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ब्रिटेन में एफटीए वार्ताओं से सीख- द हिंदू संपादकीय विश्लेषण

भारत के मुक्त व्यापार समझौते (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट/एफटीए): यूपीएससी  के लिए प्रासंगिकता

भारत के मुक्त व्यापार समझौते (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स/एफटीए): द्विपक्षीय व्यापार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से दो देशों के मध्य मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर हस्ताक्षर किए जाते हैं। मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए)  एवं उनकी विशेषताएं यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा (अंतर्राष्ट्रीय संबंध) तथा यूपीएससी मुख्य परीक्षा (अंतर्राष्ट्रीय संबंध-द्विपक्षीय संबंध) के लिए महत्वपूर्ण हैं।

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भारत का मुक्त व्यापार समझौता (FTAs) चर्चा में क्यों है

  • भारत 2030 तक 2 ट्रिलियन डॉलर के निर्यात लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य से अनेक देशों तथा समूहों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर बातचीत कर रहा है।

 

भारत के मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) वार्ता

  • भारत यूरोपीय संघ, कनाडा, ब्रिटेन तथा इजराइल जैसे देशों के साथ एफटीए पर वार्ता कर रहा है।
  • मुक्त व्यापार समझौतों का दायरा: ये मुक्त व्यापार समझौते ​​विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला को कवर करते हैं जैसे-
    • प्रशुल्कों में कमी से संपूर्ण विनिर्माण तथा कृषि क्षेत्र प्रभावित होता है;
    • सेवा व्यापार से संबंधित नियम;
    • डिजिटल मुद्दे जैसे डेटा स्थानीयकरण;
    • बौद्धिक संपदा अधिकार जिनका दवाओं  के लिए पहुंच पर प्रभाव पड़ सकता है; तथा
    • निवेश संवर्धन, सुविधा तथा संरक्षण।
  • महत्व: मुक्त व्यापार समझौतों का अर्थव्यवस्था तथा समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है। इसे देखते हुए, वार्ता के दौरान एवं बाद में एफटीए प्रक्रिया की पारदर्शिता और अधिक जांच की वैध रूप से अपेक्षा की जाती है।

 

भारत के वर्तमान एफटीए वार्ता के साथ मुद्दे 

  • भारत गुप्त रूप से अधिकांश मुक्त व्यापार समझौतों पर वार्ता करता है, जिसके उद्देश्यों एवं प्रक्रियाओं के बारे में बहुत कम जानकारी होती है तथा नगण्य जांच होती है।
  • अन्य देशों में ऐसा नहीं है, जिनके साथ भारत इस तरह के मुक्त व्यापार समझौतों पर वार्ता कर रहा है। उदाहरण के लिए, यू.के. में, कई मजबूत तंत्र हैं जो एफटीए वार्ताओं में कुछ हद तक पारदर्शिता को प्रोत्साहित करते हैं।
  • इसके अतिरिक्त, ऐसे संस्थागत उपकरण हैं जो एफटीए पर हस्ताक्षर करने के दौरान तथा बाद में कार्यपालिका के कार्यों की जांच करने में सक्षम हैं। आइए इन तंत्रों पर एक दृष्टि डालें।

 

यूके में एफटीए वार्ता से सीखना

  • एफटीए पर नीति पत्र: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड/डीएफआईटी), यूके, एक एफटीए पर वार्ता करने के पीछे रणनीतिक उद्देश्यों को निर्धारित करने वाला तथा यूके के लिए किसी विशेष देश के साथ एफटीए रखना क्यों महत्वपूर्ण है, इस विषय पर एक नीति पत्र (पॉलिसी पेपर) प्रकाशित करता है।
    • यह नीति पत्र एफटीए पर हस्ताक्षर करने के विशिष्ट लाभों को अत्यधिक विस्तृत रूप से सूचीबद्ध करता है जैसे कि-
      • आर्थिक लाभ की संभावना,
      • वितरण प्रभाव,
      • पर्यावरणीय प्रभाव तथा
      • एफटीए के श्रम एवं मानवाधिकार आयाम।
    • भारत में, ऐसा कोई दस्तावेज़ सार्वजनिक रूप से तैयार नहीं किया जाता है जो एफटीए पर हस्ताक्षर करने  एवं पर्यावरण तथा समाज पर बड़े पैमाने पर इसके प्रभाव का आकलन करने के लिए मामला बनाता हो।
    • वाणिज्य मंत्रालय – एफटीए से निपटने वाला नोडल निकाय – अपनी वेबसाइट पर एफटीए वार्ताओं के बारे में न्यूनतम जानकारी प्रदान करता है।
  • हितधारकों की भागीदारी: डीएफआईटी द्वारा प्रकाशित नीति पत्र में व्यवसायों, गैर-सरकारी संगठनों एवं एवं अन्य समूह जैसे विभिन्न हितधारकों द्वारा प्राप्त इनपुट तथा प्रतिक्रियाएं भी सम्मिलित होती हैं।
    • इसके अतिरिक्त, नीति पत्र विशिष्ट सुझावों पर सरकार के दृष्टिकोण को भी स्पष्ट करता है।
    • ऐसा प्रतीत होता है कि वाणिज्य मंत्रालय भी हितधारक परामर्श एवं अंतर-मंत्रालयी बैठकें आयोजित करता है किंतु इन चर्चाओं एवं हितधारकों की चिंताओं पर सरकार की प्रतिक्रिया का कोई सार्वजनिक अभिलेख उपलब्ध नहीं है।
  • समर्पित निकाय: यू.के. में, एफटीए पर हस्ताक्षर करने के लिए सरकार द्वारा अभिनिर्धारित किए गए रणनीतिक उद्देश्यों की यू.के. संसद द्वारा जांच की जाती है।
    • यह कार्य ब्रिटिश संसद की अंतर्राष्ट्रीय समझौता समिति (इंटरनेशनल एग्रीमेंट्स कमिटी/IAC) द्वारा  संपादित किया जाता है।
    • आईएसी एफटीए पर विशेषज्ञ साक्षियों (गवाहों) को सुनता है, वार्ता के अधीन प्रत्येक एफटीए के लिए सरकार के रणनीतिक उद्देश्यों की आलोचनात्मक जांच करता है तथा सरकार के दृष्टिकोण में जहां कहीं भी अंतर पाता है, प्रमुख सिफारिशें प्रस्तुत करता है।
    • यूके सरकार तब इन सिफारिशों का उत्तर देती है। भारत में, एफटीए वार्ताओं के दौरान कार्यपालिका के कार्यों की ऐसी संसदीय जांच के लिए कोई तंत्र उपलब्ध नहीं है।
    • भारत की संसदीय प्रणाली विभाग-संबंधित संसदीय समितियों की अनुमति देती है जो महत्व के विभिन्न विषयों पर चर्चा करती हैं एवं सिफारिशें प्रस्तुत करती हैं।
    • यद्यपि, वाणिज्य पर संसदीय स्थायी समिति (पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी ऑन कॉमर्स/पीएससीसी) कदाचित ही कभी एफटीए पर वार्ता एवं हस्ताक्षर करने के पीछे भारत सरकार के उद्देश्यों की जांच करती है।
  • विधायिका की भागीदारी: यू.के. में, संवैधानिक सुधार तथा शासन अधिनियम, 2010 के तहत, कार्यपालिका को 21 दिनों के लिए ब्रिटिश संसद के समक्ष एक व्याख्यात्मक ज्ञापन के साथ एक संधि का अनुसमर्थन करना होता है।
    • यह संसद को उस संधि से अवगत कराने की अनुमति प्रदान करता है जिसे कार्यपालिका अनुसमर्थित करने जा रही है।
    • भारत में,  मुक्त व्यापार समझौतों सहित संधियों के अनुसमर्थन में संसद की किसी भी भूमिका के लिए कोई तंत्र नहीं है।
    • संधियों में प्रवेश करना तथा इससे जुड़े मामले जैसे वार्ता, हस्ताक्षर एवं अनुसमर्थन संसद की संवैधानिक क्षमता के भीतर हैं।
    • किंतु, विगत सात से अधिक दशकों में संसद ने इस मुद्दे पर अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं किया है, इस प्रकार कार्यपालिका को एफटीए सहित संधियों पर वार्ता करने, हस्ताक्षर करने तथा अनुसमर्थन करने की अबाध स्वतंत्रता प्रदान की गई है।

 

भारत में एफटीए वार्ता प्रक्रिया के लिए आगे की राह

भारत को यूके की किताब से सीख लेनी चाहिए तथा एफटीए सहित संधियों में प्रवेश करने के लिए एक कानून विकसित करना चाहिए। इस कानून में निम्नलिखित भाग होने चाहिए।

  • सर्वप्रथम, कार्यपालिका को एक मुक्त व्यापार समझौते जैसी संधि के लिए वार्ता में प्रवेश करने हेतु सार्वजनिक रूप से अपने रणनीतिक उद्देश्यों को रेखांकित करते हुए एक स्पष्ट आर्थिक मामला बनाना चाहिए।
  • दूसरा, कार्यपालिका को सभी हितधारकों से परामर्श करने, उनकी चिंताओं का उत्तर प्रदान करने तथा इस जानकारी को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराने का दायित्व होना चाहिए।
  • तीसरा, भारतीय संसद को यूके की आईएसी की तर्ज पर एक समिति का गठन करना चाहिए जो एफटीए में प्रवेश करने के पीछे रणनीतिक उद्देश्यों की जांच करेगी।
  • चौथा, कार्यपालिका को एक निश्चित अवधि के लिए मुक्त व्यापार समझौते को संसद के पटल पर रखना चाहिए, संसद को इसका अनुसमर्थन करने से पूर्व इस पर बहस करने की अनुमति प्रदान करनी चाहिए।

 

निष्कर्ष

  • जबकि एफटीए या अंतर्राष्ट्रीय संधियों में प्रवेश करने का कार्यपालिका का संवैधानिक विशेषाधिकार, सामान्य रूप से निर्विवाद है, इस शक्ति का प्रयोग इस तरह से किया जाना चाहिए जो कार्यपालिका  को जवाबदेह बनाता हो।
  • अंततः, लोकतंत्र का एक अभिन्न पहलू कार्यपालिका को उसके कार्यों के प्रति उत्तरदायी ठहराना है। यह एफटीए सहित अंतरराष्ट्रीय संधियों पर वार्ता के संदर्भ में पृथक नहीं होना चाहिए।

 

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