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संपादकीय विश्लेषण: जल प्रबंधन को एक जल-सामाजिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है

 जल-सामाजिक दृष्टिकोण: प्रासंगिकता

  • जीएस 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन।

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भारत में जल संकट: संदर्भ

  • वैश्विक जल प्रणाली परियोजना स्वच्छ जल के मानव-प्रेरित परिवर्तन एवं पृथ्वी तंत्र एवं समाज पर इसके प्रभाव के बारे में वैश्विक चिंता का प्रतीक है।

 

भारत में स्वच्छ जल के संसाधनों का ह्रास 

  • विभिन्न मानवीय गतिविधियों के कारण स्वच्छ जल के संसाधन दबाव में हैं।
  • यदि वर्तमान प्रक्रिया जारी रहती है, तो स्वच्छ जल की मांग तथा आपूर्ति के मध्य का अंतर 2030 तक 40% तक पहुंच सकता है।
  • 2008 में 2030 जल संसाधन समूह ने भी इस समस्या को पहचाना एवं एसडीजी 6  के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता की।
  • नवीनतम संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट, 2021, जिसका शीर्षक ‘पानी का मूल्यांकन’  (वैल्यूइंग वाटर) है, ने निम्नलिखित पांच अंतर्संबंधित दृष्टिकोणों पर विचार करके जल के उचित मूल्यांकन पर जोर दिया है।
    • जल स्रोत;
    • जल से संबंधित बुनियादी ढांचा;
    • जल सेवाएं;
    • उत्पादन के लिए एक आदान के रूप में जल;
    • सामाजिक-आर्थिक विकास तथा जल के सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य।
  • इस संदर्भ में, एक जल-सामाजिक चक्र दृष्टिकोण एक उपयुक्त ढांचा प्रदान करता है।

 

जल-सामाजिक चक्र क्या है?

  • जल-सामाजिक चक्र मानव एवं प्रकृति की अंतःक्रियात्मक संरचना में प्राकृतिक जल विज्ञान चक्र का स्थान लेता है एवं जल  तथा समाज को एक ऐतिहासिक एवं संबंधपरक-द्वंद्वात्मक प्रक्रिया के हिस्से के रूप में मानता है।

 

स्वच्छ जल से संबंधित मुद्दे

  • अंतर-बेसिन स्थानांतरण परियोजनाएं
    • मानव हस्तक्षेप ने सिंचाई, नदी प्रणाली अभियांत्रिकी एवं भूमि उपयोग परिवर्तन, जलीय पर्यावास में परिवर्तन के माध्यम से स्वच्छ जल प्रणाली को प्रभावित किया है।
    • किसी प्रदत्त क्षेत्र के भीतर जल संसाधनों के प्राकृतिक रूप से प्रचलित असमान वितरण के कारण जल की उपलब्धता में असंतुलन को दूर करने के लिए पानी का अन्तः- एवं अंतर- नदी द्रोणी हस्तांतरण (इंट्रा एंड इंटर बेसिन ट्रांसफर/आईबीटी) एक प्रमुख जल विज्ञान संबंधी (हाइड्रोलॉजिकल) अंतःक्षेप है।
    • संपूर्ण विश्व में अनेक आईबीटी पहलें हैं।
    • भारत की राष्ट्रीय नदी जोड़ने की परियोजना निर्माणाधीन परियोजनाओं में से एक है।
    • ये परियोजनाएं, यदि क्रियान्वित की जाती हैं, तो कृत्रिम जल प्रवाह मार्ग निर्मित करेंगी जो पृथ्वी के भूमध्य रेखा की लंबाई से दोगुने से अधिक हैं।
  • बजट 2022 में केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना का उल्लेख है।
    • यह निर्णय जल विज्ञान संबंधी (हाइड्रोलॉजिकल) मान्यताओं तथा देश में स्वच्छ जल के संसाधनों के उपयोग  एवं प्रबंधन के बारे में बड़े प्रश्न उठाता है।
  • भारत में कृषि क्षेत्र कुल जल उपयोग का लगभग 90% उपयोग करता है एवं औद्योगिक संयंत्रों में, अन्य देशों में समरूप संयंत्रों के उत्पादन की प्रति इकाई खपत से 2 गुना से 3.5 गुना अधिक है।
  • स्वच्छ जल के जलाशयों में अनुपचारित दूषित जल एवं औद्योगिक अपशिष्टों का विसर्जन चिंता का कारण है।
    • यह अनुमान लगाया गया है कि घरेलू जल का 55% से 75% उपयोग दूषित जल में परिवर्तित हो जाता है।
  • सभी क्षेत्रों में जल के अकुशल उपयोग के अतिरिक्त, प्राकृतिक भंडारण क्षमता में कमी तथा जलग्रहण क्षमता में गिरावट भी आई है।

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भारत में जल संकट: आगे की राह

  • कम पूर्वानुमेय चरों को सम्मिलित करना, ‘या तो यह या तो वह’ (आइदर और) के बारे में सोचने के द्विआधारी तरीकों को संशोधित करना एवं निर्णय निर्माण की प्रक्रियाओं में गैर-राज्य कारकों को सम्मिलित करना महत्वपूर्ण है।
  • एक मिश्रित जल प्रबंधन प्रणाली आवश्यक है जिसमें मूल्य श्रृंखला में निश्चित भूमिका वाले व्यक्ति, समुदाय  तथा समाज सम्मिलित हों।
  • चुनौती तकनीक केंद्रित नहीं बल्कि मानव जनित होने की है।

 

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