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कृष्णा नदी जल विवाद, तेलंगाना- आंध्र प्रदेश बंटवारे के 9 साल बाद भी नहीं सुलझ पाया जल विवाद

कृष्णा नदी जल विवाद: कृष्णा नदी जल विवाद एक बहुत पुराना विवाद है, जिसकी शुरुआत तत्कालीन हैदराबाद एवं मैसूर राज्यों से हुई थी तथा बाद में उत्तरवर्ती महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश के मध्य जारी रही। तेलंगाना- आंध्र प्रदेश जल विवाद यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा एवं यूपीएससी मुख्य परीक्षा (जीएस पेपर 2- अंतर्राज्यीय विवाद, अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद) के लिए भी महत्वपूर्ण है।

कृष्णा नदी जल विवाद का प्रसंग

आंध्र प्रदेश (ए.पी.) एवं तेलंगाना के मध्य कृष्णा नदी से जल के आवंटन पर लंबे समय से चला आ रहा विवाद अनसुलझा है, जो तत्कालीन संयुक्त राज्य के विभाजन के नौ साल बाद भी कायम है।

तेलंगाना – आंध्र प्रदेश जल विवाद की पृष्ठभूमि

विवाद की जड़ें नवंबर 1956 में आंध्र प्रदेश की स्थापना में देखी जा सकती हैं।

  • राज्य के गठन से पूर्व, रायलसीमा क्षेत्र एवं तेलंगाना क्षेत्र सहित आंध्र के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं ने 20 फरवरी, 1956 को एक जेंटलमेंस एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए।
  • इस समझौते में वैश्विक संधियों के आधार पर न्यायसंगत वितरण पर बल देते हुए जल संसाधनों के उपयोग से संबंधित तेलंगाना के हितों एवं आवश्यकताओं की रक्षा के प्रावधान शामिल थे।
  • हालांकि, सिंचाई सुविधाओं के संदर्भ में, संयुक्त प्रशासन का ध्यान मुख्य रूप से आंध्र पर था, जिसके पास तेलंगाना के भीतर सूखा-प्रवण क्षेत्रों में जल संसाधनों की कीमत पर अंग्रेजों द्वारा विकसित मौजूदा प्रणालियाँ थीं।
  • यह असमानता प्रारंभ से ही तेलंगाना क्षेत्र के नेताओं द्वारा उठाए गए विवाद का बिंदु था।

तेलंगाना-आंध्र प्रदेश जल विवाद में हालिया घटनाक्रम

भारत के मुख्य न्यायाधीश ने आंध्र प्रदेश द्वारा तेलंगाना के विरुद्ध दायर एक जल विवाद मामले को मध्यस्थता के लिए भेजने की पेशकश करते हुए कहा कि दो दक्षिणी राज्यों के लोग “भाई” हैं तथा इन्हें एक दूसरे को हानि पहुंचाने का ” स्वप्न” भी नहीं आना चाहिए।

  • यह मामला आंध्र प्रदेश की याचिका से संबंधित है जिसमें तेलंगाना पर पेयजल तथा सिंचाई के लिए जल के अपने वैध हिस्से से लोगों को वंचित करने का आरोप लगाया गया है।
  • विवाद का एक हालिया बिंदु तेलंगाना सरकार की अधिसूचना के कारण है, जिसका उद्देश्य 100% स्थापित क्षमता तक पनबिजली उत्पन्न करना है, जिसके परिणामस्वरूप आंध्र प्रदेश के लोगों के लिए जल का अभाव हो सकती है (आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा आशंका)।

कृष्णा नदी जल विवाद के बारे में

कृष्णा नदी जल विवाद एक बहुत पुराना विवाद है, जिसकी शुरुआत तत्कालीन हैदराबाद एवं मैसूर राज्यों से हुई थी, तथा बाद में उत्तरवर्ती महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश के बीच जारी रही।

  • प्रथम कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण (कृष्णा वॉटर डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल/KWDT): अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत 1969 में स्थापित तथा 1973 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जो 1976 में प्रकाशित हुई थी। इसने कृष्णा जल के 2060 टीएमसी (हजार मिलियन क्यूबिक फीट) को 75 प्रतिशत निर्भरता पर तीन भागों में विभाजित किया:
  1. महाराष्ट्र के लिए 560 टीएमसी।
  2. कर्नाटक के लिए 700 टीएमसी।
  3. आंध्र प्रदेश के लिए 800 टीएमसी।
  • इसने 31 मई, 2000 के उपरांत किसी भी समय किसी सक्षम प्राधिकारी अथवा न्यायाधिकरण द्वारा आदेश में संशोधन के लिए भी प्रावधान किया। इसके अतिरिक्त, राज्यों के बीच नई शिकायतों के कारण 2004 में एक दूसरे कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन हुआदूसरा कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण: 2004 में स्थापित किया गया तथा 2010 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कृष्णा नदी के जल का आवंटन 65 प्रतिशत निर्भरता कथा अधिशेष प्रवाह के लिए निम्नानुसार किया गया:
  1. महाराष्ट्र के लिए 81 टीएमसी,
  2. कर्नाटक के लिए 177 टीएमसी, एवं
  3. आंध्र प्रदेश के लिए 190 टीएमसी।

तेलंगाना राज्य का गठन एवं वर्तमान मुद्दा

दोनों राज्यों ने आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 द्वारा अधिदेशित, नदी बोर्डों, केंद्रीय जल आयोग तथा शीर्ष परिषद से स्वीकृति प्राप्त किए बिना अनेक नवीन परियोजनाओं का प्रस्ताव दिया है।

  • शीर्ष परिषद में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री एवं तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री शामिल हैं।
  • आंध्र प्रदेश: श्रीशैलम जलाशय के ऊपर नदी के एक हिस्से से कृष्णा नदी के जल के उपयोग में वृद्धि करने का का प्रस्ताव, जिसके कारण तेलंगाना सरकार ने आंध्र प्रदेश के विरुद्ध शिकायत दर्ज की।
  • तीन राज्यों के स्थान पर चार राज्यों के मध्य जल के पुनर्आवंटन के लिए आंध्र प्रदेश की मांग: कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण में तेलंगाना को एक अलग पक्षकार के रूप में माना जा रहा है। यह आंध्र प्रदेश राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 2014 की धारा 89 पर निर्भर है।
  • तेलंगाना: पलामुरू-रंगारेड्डी, कृष्णा नदी पर डिंडी लिफ्ट सिंचाई योजनाएं एवं कलेश्वरम, तुपाकी गुडेम योजनाएं तथा गोदावरी के ऊपर प्रस्तावित कुछ बैराजों का आंध्र प्रदेश ने विरोध किया है।
  • कर्नाटक एवं महाराष्ट्र द्वारा विरोध: उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद तेलंगाना बनाया गया था। अतः, जल का आवंटन आंध्र प्रदेश के हिस्से से होना चाहिए जिसे न्यायाधिकरण ने अपनी स्वीकृति प्रदान की थी।

आंध्र प्रदेश, तेलंगाना एवं केंद्र सरकार का मत

अपने गठन के बाद से, तेलंगाना ने निरंतर केंद्र सरकार से जल आवंटन मुद्दे को हल करने का आग्रह किया है।

तेलंगाना का मत

नदी जल बंटवारे पर अंतरराष्ट्रीय संधियों एवं समझौतों का हवाला देते हुए, तेलंगाना का तर्क है कि उसे नदी द्रोणी मापदंडों के आधार पर 811 टीएमसीएफटी आवंटन का न्यूनतम 70% प्राप्त होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, तेलंगाना इस बात पर प्रकाश डालता है कि आंध्र प्रदेश कैसे तेलंगाना बेसिन के भीतर फ्लोराइड प्रभावित एवं सूखा-प्रवण क्षेत्रों से लगभग 300 टीएमसीएफटी (tmcft) जल को नदी द्रोणी के बाहर के क्षेत्रों में मोड़ रहा है।

आंध्र प्रदेश का मत

दूसरी ओर, आंध्र प्रदेश भी पूर्व से विकसित कमांड क्षेत्रों के हितों की रक्षा के लिए जल के उच्चतर हिस्से के लिए अपने दावे पर जोर देता है।आंध्र प्रदेश ने तेलंगाना पर निम्नलिखित के लिए आरोप लगाता है

  • 2014 के आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के तहत गठित शीर्ष परिषद में नदी जल प्रबंधन पर लिए गए निर्णयों का अनुपालन करने से इनकार करना।
  • 2014 अधिनियम के तहत गठित कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड (कृष्णा रिवर मैनेजमेंट बोर्ड/केआरएमबी) एवं केंद्र सरकार के निर्देशों की उपेक्षा।

केंद्र सरकार का मत

केंद्र सरकार ने 2016 एवं 2020 में शीर्ष परिषद की दो बैठकें आयोजित कीं, जिसमें केंद्रीय मंत्री तथा तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री शामिल थे।

  • हालांकि, इन बैठकों के दौरान जल आवंटन के मुद्दे को हल करने के लिए कोई महत्वपूर्ण प्रयास नहीं किया गया था।
  • 2020 में, जल शक्ति मंत्रालय (MoJS) ने सुझाव दिया कि इस मामले को एक न्यायाधिकरण के पास भेजा जाए, जिसके कारण तेलंगाना ने मंत्रालय के आश्वासन के साथ सर्वोच्च न्यायालय से अपनी याचिका वापस  ली।
  • दुर्भाग्य से, केंद्र सरकार ने दो वर्ष से इस मुद्दे पर कोई कार्रवाई नहीं की है।
  • परिणामस्वरूप, दोनों राज्य मामले के संबंध में तर्कों के दैनिक आदान-प्रदान में संलग्न रहते हैं।

अंतर-राज्यीय नदी जल विवादों के बारे में संवैधानिक प्रावधान

अंतर्राज्यीय जल विवाद से संबंधित महत्वपूर्ण संवैधानिक अनुच्छेदों की चर्चा नीचे की गई है-

  • संसद विधि द्वारा, किसी अंतर-राज्यीय नदी अथवा नदी घाटी में या उसके जल के उपयोग, वितरण अथवा नियंत्रण के संबंध में किसी भी विवाद या शिकायत के न्यायनिर्णयन के लिए प्रावधान कर सकती है
    • संसद ने दो कानून अधिनियमित किए हैं, नदी बोर्ड अधिनियम (1956) तथा अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम (1956)
  • संसद, कानून द्वारा, प्रावधान कर सकती है कि ऊपर वर्णित किसी भी विवाद अथवा शिकायत के संबंध में न तो सर्वोच्च न्यायालय एवं न ही कोई अन्य न्यायालय अपने क्षेत्राधिकार का प्रयोग करेगी
  • संघ सूची की प्रविष्टि 56: जनहित में समीचीन होने के लिए संसद द्वारा घोषित सीमा तक अंतर्राज्यीय नदियों एवं नदी घाटियों का विनियमन तथा विकास।

आगे की राह 

  • मिहिर शाह पैनल की सिफारिशों को स्वीकार करना: केंद्रीय जल आयोग एवं केंद्रीय ग्राउंड बोर्ड को समाहित करके एक राष्ट्रीय जल आयोग की स्थापना करने का सुझाव दिया।
  • अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2019 अधिनियमित करें: यह राज्यों के मध्य जल विवादों के त्वरित रूप से निर्णय लेने में सहायता करेगा।
    • यह अलग-अलग पीठों के साथ एक एकल न्यायाधिकरण के गठन एवं अधिनिर्णय के लिए सख्त समय सीमा की स्थापना का प्रावधान करता है।
    • न्यायाधिकरण को दो वर्ष में अंतिम निर्णय देने हेतु अधिदेशित किया जाएगा तथा यह प्रस्तावित है कि जब भी वह कोई आदेश देता है, फैसले को स्वतः रूप से अधिसूचित किया जाता है।
  • जल के मुद्दे का अराजनीतिकरण: जल को एक राष्ट्रीय संसाधन के रूप में माना जाना चाहिए तथा इसे क्षेत्रीय गौरव से जुड़ा भावनात्मक मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए।

 

कृष्णा नदी जल विवाद के बारे में प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न

प्र. कृष्णा नदी जल विवाद क्या है?

उत्तर. कृष्णा नदी जल विवाद भारतीय राज्यों आंध्र प्रदेश (A.P.) एवं तेलंगाना के बीच कृष्णा नदी के जल के आवंटन  तथा उपयोग को लेकर असहमति को संदर्भित करता है।

प्र. कृष्णा नदी जल विवाद कब प्रारंभ हुआ था?

उत्तर. नवंबर 1956 में आंध्र प्रदेश के गठन के समय कृष्णा नदी जल विवाद का उद्गम देखा जा सकता है। हालांकि, हाल के वर्षों में विवाद और गहन हो गया है।

प्र. कृष्णा नदी जल विवाद से संबंधित जेंटलमेन्स एग्रीमेंट क्या था?

उत्तर. आंध्र प्रदेश के गठन से पूर्व, विभिन्न क्षेत्रों के नेताओं ने 1956 में एक जेंटलमेन्स एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए, जिसमें वैश्विक संधियों के आधार पर जल संसाधन उपयोग तथा न्यायसंगत वितरण में तेलंगाना के हितों की सुरक्षा के प्रावधान शामिल थे।

प्र. कृष्णा नदी जल विवाद क्यों नहीं सुलझ पाया है?

उत्तर. जल संसाधनों के आवंटन एवं उपयोग के संबंध में आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना के परस्पर विरोधी दावों एवं अलग-अलग दृष्टिकोणों के कारण कृष्णा नदी जल विवाद अनसुलझा है। ऐतिहासिक असमानताओं एवं विकासात्मक प्राथमिकताओं सहित विभिन्न कारकों ने जारी इस विवाद में योगदान दिया है।

 

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FAQs

कृष्णा नदी जल विवाद क्या है?

कृष्णा नदी जल विवाद भारतीय राज्यों आंध्र प्रदेश (A.P.) एवं तेलंगाना के बीच कृष्णा नदी के जल के आवंटन तथा उपयोग को लेकर असहमति को संदर्भित करता है।

कृष्णा नदी जल विवाद कब प्रारंभ हुआ था?

नवंबर 1956 में आंध्र प्रदेश के गठन के समय कृष्णा नदी जल विवाद का उद्गम देखा जा सकता है। हालांकि, हाल के वर्षों में विवाद और गहन हो गया है।

कृष्णा नदी जल विवाद से संबंधित जेंटलमेन्स एग्रीमेंट क्या था?

आंध्र प्रदेश के गठन से पूर्व, विभिन्न क्षेत्रों के नेताओं ने 1956 में एक जेंटलमेन्स एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए, जिसमें वैश्विक संधियों के आधार पर जल संसाधन उपयोग तथा न्यायसंगत वितरण में तेलंगाना के हितों की सुरक्षा के प्रावधान शामिल थे।

कृष्णा नदी जल विवाद क्यों नहीं सुलझ पाया है?

जल संसाधनों के आवंटन एवं उपयोग के संबंध में आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना के परस्पर विरोधी दावों एवं अलग-अलग दृष्टिकोणों के कारण कृष्णा नदी जल विवाद अनसुलझा है। ऐतिहासिक असमानताओं एवं विकासात्मक प्राथमिकताओं सहित विभिन्न कारकों ने जारी इस विवाद में योगदान दिया है।

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