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स्वर व व्यंजन – परिभाषा, भेद और उदाहरण, Swar v Vyanjan In Hindi PDF

स्वर और व्यंजन – परिभाषा, प्रकार, और उदाहरण – स्वर और व्यंजन हिंदी वर्णमाला के महत्वपूर्ण घटक हैं, जो शब्द और वाक्य बनाने के लिए उपयोग होते हैं। अंग्रेजी में, इन्हें स्वर और सम्मिलित किया जाता है। ये तत्व हिंदी व्याकरण में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और बहु-विकल्पीय प्रश्नों में आते हैं। इस संदर्भ में, हम स्वर और व्यंजन की परिभाषा, भेद, और उदाहरणों की समझ करेंगे।

वर्ण किसे कहते हैं

वर्ण, भाषा विज्ञान और व्याकरण में अक्षरों को वर्गीकृत करने और वर्गीकरण करने के लिए प्रयुक्त होता है। वर्ण अक्षरों के छोटे भाषाई इकाइयों को कहा जाता है जिन्हें व्यक्ति उच्चारण और लिखने के लिए प्रयुक्त करते हैं। हिंदी भाषा में, वर्ण अक्षर हैं जिन्हें व्यक्त करने के लिए निम्नलिखित कुछ मुख्य वर्णमालाएँ होती हैं:

  • स्वर (Vowels): अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः आदि।
  • व्यंजन (Consonants): क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह, क्ष, त्र, ज्ञ आदि।

वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई होते हैं और इनके संयोजन से शब्द बनते हैं। वर्ण विज्ञान और व्याकरण के माध्यम से वर्णों के स्वरूप, उच्चारण, और उनके प्रयोग के नियमों का अध्ययन किया जाता है। 

वर्ण के भेद : –

वर्ण व्याकरण में, वर्णों को दो मुख्य भेदों में विभाजित किया जाता है: स्वर और व्यंजन।

  1. स्वर (Vowels): स्वर वर्ण वह होते हैं जिनमें आवाज केंद्रीय रूप से उत्पन्न होता है, और उनका उच्चारण बिना किसी व्यंजन के किया जा सकता है। स्वर वर्ण हिंदी में अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः आदि होते हैं.
  2. व्यंजन (Consonants): व्यंजन वर्ण वह होते हैं जिनमें आवाज व्यंजन के स्थान पर उत्पन्न होता है, और उनके उच्चारण के लिए व्यंजन के सहयोग की आवश्यकता होती है। व्यंजन वर्ण हिंदी में क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह, क्ष, त्र, ज्ञ आदि होते हैं

स्वर किसे कहते हैं

वे ध्वनियाँ जिनके उच्चारण में वायु बिना किसी अवरोध के बाहर निकलती है, स्वर कहलाते है।स्वर (Vowels) वर्ण व्याकरण में वर्णों का महत्वपूर्ण भाग होते हैं। स्वर वर्ण वो वर्ण होते हैं जिनमें आवाज केंद्रीय रूप से उत्पन्न होता है, और उनका उच्चारण बिना किसी व्यंजन के किया जा सकता है। स्वर वर्ण शब्दों के मूल ध्वनियों को प्रतिष्ठापित करते हैं और उनके साथ व्यंजन वर्णों का संरचना बनाने में मदद करते हैं।

Swar Kitne Prakar ke Hote Hai स्वर के भेद

उच्चारण समय या मात्रा के आधार पर स्वरो के तीन भेद है।

  1. हस्व स्वर : – इन्हे मूल स्वर तथा एकमात्रिक स्वर भी कहते है। इनके उच्चारण में सबसे कम समय लगता है। जैसे – अ, इ, उ, ऋ ।
  2. दीर्घ स्वर : – इनके उच्चारण में कस्य स्वर की अपेक्षा दुगुना समय लगता है अर्थात दो मात्राए लगती है, उसे दीर्घ स्वर कहते है। जैसे – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ।
  3. प्लुत स्वर : – संस्कृत में प्लुत को एक तीसरा भेद माना जाता है, पर हिन्दी में इसका प्रयोग नहीं होता जैसे – ओउम् ।

प्रयत्न के आधार पर: – जीभ के प्रयत्न के आधार पर तीन भेद है।

  1. अग्र स्वर : – जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का अगला भाग ऊपर नीचे उठता है, अग्र स्वर कहते है जैसे – इ, ई, ए, ऐ ।
  2. पश्च स्वर : – जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पिछला भाग सामान्य स्थिति से उठता है, पश्च स्वर कहे जाते जैसे – ओ, उ, ऊ, ओ, औ तथा ऑ ।
  3. मध्य स्वर : – हिन्दी में ‘अ’ स्वर केन्द्रीय स्वर है। इसके उच्चारण में जीभ का मध्य भाग थोड़ा – सा ऊपर उठता है।

मुखाकृति के आधार पर :

  1. संवृत : – वे स्वर जिनके उच्चारण में मुँह बहुत कम खुलता है। जैसे – इ, ई, उ, ऊ।
  2. अर्द्ध संवृत : – वे स्वर जिनके उच्चारण में मुख संवृत की अपेक्षा कुछ अधिक खुलता है जैसे – ए, ओ ।
  3. विवृत : – जिन स्वरों के उच्चारण में मुख पूरा खुलता है। जैसे – आ ।
  4. अर्द्ध विवृत : – जिन स्वरों के उच्चारण में मुख आधा खुलता है। जैसे – अ, ऐ, औ।

ओष्ठाकृति के आधार पर :

  1. वृताकार : – जिनके उच्चारण में होठो की आकृति वृत के समान बनती है। जैसे – उ, ऊ, ओ, औ ।
  2. अवृताकार : – इनके उच्चारण में होठो की आकृति अवृताकार होती है। जैसे – इ, ई, ए, ऐ ।
  3. उदासीन : – ‘अ’ स्वर के उच्चारण में होठ उदासीन रहते है।
  • ‘ऑ स्वर अग्रेजी से हिन्दी में आया है।

व्यंजन किसे कहते हैं

व्यंजन (Consonants) वर्ण व्याकरण में वर्णों का एक महत्वपूर्ण भाग होते हैं। ये वर्ण भाषा में ऐसे ध्वनियों को प्रतिष्ठापित करते हैं जिनमें आवाज के उत्पन्न होने के लिए व्यंजन के स्थान पर कोई बाधक नहीं होता। व्यंजन वर्णों के उच्चारण के लिए व्यक्ति को व्यंजन के सहयोग की आवश्यकता होती है, जैसे कि क, ख, ग, घ, आदि।

व्यंजन के भेद

प्रयत्न के आधार पर व्यंजन के भेद :

  1. स्पर्श : – जिनके उच्चारण में मुख के दो भिन्न अंग – दोनों ओष्ठ, नीचे का ओष्ठ और ऊपर के दांत, जीभ की नोक और दांत आदि एक दूसरे से स्पर्श की स्थिति में हो, वायु उनके स्पर्श करती हुई बाहर आती हो। जैसे : – क्, च्,ट्, त्, प्, वर्गों की प्रथम चार ध्वनियाँ ।
  2. संघर्षी : – जिनके उच्चारण में मुख के दो अवयव एक – दूसरे के निकट आ जाते है और वायु निकलने का मार्ग संकरा हो जाता है तो वायु घर्षण करके निकलती है, उन्हें संघर्षी व्यंजन कहते है। जैसे – ख, ग, ज, फ, श, ष्, स् ।
  3. स्पर्श संघर्षी : – जिन व्यंजनों के उच्चारण में पहले स्पर्श फिर घर्षण की स्थिति हो। जैसे – च्, छ, ज, झ् ।
  4. नासिक्य : – जिन व्यंजनों के उच्चारण में दात, ओष्ठ, जीभ आदि के स्पर्श के साथ वायु नासिका मार्ग से बाहर आती है। जैसे – ङ, ञ, ण, न, म
  5. पाश्विक : – जिन व्यंजनो के उच्चारण में मुख के मध्य दो अंगो के मिलने से वायु मार्ग अवरुद्ध होने के बाद होता है। जैसे – ल्।
  6. लुण्ठित : – जिनके उच्चारण में जीभ बेलन की भाँति लपेट खाती है। जैसे – र् ।
  7. उत्क्षिप्त : – जिनके उच्चरण में जीभ की नोक झटके से तालु को छूकर वापस आ जाती है, उन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन कहते है। जैसे – द् ।
  8. अर्द्ध स्वर : – जिन वर्णों का उच्चारण अवरोध के आधार पर स्वर व व्यंजन के बीच का है। जैसे – य्, व् ।

उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजन के भेद :

  1. स्वर – यन्त्रमुखी : – जिन व्यंजनों का उच्चारण स्वर – यन्त्रमुख से हो। जैसे – ह्, स ।
  2. जिह्वामूलीय : – जिनका उच्चारण जीभ के मूल भाग से होता है। जैसे – क्, ख्, ग् ।
  3. कण्ठय : – जिन व्यंजनो के उच्चारण कण्ठ से होता है, इनके उच्चारण में जीभ का पश्च भाग कोमल तालु को स्पर्श करता है। जैसे – ‘क’ वर्ग ।
  4. तालव्य : – जिनका उच्चारण जीभ की नोक या अग्रभाग के द्वारा कठोर तालु के स्पर्श से होता है। जैसे – ‘क’ वर्ग, य् और श् ।
  5. मूर्धन्य : – जिन व्यंजनों का उच्चारण मूर्धा से होता है। इस प्रक्रिया में जीभ मूर्धा का स्पर्श करती है। जैसे – ‘ट’ वर्ग, ष्।
  6. वत्र्सय : – जिन ध्वनियों का उद्भव जीभ के द्वारा वर्ल्स या ऊपरी मसूढ़े के स्पर्श से हो । जैसे – न्, र्, ल्
  7. दन्त्य : – जिन व्यंजनों का उच्चारण दाँत की सहायता से होता है। इसमें जीभ की नोक उपरी दंत पंक्ति का स्पर्श करती है। जैसे – ‘त’ वर्ग, स् ।
  8. दंतोष्ठ्य : – इन ध्वनियों के उच्चारण के समय जीभ दाँतो को लगती है तथा होंठ भी कुछ मुड़ते है। जैसे – व्, फ् ।
  9. ओष्ठ्य : – ओष्ठ्य व्यंजनो के उच्चारण में दोनो होंठ परस्पर स्पर्श करते हैं तथा जिह्म निष्क्रिय रहती है जैसे – ‘प’ वर्ग ।

स्वर तंत्रियों में उत्पन्न कम्पन के आधार पर :

  1. घोष : – जिन ध्यनियों के उच्चारण के समय में स्वर – तन्त्रियां एक – दूसरे के निकट होती है और निःश्वास वायु निकलने में उसमें कम्पन हो । प्रत्येक वर्ग की अन्तिम तीन ध्वनियाँ घोष होती है।
  2. अघोष : – जिनके उच्चारण – समय स्वर – तंत्रियों में कम्पन न हो। प्रत्येक वर्ग की प्रथम दो ध्वनियाँ अघोष होती है।

श्वास (प्राण) की मात्रा के आधार पर :

  1. अल्पप्राण : – जिनके उच्चारण में सीमित वायु निकलती है, उन्हें अल्प्राण व्यंजन कहते है ऐसी ध्वनियाँ ‘ह’ रहित होती है। प्रत्येक वर्ग की पहली, तीसरी, पांचवी ध्वनियाँ अल्पप्राण होती है।
  2. महाप्राण : – जिनके उच्चारण में अपेक्षाकृत अधिक वायु निकलती है। ऐसी ध्वनि ‘ह’ युक्त होती है। प्रत्येक वर्ग की दूसरी और पाँचवी ध्वनि महाप्राण होती है।
  • संयुक्त व्यंजन: – जब दो अलग – 2 व्यंजन संयुक्त होने पर अपना रूप बदल लेते है तब वे संयुक्त व्यंजन कहलाते है। जैसे – क्ष, त्र, श्र, ज्ञ
  • अयोगवाह : – जिन वर्णो का उच्चारण व्यंजनो के उच्चारण की तरह स्वर की सहायता से होता है, परंतु इनके उच्चारण से पूर्व स्वर आता है, अतः स्वर व व्यंजनो के मध्य की स्थिति के कारण ही इनको अयोगवाह कहा जाता है। जैसे –अं, अँ और अः
  • अनुस्वार : – इनका उच्चारण करते समय वायु केवल नाक से निकलती है। जैसे – रंक, पंक
  • अनुनासिक : – इनका उच्चारण मुख और नासिका दोनों से मिलकर निकलता है। जैसे – हँसना, पाँच

व्यंजन और स्वर में अंतर:

विशेषता स्वर व्यंजन
उच्चारण बिना किसी अन्य वर्ण की सहायता से बिना स्वर की सहायता से नहीं
संख्या 11 42
कार्य शब्दों की आत्मा शब्दों का शरीर
उच्चारण हवा मुख-गुहा से बिना रुकावट के हवा मुख-गुहा में किसी न किसी अंग से टकराकर

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FAQs

स्वरों और व्यंजनों को परिभाषित करें।

FAQs on स्वर और व्यंजन

स्वरों और व्यंजनों को परिभाषित करें।

स्वर वे ध्वनियाँ हैं जिनके उच्चारण में वायु बिना किसी अवरोध के बाहर निकलती है। व्यंजन वे ध्वनियाँ हैं जिनके उच्चारण में वायु के मार्ग में कुछ अवरोध होता है।

41 व्यंजन कौन कौन से हैं?

व्यंजन क्रम (कुल -33):
क वर्ग: क, ख, ग, घ, ङ
च वर्ग: च, छ, ज, झ, ञ
ट वर्ग: ट, ठ, ड, ढ, ण
त वर्ग: त, थ, द, ध, न
प वर्ग: प, फ, ब, भ, म
अंतःस्थ: य, र, ल, व
ऊष्म: श, ष, स, ह,
संयुक्त व्यंजन (कुल -4): क्ष, त्रं, ज्ञ, श्र

द्विगुण व्यंजन (कुल -2): ड़ ढ़.

अनुस्वार और अनुनासिक (कुल -1): अं (ं) या अँ (ँ)
विसर्ग (कुल -1): अः या (:)

स्वरों के कितने भेद हैं?

स्वर के तीन भेद हैं:

हस्व स्वर: इनके उच्चारण में कम समय लगता है। उदाहरण: अ, इ, उ, ऋ।
दीर्घ स्वर: इनके उच्चारण में हस्व स्वरों की तुलना में दोगुना समय लगता है। उदाहरण: आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
प्लुत स्वर: इनके उच्चारण में दीर्घ स्वरों की तुलना में भी अधिक समय लगता है। संस्कृत में प्लुत स्वर का प्रयोग होता है, लेकिन हिंदी में नहीं होता है।

व्यंजनों के कितने भेद हैं?

व्यंजनों के कई भेद हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख भेद निम्नलिखित हैं:

प्रयत्न के आधार पर: व्यंजन के उच्चारण में जीभ, होंठ, दांत, तालु आदि अंगों का जो प्रयत्न होता है, उसके आधार पर व्यंजन के चार भेद होते हैं:
स्पर्श व्यंजन: इनके उच्चारण में मुख के दो अंगों का स्पर्श होता है। उदाहरण: क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ।
संघर्षी व्यंजन: इनके उच्चारण में मुख के दो अंगों का घर्षण होता है। उदाहरण: श, ष, स, ह।
नासिक्य व्यंजन: इनके उच्चारण में मुख के दो अंगों के स्पर्श के साथ वायु नाक से भी निकलती है। उदाहरण: ङ, ञ, ण, न, म।
अर्द्ध स्वर व्यंजन: इनके उच्चारण में स्वर और व्यंजन के बीच का स्वर होता है। उदाहरण: य, र।
उच्चारण स्थान के आधार पर: व्यंजन के उच्चारण में भाग लेने वाले अंगों के आधार पर व्यंजन के दस भेद होते हैं:
कण्ठ्य व्यंजन: इनके उच्चारण में कण्ठ का प्रयोग होता है। उदाहरण: क, ख, ग, घ।
तालव्य व्यंजन: इनके उच्चारण में तालु का प्रयोग होता है। उदाहरण: ट, ठ, ड, ढ, ण।
मूर्धन्य व्यंजन: इनके उच्चारण में मूर्धा का प्रयोग होता है। उदाहरण: त, थ, द, ध, न।
दन्त्य व्यंजन: इनके उच्चारण में दाँतों का प्रयोग होता है। उदाहरण: प, फ, ब, भ।
दंतोष्ठ्य व्यंजन: इनके उच्चारण में दाँतों और ओठों का प्रयोग होता है। उदाहरण: च, छ, ज, झ, श, ष।
ओष्ठ्य व्यंजन: इनके उच्चारण में होंठों का प्रयोग होता है। उदाहरण: प, फ, ब, भ।
जिह्वामूलीय व्यंजन: इनके उच्चारण में जीभ की जड़ का प्रयोग होता है। उदाहरण: क्, ख्।
स्वरयन्त्रमुखी व्यंजन: इनके उच्चारण में स्वरयन्त्र का प्रयोग होता है। उदाहरण: ह।
स्वर तंत्रियों में उत्पन्न कम्पन के आधार पर: व्यंजन के उच्चारण में स्वर तंत्रियों के कम्पन के आधार पर व्यंजन के दो भेद होते हैं:
घोष व्यंजन: इनके उच्चारण में स्वर तंत्रियों में कम्पन होता है। उदाहरण: क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ, ण, म, य, र, ल

अनुनासिक व्यंजनों की संख्या कितनी होती है?

अनुनासिक : - इनका उच्चारण मुख और नासिका दोनों से मिलकर निकलता है। जैसे - हँसना, पाँच

Swar Kitne Prakar ke Hote Hai

हिन्दी भाषा में मूल रूप से ग्यारह स्वर होते हैं।