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जल क्षेत्र में भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियां
प्रासंगिकता
- जीएस 1: भौगोलिक विशेषताएं और उनके स्थान-महत्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताओं में परिवर्तन (जल-निकायों और हिम-छत्रक सहित)
- जीएस 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और अवक्रमण
प्रसंग
- स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन ने हाल ही में एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की कि भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग भारत में जल क्षेत्र को किस प्रकार लाभ प्रदान कर सकता है।
भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियां क्या हैं?
- उपग्रह आधारित सुदूर संवेदन, सर्वेक्षण और मानचित्रण, जीपीएस आधारित उपकरण और सेंसर, जीआईएस और त्रिविमीय विश्लेषण, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, बिग डेटा विश्लेषण, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, 5 जी, रोबोटिक्स और डिजिटल अनुलिपि जैसी तकनीकों को सामूहिक रूप से भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियां कहा जाता है।
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इसकी आवश्यकता क्यों है?
- भारत अपनी जनसंख्या एवं कृषि में जल की आवश्यकता के कारण भूजल पर अत्यधिक निर्भर है।
- भारत विश्व में भूजल का सर्वाधिक उपयोगकर्ता है तथा जल संकट से सर्वाधिक प्रभावित देशों में से एक है।
- विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) ने जल संकट को इस सदी के प्रमुख वैश्विक मुद्दों में से एक माना है।
- अलकनंदा और भागीरथी में जलविद्युत परियोजनाओं ने ऊपरी गंगा को पारिस्थितिक मरुस्थल में परिवर्तित कर दिया है।
- राजस्थान और गुजरात में खनन कार्य के कारण भूजल में यूरेनियम संदूषण।
- देश में ऊर्जा क्षेत्र की जल पर अत्यधिक निर्भरता है।
- नीति आयोग ने बताया कि हिमनदों के घटने के कारण 30% हिमालयी झरने पहले ही सूख चुके हैं।
- नीति आयोग के समग्र जल प्रबंधन सूचकांक ने सूचित किया कि निरंतर जल संकट से 2030 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद में 6% की हानि होगी।
जल क्षेत्र के लिए भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी
- ये जल क्षेत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
- संपत्ति और संसाधनों के बारे में डेटा एकत्र करने के अतिरिक्त, यह विश्लेषण, रिपोर्टिंग और अनुवीक्षण, योजना तथा निर्णय लेने और मुद्दे से निपटने के लिए सुविज्ञ कार्रवाई करने में भी सक्षम बनाता है।
- यह प्रक्रिया दक्षताओं में भी सहायता कर सकता है, परियोजना परि-नियोजन की अवधि को कम कर सकता है, बेहतर संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित कर सकता है, और यह सुविज्ञ निर्णय लेने के लिए विभिन्न स्रोतों से डेटा को आत्मसात करने के लिए एक एकीकृत मंच भी प्रदान करता है।
चल रही विभिन्न योजनाओं में भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों का अनुप्रयोग
- जल जीवन मिशन: ये प्रौद्योगिकियां जल स्रोत/पाइपलाइनों की तुलना में जनसंख्या घनत्व के मानचित्रण, पाइप आधारित जल नेटवर्क का मानचित्रण, जल मापन इत्यादि में सहायता कर सकते हैं।
- नमामि गंगे: आर्द्रभूमियों का जीआईएस सज्जित डेटाबेस, लिडार का उपयोग करके गंगा नदी के दोनों तटों पर 10 किमी. उभयरोधी के साथ बाढ़ का मैदान, जीआईएस प्रणाली में आईओटी सेंसर का उपयोग करके जल गुणवत्ता मानचित्रण, सद्य अनुक्रिया नदी जल गुणवत्ता, आदि।
- राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना: अंतःसंबंधन के लिए भू-स्थानिक कार्यक्षेत्र में संभावित मार्गों की पहचान करने के लिए उच्च-विभेदन उपग्रह आकृति डेटासेट का उपयोग किया जा सकता है। इन छवियों का उपयोग सूखा प्रवण क्षेत्रों को चित्रित करने के लिए किया जा सकता है।
- कायाकल्प और शहरी रूपांतरण के लिए अटल मिशन (अमृत): पाइप आधारित जल वितरण नेटवर्क और जल के प्रवाह का मानचित्रण, जीपीआर का उपयोग करके भूमिगत उपयोगिताओं का क्रमवीक्षण, नगरीय प्रशासन के लिए सद्य अनुक्रिया संचार और सहयोग मंच।
- राष्ट्रीय जल मिशन: जल अपवाह, वनस्पति आवरण, गाद, अतिक्रमण, मैंग्रोव क्षेत्रों का संरक्षण, मानव बस्तियों और मानवीय गतिविधियों और जलग्रहण और जल निकायों पर इसके प्रभाव पर बल देते हुए जलग्रहण और भूमि उपयोग प्रतिरूप का सर्वेक्षण करना।
- अटल भूजल योजना (अभी): भू-भाग, मृदा की प्रकृति, जी डब्ल्यू संभावित क्षेत्रों, वर्षा जल अंत:स्यंदन क्षमता, जल अपवाह हेतु स्थल का चयन, वर्षा जल संचयन को समझने के लिए उच्च विभेदन छवियों का उपयोग किया जा सकता है।
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आगे की राह
- जल संकट को अधिकार आधारित दृष्टिकोण के बजाय आवश्यकता आधारित दृष्टिकोण के रूप में देखा जाना चाहिए।
- पीढ़ीगत न्याय को प्रोत्साहन देने के लिए एक न्यायसंगत और विस्तृत समाधान आवश्यक है।