ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया था कि सभी, अर्थात गरीब एवं संपन्न को लाभ प्रदान करना अनुच्छेद 14 में समानता के मानदंड का उल्लंघन होगा।
- जब यह राज्य द्वारा उदार दान की बात आई, तो सर्वोच्च न्यायालय कहा, असमानों को समान मानने के विरुद्ध नियम लागू नहीं होगा।



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