Home   »   The Hindu Editorial Analysis   »   The Hindu Editorial Analysis

ए गुड डाइवोर्स, द हिंदू संपादकीय विश्लेषण

द हिंदू संपादकीय विश्लेषण: यूपीएससी एवं अन्य राज्य पीएससी परीक्षाओं के लिए प्रासंगिक विभिन्न अवधारणाओं को सरल बनाने के उद्देश्य से द हिंदू अखबारों के संपादकीय लेखों का संपादकीय विश्लेषण। संपादकीय विश्लेषण ज्ञान के आधार का विस्तार करने के साथ-साथ मुख्य परीक्षा हेतु बेहतर गुणवत्ता वाले उत्तरों को तैयार करने में  सहायता करता है। “ए गोष्ट गोष्ट” के आज के हिंदू संपादकीय विश्लेषण ने गुड डाइवोर्स की सुविधा पर सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले पर चर्चा की क्योंकि सभी तलाक नाखुश नहीं हैं।

सुखद तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

जबकि सभी विवाह आनंदमय नहीं होते हैं तथा सभी तलाक दुखद नहीं होते हैं, हाल ही में तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को उन लोगों के लिए एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जाएगा जो एक असंतुष्ट विवाह को समाप्त करना चाहते हैं।

तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 (1) का अवलम्ब लेकर “किसी भी अभियोग अथवा मामले” में “पूर्ण न्याय” प्रदान करने के लिए उन युगलों को आपसी सहमति से तलाक देने की अनुमति प्रदान की है जो दुखद विवाह में फंसे हुए हैं।

  • इस विवेकाधीन शक्ति का उद्देश्य युगलों को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 बी द्वारा अनिवार्य रूप से उनके विवाह को विच्छेद करने हेतु एक स्थानीय न्यायालय के लिए छह से 18 माह तक प्रतीक्षा करने की “पीड़ा एवं दुख” से बचाना है।
  • न्यायमूर्ति संजय किशन कौल के नेतृत्व वाली खंडपीठ ने कहा कि मौजूदा तलाक कानून, जो मुख्य रूप से दोषारोपण पर आधारित है, टूटी हुई शादियों को प्रभावी ढंग से संबोधित नहीं करता है।
  • खंडपीठ ने आगे कहा कि यदि कोई विवाह सुधार की स्थिति से परे है, तो सार्वजनिक हित ‘विवाहित’ स्थिति को बरकरार रखने के स्थान पर इस वास्तविकता को स्वीकार करने में निहित है।
  • न्यायालय ने कहा कि वह घरेलू हिंसा अथवा दहेज के संबंध में किसी भी पक्ष के विरुद्ध चल रही आपराधिक या कानूनी कार्यवाही को समाप्त करने हेतु अनुच्छेद 142 का उपयोग कर सकती है।
  • खंडपीठ ने यह भी कहा कि सर्वोच्च न्यायालय “विवाह के अपरिवर्तनीय विच्छेद” के आधार पर तलाक दे सकता है यदि अलगाव अपरिहार्य है एवं क्षति अपरिवर्तनीय है, हालांकि यह वर्तमान में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक का वैध कारण नहीं है।

सुखद तलाक के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

संविधान के अनुच्छेद 142 (1) के उपयोग के माध्यम से आपसी सहमति से तलाक की अनुमति प्रदान करने वाले  सर्वोच्च न्यायालय के हाल के निर्णय को नाखुश विवाहों में उन लोगों के लिए एक सकारात्मक प्रगति के रूप में देखा गया है।

  • हालांकि, अपने निर्णय में, चेतावनी का एक शब्द था कि तलाक का अनुदान “अधिकार का विषय नहीं होगा, बल्कि एक विवेकाधिकार है जिसे… यह ध्यान में रखते हुए कि दोनों पक्षकारों के लिए ‘पूर्ण न्याय’ किया जाता है ,अत्यधिक सावधानी से प्रयोग किया जाना है।”
  • वैवाहिक मामलों में अनुच्छेद 142 को लागू करने से पूर्व सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनेक कारकों पर विचार किया जाएगा, जिसमें विवाह की अवधि, मुकदमेबाजी की अवधि, जोड़े के अलग रहने का समय, लंबित मामलों की प्रकृति तथा सुलह के प्रयास शामिल हैं।
  • न्यायालय को इस बात से संतुष्ट होना होगा कि तलाक का आपसी समझौता बलपूर्वक नहीं हुआ था।
  • भारत में, जबकि विगत दो दशकों में तलाक की संख्या दोगुनी हो गई है, तलाक की घटना अभी भी 1.1% है, शहरी क्षेत्रों में सबसे बड़ा अनुपात है।
  • किंतु तलाक के आंकड़े पूरी कहानी वर्णित नहीं करते; ऐसी कई महिलाएं हैं, विशेष रूप से गरीबों में, जिन्हें परित्यक्त या त्याग कर दिया गया है।
  • 2011 की जनगणना से ज्ञात हुआ है कि जो आबादी “असंसक्त” (सेपरेटेड) है वह तलाकशुदा संख्या का लगभग तीन गुना है।

निष्कर्ष

तलाक पर निर्णय लेने से पुणे “देखभाल एवं सावधानी” बरतने पर न्यायालय का जोर, इसमें भाग लेने के स्थान पर, एक ऐसे देश में एक सकारात्मक प्रगति है जहां लैंगिक भेदभाव प्रचलित है तथा महिलाओं का एक महत्वपूर्ण अंश आर्थिक रूप से निर्भर है। यह दृष्टिकोण मानता है कि सभी व्यक्तियों की विवाह समानता तक समान पहुंच नहीं है एवं गरीबी में उन लोगों के समक्ष उपस्थित होने वाली चुनौतियों को स्वीकार करता है।

 

Sharing is caring!

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *