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बेहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार

बेहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार- यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 3: पर्यावरण: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं अवक्रमण।

बेहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार- संदर्भ

  • हाल ही में, भारतीय जीवविज्ञानी शैलेंद्र सिंह को विलुप्त होने के कगार पर से तीन गंभीर रूप से लुप्तप्राय कछुआ संरक्षित प्रजातियों को वापस लाने के लिए बेहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
  • शैलेंद्र सिंह के कार्य को भारत में कछुओं की कुछ प्रजातियों के ‘ वन्य उत्तरजीविता की आखिरी उम्मीद’ के रूप में मान्यता प्रदान की गई है जैसे-
    • लाल किरीट शीर्ष वाला कछुआ (बटागुर कचुगा),
    • उत्तरी नदी टेरापिन (बटागुर बस्का),  एवं
    • काला मृदु कवच कछुआ (निलसोनिया नाइग्रिकन्स)

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कछुआ संरक्षण पुरस्कार- प्रमुख बिंदु

  • कछुआ संरक्षण पुरस्कार के बारे में: बेहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार एक प्रमुख वार्षिक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार है जो कच्छप एवं स्वच्छ जल के कछुए के संरक्षण एवं जीव विज्ञान, तथा चेलोनियन संरक्षण एवं जीव विज्ञान समुदाय में नेतृत्व के क्षेत्र में उत्कृष्टता को सम्मानित करता है।
    • कछुआ संरक्षणवादी जॉन बेहलर (1943-2006) की विरासत का सम्मान करने के लिए 2006 में एंडर्स रोडिन एवं रिक हडसन द्वारा इस पुरस्कार की स्थापना की गई थी।
    • इसे कछुआ संरक्षण का “नोबेल पुरस्कार” माना जाता है।
  • पुरस्कार के प्रस्तुतकर्ता: बेहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार निम्नलिखित के द्वारा सह-प्रस्तुत किया जाता है-
    • द टर्टल सर्वाइवल अलायंस (टीएसए),
    • द आईयूसीएन / एसएससी टॉरटॉइज़ एंड फ्रेशवॉटर टर्टल स्पेशलिस्ट ग्रुप (टीएफटीएसजी)
    • द टर्टल कंजर्वेंसी (टीसी),  एवं
    • द टर्टल कंजर्वेशन फंड (टीसीएफ)
  • बेहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार में 5000 डॉलर की धनराशि सम्मिलित है जो इसकी बढ़ती प्रतिष्ठा एवं रूपरेखा को दर्शाता है।

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तीन गंभीर रूप से लुप्तप्राय कछुओं की प्रजातियों के बारे में 

  • लाल किरीट शीर्ष वाला कछुआ (बटागुर कचुगा): इसे बंगाली शीर्ष वाला कछुआ भी कहा जाता है। यह एक स्वच्छ जल का कछुआ है जो दक्षिण एशिया में पाया जाता है।
  • उत्तरी नदी टेरापिन (बटागुर बस्का): यह नदी के कछुए की एक प्रजाति है जो दक्षिण पूर्व एशिया के मूल निवासी है और इसकी पूर्व सीमा में विलुप्त मानी जाती है।
  • काला मृदु कवच कछुआ (निलसोनिया नाइग्रिकन्स): यह भारत (असम) एवं बांग्लादेश में पाए जाने वाले स्वच्छ जल के कछुए की एक प्रजाति है। यह भारतीय मयूर (मोर) मृदु कवच कछुए के साथ कुछ हद तक समानता साझा करता है।

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