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संपादकीय विश्लेषण- स्टीकिंग टू कमिटमेंट्स, बैलेंसिंग एनर्जी यूज एंड क्लाइमेट चेंज

प्रतिबद्धताओं पर कायम रहना, ऊर्जा का उपयोग एवं जलवायु परिवर्तन को संतुलित करना- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

  • सामान्य अध्ययन II- विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकार की नीतियां एवं अंतः क्षेप तथा उनकी अभिकल्पना एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे।

संपादकीय विश्लेषण- स्टीकिंग टू कमिटमेंट्स, बैलेंसिंग एनर्जी यूज एंड क्लाइमेट चेंज_3.1

चर्चा में क्यों है

  • नवंबर में मिस्र के शर्म अल-शेख में यूएनएफसीसीसी (कॉप 27) के दलों के 27 वें सम्मेलन से पूर्व, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) को प्रदान की है, जो एक औपचारिक वक्तव्य है जिसमें जलवायु परिवर्तन को हल करने हेतु अपनी कार्य योजना का विवरण दिया गया है।

 

2015 पेरिस समझौता

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • 1992 में, ब्राजील में पृथ्वी शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था, जहां सभी देश एक अंतरराष्ट्रीय संधि में सम्मिलित हुए, जिसे जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र संरचना अभिसमय (यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज/यूएनएफसीसीसी) के रूप में जाना जाता है।
  • 1997 में, क्योटो प्रोटोकॉल को अंगीकृत किया गया एवं विधिक रूप से विकसित देशों को उत्सर्जन लक्ष्यों को कम करने हेतु बाध्य किया गया। हालांकि, यह समझौता सार्थक नहीं हो पाया, क्योंकि विश्व के शीर्ष दो प्रदूषक देशों, चीन तथा अमेरिका ने इसमें भाग नहीं लिया ।
  • कॉप 17 में, 2015 तक एक नवीन, विस्तृत एवं विधिक रूप से बाध्यकारी जलवायु संधि निर्मित करने हेतु डरबन, दक्षिण अफ्रीका में पेरिस समझौते के लिए वार्ता प्रारंभ हुई। इस संधि में वैश्विक तापन की ओर अग्रसर करने  वाले कार्बन एवं गैसों के उत्सर्जन को सीमित करने तथा कम करने के लिए प्रमुख कार्बन उत्सर्जकों को सम्मिलित करना था।

पेरिस समझौता 22 अप्रैल, 2016 से 21 अप्रैल, 2017 तक हस्ताक्षर के लिए खुला था, यह 4 नवंबर, 2016 को  प्रवर्तन में आया। 

पेरिस समझौता (जिसे पक्षकारों का सम्मेलन 21 या सीओपी 21 भी कहा जाता है) जलवायु परिवर्तन एवं इसके प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए  जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र संरचना अभिसमय (यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज/यूएनएफसीसीसी) के तहत एक बहुपक्षीय समझौता है।

  • भारत ने अप्रैल 2016 में न्यूयॉर्क में समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
  • अब तक 191 देशों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
  • कुल हरित गृह गैस (ग्रीन हाउस गैस) उत्सर्जन के कम से कम 55% के लिए उत्तरदायी अभिसमय के 55 पक्षकारों के अनुसमर्थन के पश्चात यह आधिकारिक तौर पर प्रवर्तन में आया।
  • भारत इसका अनुसमर्थन करने वाला 62वां देश था।

लक्ष्य

  • इस सदी में वैश्विक तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के साथ-साथ 2100 तक वृद्धि को 5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का प्रयास करना।
  • उन देशों की सहायता एवं समर्थन करना जो जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील हैं।
  • विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन एवं स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए वित्तीय तथा तकनीकी सहायता प्रदान करना।

पेरिस समझौते के 20/20/20 लक्ष्य- पेरिस समझौते का लक्ष्य कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 20% तक कम करना है एवं नवीकरणीय ऊर्जा बाजार हिस्सेदारी तथा ऊर्जा दक्षता को 20% तक बढ़ाने का लक्ष्य है।

 

समझौते का अंगीकरण 

12 दिसंबर 2015 को पेरिस, फ्रांस में समझौते को अंगीकृत किया गया था एवं वैश्विक तापन में योगदान करने वाले गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए 22 अप्रैल, 2016 को समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। वर्तमान में, 195 यूएनएफसीसीसी सदस्यों ने पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। समझौते ने क्योटो प्रोटोकॉल को प्रतिस्थापित किया है, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक समरूपी समझौता था।

 

सीओपी 21 के दौरान वित्तीय सहायता की शपथ

  1. पेरिस समझौते के दौरान विकसित देशों ने प्रतिवर्ष 100 अरब डॉलर देने का वादा किया था।
  2. जलवायु जोखिम एवं पूर्व चेतावनी प्रणाली (क्लाइमेट रिस्क एंड अर्ली वार्निंग सिस्टम/CREWS) पहल तथा जलवायु जोखिम बीमा के शुभारंभ के लिए, जी 7 देशों ने 420 मिलियन अमरीकी डॉलर की घोषणा की।

(जी 7 देश– इसमें 7 देश, अर्थात्, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम एवं संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। ये देश वैश्विक आर्थिक शासन, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा एवं ऊर्जा नीति सहित अनेक मुद्दों पर विचार विमर्श करने हेतु प्रतिवर्ष मिलते हैं।)

 

क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते के मध्य अंतर

पेरिस समझौता क्योटो प्रोटोकॉल
1- विकसित एवं विकासशील देशों के मध्य कोई अंतर नहीं है। 1- विकसित एवं विकासशील देशों के मध्य अंतर था।
2- देश प्रत्येक 5 वर्ष में अपने आगामी दौर के लक्ष्यों की घोषणा करते हैं। 2- लक्ष्यों की ऐसी कोई विशेष घोषणा नहीं की गई थी।

 

सीओपी 21 में भारत

1- भारत ने कहा कि विश्व की 1.25 अरब जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तीव्र विकास की आवश्यकता है। इसमें से 30 करोड़ लोगों की अभी भी ऊर्जा तक पहुंच नहीं है।

2- बढ़ती मांगों के बावजूद, भारत ने प्रति इकाई सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन गहनता को 2005 के स्तर के 33-35% तक सीमित करने का संकल्प लिया।

3- भारत का लक्ष्य गैर-जीवाश्म ईंधन के माध्यम से स्थापित क्षमता के 40% तक पहुंचने का भी है।

4- वर्ष 2022 तक भारत ने 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है।

5- भारत ने 2.5 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के लिए वन क्षेत्र में वृद्धि करने का लक्ष्य रखा है।

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प्रतिबद्धताओं पर कायम रहना

  • 2015 में भारत के पहले एनडीसी ने आठ लक्ष्यों को निर्दिष्ट किया, उनमें से सर्वाधिक प्रमुख- 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन गहनता को 33% -35% (2005 के स्तर का) कम करना, इसकी स्थापित ऊर्जा क्षमता का 40% नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त करना एवं 2030 तक वन तथा वृक्षावरण के माध्यम से 2.5-3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के कार्बन डाइऑक्साइड के समतुल्य अतिरिक्त कार्बन सिंक निर्मित करना।
  • 2021 में ग्लासगो में सीओपी 26 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच प्रतिबद्धताएं या पंचामृत‘, प्रस्तुत की जैसा कि सरकार इसका संदर्भ देती है, जिसमें भारत अपनी गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 2030 तक 500 गीगावाट तक बढ़ाना एवं 2070 तकनिवल शून्यप्राप्त करना, या ऊर्जा स्रोतों से उत्सर्जित कोई शुद्ध कार्बन डाइऑक्साइड नहीं, का लक्ष्य शामिल है। 
  • भारत अपने मौजूदा लक्ष्यों को 2030 की समय-सीमा से काफी पहले प्राप्त करने की राह पर है। 
  • भारत की 403 गीगावॉट की वर्तमान स्थापित ऊर्जा क्षमता का 5 प्रतिशत अब गैर-जीवाश्म ईंधन द्वारा संचालित है। नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में स्थापित की  जाने वाली अधिकांश नई क्षमता वृद्धि के साथ, ऊर्जा  उत्पादन में गैर-जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी में 10 प्रतिशत की वृद्धि एक अवास्तविक लक्ष्य नहीं है।

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आगे की राह 

  • जबकि भारत अपने उत्सर्जन मार्ग को निर्दिष्ट करने के अपने अधिकार सीमा के भीतर है, उसे किसी भी मंच पर – जितना वह प्रदान कर सकता है उससे अधिक वादा नहीं करना चाहिए क्योंकि यह उस नैतिक अधिकार को कमजोर करता है जिसे भारत भविष्य की वार्ताओं में लाएगा। 
  • भारत ने अनेक विधानों के माध्यम से ऊर्जा का कुशलतापूर्वक उपयोग करने की अपनी मंशा व्यक्त की है एवं इसके कई बड़े निगमों ने प्रदूषणकारी ऊर्जा स्रोतों से दूर जाने हेतु अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है। 
  • आगे बढ़ते हुए, ये भारत के लिए अपनी गति से, ऊर्जा के उपयोग, विकास एवं जलवायु लक्ष्यों को  प्राप्त करने हेतु एक उदाहरण होने के लिए आधार होना चाहिए।

 

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