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प्रोजेक्ट चीता: यह भारत में चीता के सतत पर्यावास को सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार की चीता पुन: पदार्पण नीति है। यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा 2023 एवं यूपीएससी मुख्य परीक्षा (जीएस पेपर 2- पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी) के लिए भी चीता का पुन: पदार्पण महत्वपूर्ण है
प्रोजेक्ट चीता चर्चा में क्यों है?
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी/NTCA) के निर्देश पर, विशेषज्ञों के एक दल ने 30 अप्रैल, 2023 को कूनो राष्ट्रीय उद्यान का दौरा किया एवं प्रोजेक्ट चीता की वर्तमान स्थिति की समीक्षा की।
परियोजना चीता पर विशेषज्ञ रिपोर्ट
प्रोजेक्ट चीता के सभी पहलुओं की जांच करने के बाद, टीम ने अगले कदमों पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की।
- उन्होंने कहा कि भारत में चीतों को उनकी ऐतिहासिक सीमा में पुनः पदार्पण कराने के उद्देश्य से महत्वाकांक्षी परियोजना के प्रथम चरण में, बीस चीतों को सितंबर 2022 एवं फरवरी 2023 में दक्षिणी अफ्रीका से कूनो नेशनल पार्क (केएनपी) में सफलतापूर्वक स्थानांतरित किया गया था।
- दल द्वारा अधिकांश चीतों को सुरक्षित दूरी से अवलोकित किया गया तथा उनका आकलन किया, जबकि उन्होंने इन पशुओं के प्रबंधन के लिए मौजूदा प्रक्रियाओं एवं प्रोटोकॉल की भी समीक्षा की।
- सभी चीते अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य में पाए गए, उन्होंने नियमित अंतराल पर शिकार करने जैसे अपने प्राकृतिक व्यवहार का प्रदर्शन किया।
- इस परियोजना का उद्देश्य कानूनी रूप से संरक्षित क्षेत्रों को सुरक्षित करके संपूर्ण विश्व में चीता संरक्षण की पहल का समर्थन करना है जो कुल 100,000 वर्ग किलोमीटर के पर्यावास स्थान को आच्छादित करता है कथा प्रजातियों के लिए अतिरिक्त 600,000 वर्ग किलोमीटर उपयुक्त परिदृश्य प्रदान करता है।
चीता पुन: स्थापना के लिए आगे उठाए जाने वाले कदम
केएनपी में वन विभाग के अधिकारियों के साथ चर्चा के बाद वे आगे बढ़ने हेतु उठाए जाने वाले आगामी कदमों पर सहमत हुए।
- जून में मानसून की वर्षा प्रारंभ होने से पहले पांच तथा चीतों (तीन मादा एवं दो नर) को अनुकूलन शिविरों से केएनपी में मुक्त- भ्रमण की स्थिति में मुक्त किया जाएगा।
- निगरानी दलों द्वारा चीतों को व्यक्तिगत रूप से उनकी व्यवहारिक विशेषताओं एवं स्वीकार्यता के आधार पर मुक्त करने हेतु चयनित किया गया था।
- मुक्त किए गए चीतों पर उसी तरह नजर रखी जाएगी, जैसे पूर्व में मुक्त किए जा चुके चीतों पर रखी जाती है।
- शेष 10 चीते मानसून के मौसम की अवधि के लिए अनुकूलन शिविरों में रहेंगे।
- इन चीतों को अनुकूलन शिविरों में अधिक स्थान का उपयोग करने एवं विशिष्ट नर तथा मादा के मध्य अंतःक्रिया करने की अनुमति प्रदान करने हेतु कुछ आंतरिक द्वार खुले रहेंगे।
- सितंबर में मानसून की वर्षा ऋतु के समाप्त होने के पश्चात स्थिति का पुनः आकलन किया जाएगा। बड़ी संख्या में आबादी स्थापित करने के लिए चीता संरक्षण कार्य योजना के अनुसार केएनपी अथवा आसपास के क्षेत्रों में आगे गांधी सागर तथा अन्य क्षेत्रों में योजनाबद्ध रीति से मुक्त किया जाएगा।
- चीतों को केएनपी से बाहर भ्रमण करने की अनुमति दी जाएगी एवं जब तक वे उन क्षेत्रों में पदार्पण नहीं करते हैं जहां वे उल्लेखनीय रूप से खतरे में हैं, तब तक आवश्यक रूप से उन्हें वापस नहीं लिया जाएगा।
- एक बार जब वे व्यवस्थित हो जाएंगे तो उनके एकाकीपन की मात्रा का आकलन किया जाएगा तथा समूह के साथ उनके संपर्क में वृद्धि करने हेतु उचित कार्रवाई की जाएगी।
- मार्च में जन्म देने वाली मादा शिकार करने तथा अपने चार शावकों को पालने के लिए अपने शिविर में ही रहेगी।
भारत में चीता के पुन: पदार्पण का पता लगाना
- प्रारंभ: आंध्र प्रदेश राज्य वन्यजीव बोर्ड 1955 में राज्य के दो जिलों में प्रायोगिक आधार पर नीति का सुझाव देने वाला प्रथम राज्य था।
- पुन: पदार्पण पर सरकार का रुख: 1970 के दशक में, पर्यावरण विभाग ने, कुछ चीतों के लिए औपचारिक रूप से ईरान से अनुरोध किया, जिसके पास उस समय 300 एशियाई चीते थे।
- हालाँकि, किसी भी समझौते पर पहुँचने से पहले ही ईरान के शाह को पदच्युत कर दिया गया था।
- मांग का पुनः प्रवर्तन: भारत में चीतों को लाने के प्रयास 2009 में एक बार पुनः प्रारंभ किए गए तथा वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने चीतों के पुन: पदार्पण की व्यवहार्यता पर चर्चा करने के लिए एक बैठक आयोजित की।
- अनेक स्थलों का चयन किया गया, जिनमें कुनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान को सर्वाधिक उपयुक्त माना गया।
- ऐसा इसलिए था क्योंकि इस क्षेत्र में एक बड़ा पर्यावास क्षेत्र उपलब्ध था तथा इस स्थल पर रहने वाले ग्रामीणों को विस्थापित करने हेतु उल्लेखनीय निवेश पहले ही किए जा चुके थे।
- चीता के पुन: पदार्पण पर सर्वोच्च न्यायालय का मत: सर्वोच्च न्यायालय ने 2010 में कूनो-पालपुर में चीता को फिर से लाने के आदेश पर रोक लगा दी क्योंकि राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड को इस मामले की जानकारी नहीं थी।
- शीर्ष न्यायालय ने कहा कि एशियाई सिंह के पुन: प्रजनन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जो केवल गुजरात के गिर राष्ट्रीय उद्यान में पाया जाता है।
- 2020 में, सरकार द्वारा एक याचिका का उत्तर देते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की कि प्रायोगिक आधार पर अफ्रीकी चीतों को “सावधानीपूर्वक चयनित किए गए स्थल” में पदार्पित किया जा सकता है।
- चीतों का पुन: पदार्पण: हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में आठ में से तीन चीतों को मुक्त किया।
- इन चीतों को नामीबिया की राजधानी विंडहोक से लाया गया था।
- भारत लाए गए आठ जंगली चीतों में से पांच मादा कथा तीन नर हैं।
भारत में चीता, भारत में चीतों की विलुप्त होने की यात्रा का पता लगाना
- चीतों का शिकार:चीता, जिसे वश में करना अपेक्षाकृत सरल था तथा बाघों की तुलना में कम खतरनाक था, प्रायः भारतीय अमीरों द्वारा खेल-शिकार के लिए उपयोग किया जाता था।
- भारत में शिकार के लिए इस्तेमाल किए जा रहे चीतों का सर्वप्रथम उपलब्ध रिकॉर्ड 12वीं शताब्दी के संस्कृत पाठ मानसोल्लासा से प्राप्त होता है, जिसे कल्याणी चालुक्य शासक, सोमेश्वर तृतीय (1127-1138 ईस्वी तक शासन किया) द्वारा तैयार किया गया था।
- 1556-1605 तक शासन करने वाले सम्राट अकबर, विशेष रूप से शिकार के शौकीन थे एवं कुल मिलाकर 9,000 चीते एकत्र करने का रिकॉर्ड है।
- सम्राट जहाँगीर (1605-1627 तक शासन किया) ने अपने पिता का अनुसरण किया एवं कहा जाता है कि पालम के परगना में चीता द्वारा 400 से अधिक मृगों को पकड़ा गया था।
- शिकार के लिए जंगली चीतों को पकड़ने तथा उन्हें कैद में पालने में कठिनाई के कारण, अंग्रेजों के पदार्पण से पहले ही चीतों की आबादी में गिरावट आ रही थी।
- ब्रिटिश राज के तहत विलुप्त होने के करीब: वे बाघ, जंगली भैंस (बाइसन) तथा हाथी जैसे बड़े जानवरों का शिकार करना पसंद करते थे।
- ब्रिटिश राज के तहत, बस्तियां विकसित करने एवं नील, चाय तथा कॉफी बागान स्थापित करने के लिए वनों को व्यापक उत्तर पर साफ किया गया था।
- इसके परिणामस्वरूप बड़ी बिल्लियों के लिए पर्यावास स्थल की हानि हुई, जिससे उनकी संख्या में गिरावट में योगदान हुआ।
- ब्रिटिश अधिकारियों ने इन पशुओं को “हानिकारक जीव” माना तथा कम से कम 1871 के बाद से चीतों को मारने के लिए मौद्रिक पुरस्कार भी वितरित किए।
- आनुतोषिक (बाउंटी) शिकार के लिए पुरस्कार संभवतः चीतों की संख्या में गिरावट का कारण बने, क्योंकि एक छोटी संख्या को समाप्त करने से भी जीवित रहने हेतु आवश्यक निम्नतम स्तर पर भी जंगली चीतों की पुनरुत्पादन की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता।
- परिणामस्वरूप, 20वीं सदी तक भारत में जंगली चीते अत्यधिक दुर्लभ हो गए।
- भारत से चीतों की विलुप्ति: 1952 में, भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर देश में चीता को विलुप्त घोषित कर दिया।
- माना जाता है कि कोरिया, मध्य प्रदेश के महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव ने भारत में रिकॉर्ड किए गए आखिरी तीन चीतों को 1947 में मार डाला था।
परियोजना चीता से संबंधित विवरण
- प्रोजेक्ट चीता: भारत देश में चीतों को पुनः स्थापित करने हेतु विश्व की पहली अंतरमहाद्वीपीय विशाल वन् चीता स्थानान्तरण परियोजना संचालित कर रहा है।
- सह-अस्तित्व दृष्टिकोण: चीतों के पुन: पदार्पण के विगत प्रयासों के विपरीत, भारत का दृष्टिकोण इस दृष्टिकोण से विशिष्ट है कि इसका उद्देश्य सह-अस्तित्व के दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए बिना बाड़ वाले संरक्षित क्षेत्र में चीतों को पुनः स्थापित करना है।
- सह-अस्तित्व दृष्टिकोण का महत्व: इस दृष्टिकोण का सामाजिक वैज्ञानिकों ने समर्थन किया है, क्योंकि बाड़ लगाना चीतों की जनसंख्या वृद्धि को सीमित करते हुए, अन्य देशों में व्यापक दूरी तय करने की प्रवृत्ति को समाप्त करने में सफल रहा है। इसके अतिरिक्त, कुनो राष्ट्रीय उद्यान का मुख्य संरक्षण क्षेत्र काफी हद तक मानव निर्मित खतरों से मुक्त है।
- सह-अस्तित्व दृष्टिकोण से जुड़ी चुनौतियां: कूनो राष्ट्रीय उद्यान में इनका पुनः पदार्पण करना चुनौतीपूर्ण होगा, क्योंकि पार्क में बाड़ नहीं है एवं बिना बाड़ वाली व्यवस्था में कोई सफल पुन: पदार्पण नहीं हुआ है। वनों में मांस के लिए फँसाने कथा पशुओं के शिकार के कारण जवाबी हत्याओं जैसे मानवजनित खतरे चीतों के लिए जोखिम उत्पन्न करते हैं।
- संरक्षण को सुदृढ़ करना: जबकि चीतों को विभिन्न अफ्रीकी देशों में संरक्षित संरक्षित क्षेत्रों में फिर से लाया गया है, भारत का सह-अस्तित्व दृष्टिकोण संरक्षण प्रयासों के लिए एक नई सीमा प्रस्तुत करता है।
चीतों के पुन: पदार्पण का महत्व
मांसाहारी पदानुक्रम में उनकी विशिष्ट पारिस्थितिक भूमिका के कारण भारत में चीतों की पुनर्स्थापना से पारिस्थितिकी तंत्र के समग्र स्वास्थ्य में सुधार होने का अनुमान है। इसके अतिरिक्त, उनकी करिश्माई प्रकृति को देश के संरक्षण उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए सुरक्षा प्रयासों में वृद्धि करता तथा उन क्षेत्रों में पारिस्थितिक पर्यटन को प्रोत्साहित कर लाभ उठाया जा सकता है जिन्हें पहले अनदेखा कर दिया गया था।