प्रासंगिकता
- जीएस 1: महत्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताओं में परिवर्तन (जल-निकायों एवं हिम-शीर्ष सहित)।
प्रसंग
- सुरक्षित जल संजाल( द सेफ वाटर नेटवर्क), यूएसएआईडी एवं डब्ल्यूआरआई (विश्व संसाधन संस्थान) भारत ने संयुक्त रूप से स्टॉकहोम जल सप्ताह के प्रथम दिन ‘सिटी वाटर बैलेंस प्लान के माध्यम से ‘मेकिंग सिटीज वाटर पॉजिटिव’ (‘शहरों को जल सकारात्मक बनाना’) पर सत्र का आयोजन किया।
मुख्य बिंदु
- हाल ही में, जल जीवन मिशन (शहरी) शहरी जल प्रबंधन प्राप्त करने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करने के साथ आरंभ किया गया था।
- मिशन के घटकों में से एक यह है कि प्रत्येक शहर को एक शहरी जल संतुलन योजना (सीडब्ल्यूबीपी), एक शहरी जलभृत प्रबंधन योजना एवं एक शहरी जल पुन: उपयोग एवं पुनर्चक्रण योजना को मौजूदा अंतराल को समझने तथा मिशन से धन प्राप्त करने के लिए परियोजनाओं का प्रस्ताव तैयार करना चाहिए।
- ऐसी योजना विकसित करने के लिए, शहरों को ठोस गुणात्मक, मात्रात्मक एवं स्थानिक आंकड़ों की आवश्यकता होगी क्योंकि पारंपरिक सर्वेक्षण विधियों के माध्यम से एक व्यापक योजना विकसित करना प्रायः लागत-सह (महंगा) एवं समय व्यय करने वाला हो सकता है।
- इसके अतिरिक्त, शहर अपनी विभिन्न जल योजनाओं को उत्पादित करने के साधन के रूप में उपग्रह प्रतिबिंब एवं अन्य गैर-पारंपरिक डेटा स्रोतों का लाभ उठाने के लिए कुछ दृष्टिकोण अपना सकते हैं।
जल जीवन मिशन (शहरी)
- मिशन का लक्ष्य 2026 तक शहरी भारत के सभी घरों में व्यक्तिगत घरेलू नल संपर्क के माध्यम से सुरक्षित एवं पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना है।
- जल जीवन मिशन का शहरी अनुगमन (जेजेएम-यू) पांच वर्षीय अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (एएमआरयूटी/अमृत) योजना का उत्तरवर्ती है, जिसका उद्देश्य 100,000 से अधिक जनसंख्या वाले 500 शहरों में जल आपूर्ति एवं मल जल निकास प्रणाली का संवर्धन करना है।
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जेजेएम (यू) की अनन्य विशेषताएं
- जेजेएम-यू भारत के सभी 4,378 वैधानिक शहरों के लिए लागू है, एवं जल स्रोत संरक्षण तथा कायाकल्प के क्षेत्रों में कहीं अधिक व्यापक है।
- इसका उद्देश्य सभी के लिए नल के जल तक अभिगम प्रदान करना है।
- इसमें उपचारित अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग तथा पुनर्चक्रण पर ध्यान देने के लिए एक घटक है।
इसकी आवश्यकता क्यों है?
- नीति आयोग ने न्यू इंडिया@75 के लिए अपनी रणनीति में बताया कि घटते ग्लेशियरों के कारण 30% हिमालयी सोते (झरने) पहले ही सूख चुके हैं।
- अलकनंदा एवं भागीरथी में जल विद्युत परियोजनाओं ने ऊपरी गंगा को पारिस्थितिक मरुस्थल में परिवर्तित कर दिया है।
- राजस्थान एवं गुजरात में खनन के कारण भूजल में यूरेनियम संदूषण।
- तत्कालीन कैग (सीएजी) ने चेन्नई की बाढ़ को मानव निर्मित आपदा कहा था।
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