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प्रासंगिकता
- जीएस 3: भौगोलिक विशेषताएं एवं उनके स्थान-महत्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताएं (जल-निकायों एवं हिम- शीर्ष सहित) एवं वनस्पतियों तथा जीवों में परिवर्तन एवं ऐसे परिवर्तनों के प्रभाव।
प्रसंग
- सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक हलफनामे के अनुसार, सात-जिनमें से एक एनटीपीसी द्वारा 512 मेगावाट की तपोवन परियोजना थी, जिसे इस महीने गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया गया था- को मुख्य रूप से इस आधार पर निर्माण कार्य पूर्ण करने की अनुमति प्रदान की गई थी कि वे “50% से अधिक पूर्ण“ थे।
- गंगा के ऊपरी प्रवाह में अन्य किसी भी नई परियोजनाओं की अनुमति नहीं प्रदान की जाएगी एवं स्वीकृत परियोजनाओं को पर्यावरणीय नियमों का पालन करना होगा जो नदी के स्वास्थ्य को अनुरक्षित रखने हेतु वर्ष के प्रत्येक समय नदी में न्यूनतम प्रवाह निर्धारित करते हैं।
मुख्य बिंदु
- शपथपत्र (हलफनामा) 2013 के उत्तराखंड बाढ़ के पश्चात जलविद्युत परियोजनाओं की व्यवहार्यता पर चल रहे वाद का एक हिस्सा है।
- परियोजनाओं की व्यवहार्यता की जांच करने के लिए सरकार द्वारा वर्षों से अनेक विशेषज्ञ समितियों का गठन किया गया है।
- गंगा की पवित्रता को बनाए रखने के लिए भूख अनशन पर गए स्वर्गीय जी. डी. अग्रवाल ने गंगा के ऊपरी इलाकों में ‘गंगा अधिनियम‘ के निर्माण के साथ-साथ रेत खनन एवं जलविद्युत परियोजना निर्माण को रोकने के लिए दबाव डाला था।
7 अनुज्ञात परियोजनाएं
- टिहरी चरण 2: भागीरथी नदी पर 1000 मेगावाट
- तपोवन विष्णुगढ़: धौलीगंगा नदी पर 520 मेगावाट
- विष्णुगढ़ पीपलकोटी: अलकनंदा नदी पर 444 मेगावाट
- सिंगोली भटवाड़ी: मंदाकिनी नदी पर 99 मेगावाट
- फटा भुयांग: मंदाकिनी नदी पर 76 मेगावाट
- मध्यमहेश्वर: मध्यमहेश्वर गंगा पर 15 मेगावाट
- कालीगंगा 2: 6 मेगावाट काली गंगा नदी पर
हिमालय में जल विद्युत परियोजनाओं के लिए चुनौतियां
- हिमनदों का पिघलना: वैश्विक तापन के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं।
- हाल ही में उत्तराखंड में ऋषि गंगा नदी में बाढ़ के कारण रौंती ग्लेशियर के टूटने से कम से कम दो जलविद्युत परियोजनाएँ बह गईं।
- ह्रासमान (घटती) स्थिरता: हिमनदों के पीछे हटने एवं स्थायी तुषारभूमि (पर्माफ्रॉस्ट) के पिघलने से पर्वतीय ढलानों की स्थिरता में कमी आने एवं ग्लेशियर झीलों की संख्या एवं क्षेत्र में वृद्धि होने का अनुमान है।
- अनियमित मौसम के प्रतिरूप से क्षेत्र में हिमपात एवं वर्षा की बारंबारता में वृद्धि हो रही है।
- हिम की वृद्धिमान तापीय रूपरेखा: विशेषज्ञों का कहना है कि हिम का थर्मल प्रोफाइल बढ़ रहा है, जिसका तात्पर्य है कि हिम का तापमान जो -6 से -20 डिग्री सेल्सियस तक होता था, अब -2 डिग्री सेल्सियस था, जिससे यह पिघलने के लिए अधिक संवेदनशील हो गया।।
इन चुनौतियों के प्रभाव
- इन परिवर्तित होती परिघटनाओं ने हिमालयी क्षेत्रों में आधारिक अवसंरचना परियोजनाओं को जोखिम भरा बना दिया है।
- इसने विशेषज्ञ समितियों से सिफारिश की है कि हिमालयी क्षेत्र में 2,200 मीटर की ऊंचाई से अधिक जलविद्युत परियोजनाओं का विस्तार नहीं होना चाहिए।
- इसके अतिरिक्त, मेघ प्रस्फोट (बादल फटने) की बढ़ती घटनाओं, एवं तीव्र वर्षा तथा हिमस्खलन के कारण, इस क्षेत्र के निवासियों को भी जीवन एवं आजीविका की हानि के जोखिम में डाल दिया गया था।