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संपादकीय विश्लेषण- आंतरिक लोकतंत्र

आंतरिक लोकतंत्र- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 2: शासन, प्रशासन एवं चुनौतियां
    • विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकारी नीतियां एवं अंतः क्षेप और तथा उनकी अभिकल्पना एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

हिंदी

आंतरिक लोकतंत्र चर्चा में क्यों है?

  • भारतीय निर्वाचन आयोग (इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया/ईसीआई) ने एक दल के लिए ‘स्थायी अध्यक्ष’ के विचार को अस्वीकृत कर दिया है, जबकि युवजन श्रमिक रायथु कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) के साथ मुद्दा उठाते हुए, जो आंध्र प्रदेश पर शासन करता है।
  • पार्टी ने कथित तौर पर मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी  को जुलाई 2022 में आजीवन इसके अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया।

 

आंतरिक लोकतंत्र पर निर्वाचन आयोग का दृष्टिकोण

  • निर्वाचन आयोग का कहना है कि किसी दल के लिए ‘स्थायी अध्यक्ष’ का विचार स्वाभाविक रूप से लोकतंत्र विरोधी है।
  • भारतीय निर्वाचन आयोग के दृष्टिकोण  एवं आंतरिक लोकतंत्र पर इसके द्वारा बल दिए जाने में एक गुण है, क्योंकि किसी भी व्यक्ति को आजीवन नेता चयनित नहीं किया जाना चाहिए।
  • कोई भी दल जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेता है एवं शासन  करना तथा विधान निर्मित करना चाहती है, उसे एक संघ के रूप में कार्य करने के तरीके के रूप में पदाधिकारियों के औपचारिक एवं आवधिक निर्वाचन को शामिल करना चाहिए।
  • निर्वाचन आयोग ने समय-समय पर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 ए के तहत राजनीतिक दलों के पंजीकरण के लिए जारी दिशा-निर्देशों का उपयोग किया है ताकि राजनीतिक दलों को निर्वाचन कराने हेतु स्मरण कराया जा सके एवं यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्येक पांच वर्ष में उनका नेतृत्व नवीनीकृत, बदला अथवा पुनर्निर्वाचित हो।

 

भारत में राजनीतिक दलों के प्रमुख प्रकार 

भारतीय राजनीतिक दल असंख्य प्रकार के होते हैं – उनमें से कुछ, निम्नलिखित हैं-

  • वैचारिक रूप से संचालित दल: भारतीय जनता पार्टी अथवा कम्युनिस्ट पार्टी, संरचित, कैडर-आधारित संगठन हैं जो एक वैचारिक लक्ष्य या सिद्धांत की दिशा में कार्य करते हैं;
  • उदारवादी पार्टियां: कांग्रेस, अलग-अलग विचारों वाले व्यक्तियों का अधिक शिथिल संरचित संग्रह है, किंतु एक ऐसे संघ के भीतर कार्य करती है जिसमें मूल आदर्श होते हैं;
  • क्षेत्रीय दल: वे भारतीय समाज की सामाजिक या क्षेत्रीय दरारों को प्रदर्शित करते हैं।

 

एक व्यक्ति के प्रभुत्व वाले दलों के उदय का कारण 

  • भारतीय राजनीति का विखंडन: एक संघीय, बहुदलीय प्रणाली में भारत की राजनीति के विखंडन ने भी “करिश्माई” व्यक्तियों या उनके परिवारों के वर्चस्व का मार्ग प्रशस्त किया है।
    • यह मुख्य रूप से समर्थन की प्रकृति के कारण हुआ है जो इन दलों द्वारा उपभोग की जाती है अथवा उनके वित्तपोषण ढांचे के कारण होती है जिसके लिए एक एकल अंतर्गुट या एक परिवार द्वारा केंद्रीकृत नियंत्रण की आवश्यकता होती है।
  • सार्थक आंतरिक लोकतंत्र का अभाव: आज अनेक राजनीतिक दल अपने नेतृत्व को सुरक्षित करने के लिए आंतरिक निर्वाचन कराने पर बल नहीं देते हैं।
    • यहां तक ​​कि यदि वे चुनाव करा भी लेते हैं, तो भी उनके पास पर्याप्त प्रतिस्पर्धा का अभाव होता है एवं ऐसा आलाकमान के प्रभुत्व की पुष्टि करने के लिए किया जाता है।
    • कुछ मामलों में, चुनावी राजनीति एक शून्य-राशि का खेल होने के कारण, राजनीतिक दल आंतरिक प्रतियोगिताओं को अनुमति प्रदान करने से कतराते हैं, इस भय से कि यह असहमति को बढ़ावा दे सकता है, जैसा कि नेतृत्व पर नामांकन एवं सर्वसम्मति-निर्माण के विपरीत है।
  • भारत के निर्वाचन आयोग की मौलिक शक्ति का अभाव: निर्वाचन आयोग के पास राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र को लागू करने अथवा चुनावों को अनिवार्य घोषित करने के लिए कोई वैधानिक शक्ति नहीं है।
    • इस तरह की वास्तविक शक्ति के अभाव के कारण ही राजनीतिक दल भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) के आदेशों को यांत्रिक तरीके से लागू करती हैं।

 

निष्कर्ष

  • वंशवाद एवं आंतरिक लोकतंत्र का अभाव सार्वजनिक चर्चा का विषय बनने के साथ, संभवतः जनता का दबाव अंततः राजनीतिक दलों पर उचित कार्य करने हेतु प्रभाव डालेगा।

 

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