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द हिंदू संपादकीय विश्लेषण: यूपीएससी एवं अन्य राज्य पीएससी परीक्षाओं के लिए प्रासंगिक विभिन्न अवधारणाओं को सरल बनाने के उद्देश्य से द हिंदू अखबारों के संपादकीय लेखों का संपादकीय विश्लेषण। संपादकीय विश्लेषण ज्ञान के आधार का विस्तार करने के साथ-साथ मुख्य परीक्षा हेतु बेहतर गुणवत्ता वाले उत्तरों को तैयार करने में सहायता करता है। आज का हिंदू संपादकीय विश्लेषण ‘शिवसेना के मुद्दे पर फैसले का विश्लेषण’ में शिवसेना मुद्दे पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले तथा इस फैसले के विभिन्न संबंधित मुद्दों पर चर्चा की गई है।
शिवसेना मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
शिवसेना के मुद्दे पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय पेचीदा है क्योंकि दोनों पक्ष इसे अपने निमित्त के अनुकूल मानते हैं।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कथित तौर पर मुद्दों का स्पष्ट विश्लेषण प्रदान किया है एवं अभिनव निष्कर्ष पर पहुंचे हैं।
- हालांकि, आम नागरिकों के लिए यह समझना चुनौतीपूर्ण है कि कैसे प्रत्येक पक्ष फैसले में कानूनी विवरणों को फायदेमंद मानता है।
- इस संदर्भ में, फैसले का अन्वेषण करना तथा उसके समक्ष पेश किए गए विवादास्पद मामलों पर देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा अपनाए गए सटीक रुख का पता लगाना महत्वपूर्ण है।
सदन के पटल पर शक्ति परीक्षण (फ्लोर टेस्ट) पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र के राज्यपाल के फ्लोर टेस्ट के आह्वान को अवैध बताते हुए फैसले की कड़ी आलोचना की। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि राज्यपाल, एक संवैधानिक प्राधिकारी के रूप में, दल के भीतर अथवा दलों के मध्य आंतरिक दलीय संघर्षों अथवा विवादों में स्वयं को उलझाने से बचना चाहिए।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि फ्लोर टेस्ट से पहले मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव ठाकरे के त्यागपत्र ने न्यायालय को उनके मुख्यमंत्री पद को बहाल करने एवं इस तरह इस मामले में पूर्ण न्याय करने से प्रभावी रूप से रोका है।
- किंतु इसमें कोई शंका नहीं है कि राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट का आह्वान करके कानूनी रूप से गलत किया।
वैकल्पिक सरकार के लिए आमंत्रित करने की संवैधानिकता
संविधान पीठ, हालांकि, एकनाथ शिंदे को एक वैकल्पिक सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने के राज्यपाल के फैसले में कोई त्रुटि नहीं पाती है, क्योंकि जब सरकार गिरती है तो ऐसी संभावनाओं का पता लगाना राज्यपाल के संवैधानिक उत्तरदायित्व के अंतर्गत आता है।
- किंतु फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाने की राज्यपाल की कार्रवाई, जिसे न्यायालय द्वारा अवैध करार दिया गया है, ने मुख्यमंत्री के इस्तीफे को प्रेरित किया।
- इस ‘अवैधता’ का फल एक वैकल्पिक सरकार का गठन था।
- यह मानना भोलापन है कि उस अवैधता का प्रभाव उद्धव ठाकरे के त्यागपत्र देने के क्षण से गायब हो गया।
राज्यपाल द्वारा विपक्षी दल को सरकार बनाने हेतु आमंत्रित नहीं किया जाना
लोकतांत्रिक राष्ट्रों में देखी जाने वाली सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत प्रथा के अनुसार, जब कोई सरकार गिरती है, तो संवैधानिक प्रमुख, चाहे वह राज्यपाल हो अथवा राष्ट्रपति, आमतौर पर यह पता लगाने का प्रयत्न करते हैं कि क्या विपक्ष का नेता नई सरकार बना सकता है।
- हालांकि, महाराष्ट्र के मामले में, राज्यपाल ने विधानसभा में विपक्ष के नेता से सरकार बनाने की उनकी क्षमता का पता लगाने के लिए संपर्क नहीं किया।
- इसके स्थान पर, राज्यपाल ने सरकार की स्थापना करने हेतु शिवसेना से एक सदस्य का चयन किया, जिसकी सरकार ने हाल ही में त्यागपत्र दे दिया था।
- राज्यपाल की इस कार्रवाई ने शिवसेना के भीतर दल के आंतरिक विवाद में उनकी सक्रिय भागीदारी का संकेत दिया।
- न्यायालय ने स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है कि राज्यपालों को दलों के आंतरिक संघर्षों में सम्मिलित होने से बचना चाहिए।
- हालांकि, इस मामले में, न्यायालय शिंदे सरकार के शपथ ग्रहण को स्वीकृति प्रदान करते समय शक्ति परीक्षण हेतु आमंत्रित करने की राज्यपाल की “अवैध” कार्रवाई के चल रहे परिणामों की अनदेखी करता है।
- ऐसा प्रतीत होता है कि सर्वोच्च न्यायालय ने पूरी प्रक्रिया के नैतिक पहलू की अवहेलना की है, जिसके परिणामस्वरूप निर्णय में नैतिक सुसंगतता की हानि हुई है।
व्हिप की वैधता पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
व्हिप की अवहेलना करने वाले विधायकों को अयोग्य ठहराने का प्रश्न ही व्हिप की वैधता निर्धारित करने का मौलिक मुद्दा उठाता है। इस मामले में, शिवसेना पार्टी के भीतर दोनों गुटों ने अपने सभी सदस्यों को व्हिप जारी किया, जिसके परिणामस्वरूप पारस्परिक अयोग्यता याचिकाएँ हुईं। न्यायालय ने उचित रूप से इस बात पर बल दिया कि अयोग्यता याचिका पर प्रारंभिक निर्णय स्पीकर के हाथ में होना चाहिए। परिणामस्वरुप, अयोग्यता का मामला विधानसभा अध्यक्ष को वापस भेज दिया गया है।
- इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण प्रश्न उभरता है: किस गुट का व्हिप वैध माना जाता है?
- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि विधायक दल के स्थान पर व्हिप एवं विधायक दल के नेता को नियुक्त करने का अधिकार राजनीतिक दल के पास है।
- हालाँकि, निर्णय ने यह कहकर अनावश्यक भ्रम उत्पन्न किया कि एक दल का विभाजन दो गुटों को जन्म देता है, जिसमें कोई भी गुट पूरी पार्टी का प्रतिनिधित्व नहीं करता है।
निष्कर्ष
निर्णय, वैध पक्ष का निर्धारण करने में गुटों एवं विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका पर चर्चा करके, भ्रम के स्तर का परिचय देता है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक अधिक निर्णायक रुख, स्पष्ट रूप से उद्धव ठाकरे की पार्टी को वैध व्हिप जारी करने के अधिकार के साथ मूल राजनीतिक दल के रूप में घोषित करना, मुंबई में भ्रम की वर्तमान स्थिति को रोक सकता था।


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