कारक- परिभाषा, भेद और उदहारण : कारक- परिभाषा, भेद और उदहारण topic comes in hindi grammar section which contains 2-3 marks in teaching exams. कारक- परिभाषा, भेद और उदहारण contain definitions, types and its example with details . Karak in Hindi is easy and scoring topic. In recruitment exams, कारक (Karak) comes with various kind of questions i.e. कारक के उदाहरण क्या है?, कारक से क्या अभिप्राय है?. Candidate can learn कारक here with each examples.
कारक शब्द का शाब्दिक अर्थ है – करने वाला अर्थात क्रिया को पूरी तरह करने में किसी न किसी भूमिका को निभाने वाला। संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से उसका संबंध वाक्य के दूसरे शब्दों से पता चले, उसे कारक कहते है।
विभक्ति या परसर्ग
कारकों का रुप प्रकट करने के लिये उनके साथ जो शब्द चिन्ह लगते है, उन्हें विभक्ति कहते है। इन कारक चिन्हों या विभक्तियों को परसर्ग भी कहते है। जैसे – ने, में, को, से।
कारक के भेद
विभक्ति | कारक | क्रिया चिन्ह |
प्रथमा | कर्ता | ने |
द्वितीया | कर्म | को |
तृतीया | करण | से, के द्वारा |
चतुर्थी | सम्प्रदान | के लिए , को |
पंचमी | अपादान | से (अलग होने के अर्थ में) |
षष्ठी | सम्बन्ध | का, के, की |
सप्तमी | अधिकरण | में, पर |
सम्बोधन | सम्बोधन | हे! ओर! |
- कर्ता कारक – Karta Karak
क्रिया के करने वाले को कर्ता कारक कहतें है। यह पद प्रायः संज्ञा या सर्वनाम होता है। इसका सम्बन्ध क्रिया से होता है। जैसे – राम ने पत्र लिखा । यहाँ कर्ता राम है।कर्ता कारक का प्रयोग दो प्रकार से होता है –
- परसर्ग सहित – जैसे – राम ने पुस्तक पढ़ी। यहाँ कर्ता के साथ ‘ने’ परसर्ग है । भूतकाल की सकर्मक क्रिया होने पर कर्ता के साथ ‘ने’ परसर्ग लगाया जाता है।
- परसर्ग रहित – (क) भूतकाल की अकर्मक क्रिया के साथ परसर्ग ‘ने’ नही लगता| जैसे – राम गया। मोहन गिरा।
वर्तमान और भविष्यत काल में परसर्ग का प्रयोग नहीं होता।
जैसे – बालक लिखता है (वर्तमान काल)
रमेश घर जायगा। (भविष्य काल)
2. कर्म कारक -Karm Karak
जिस वस्तु पर क्रिया का फल पड़ता है, संज्ञा के उस रुप को कर्म कारक कहते है। इसका विभक्ति चिन्ह ‘को’ है।
जैसे – (क) राम ने रावण को मारा । यहाँ मारने की क्रिया का फल रावण पर पड़ा है।
(ख) उसने पत्र लिखा । यहाँ लिखना क्रिया का फल ‘पत्र’ पर है, अतः पत्र कर्म है।
3. करण कारक – Karan Karak
संज्ञा के जिस रुप से क्रिया के साधन का बोध हो, उसे करण कारक कहते है। इसका विभक्ति चिन्ह है – से (द्वारा)
जैसे – राम ने रावण को बाण से मारा।
यहाँ राम बाण से या बाण द्वारा रावण को मारने का काम करता है। यहाँ ‘बाण से’ करण कारक है।
4. सम्प्रदान कारक – Sampradan Karak
सम्प्रदान का अर्थ है देना । जिसे कुछ दिया जाए या जिसके लिए कुछ किया जाए उसका बोध कराने वाले संज्ञा के रुप को सम्प्रदान कारक कहते है। इसका विभक्ति चिन्ह ‘के लिए’ या ‘को है।
जैसे – मोहन ब्राह्मण को दान देता है या मोहन ब्राह्मण के लिए दान देता है।
यहाँ ब्राह्मण को या ब्राह्मण के लिए सम्प्रदान कारक है।
5. अपादान कारक – Apadan karak
संज्ञा के जिस रुप से अलगाव का बोध हो उसे अपादान कारक कहते है। इसका विभक्ति चिन्ह से’ है।
जैसे – वृक्ष से पत्ते गिरते हैं ।
मदन घोड़े से गिर पड़ा।
यहाँ वृक्ष से और घोड़े से अपादान कारक है । अलग होने के अतिरिक्त निकलने, सीखने, उरने, लजाने, अथवा तुलना करने के भाव में भी इसका प्रयोग होता है।
- निकलने के अर्थ में – गंगा हिमालय से निकलती है।
- उरने के अर्थ में – चोर पुलिस से उरता है।
- सीखने के अर्थ में – विद्यार्थी अध्यापक से सीखते है।
- लजाने के अर्थ में – वह ससुर से लजाती है।
- तुलना के अर्थ में – राकेश रुपेश से चतुर है।
- दूरी के अर्थ में – पृथ्वी सूर्य से दूर है।
6. सम्बन्ध कारक -Sambhandh Karak
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से उसका सम्बन्ध वाक्य की दूसरी संज्ञा से प्रकट हो, उसे सम्बन्ध कारक कहते हैं। इसके परसर्ग हैं – का, के, की, ना, ने, नो, रा,रे,री आदि ।
जैसे – राजा दशरथ का बड़ा बेटा राम था।
राजा दशरथ के चार बेटे थे।
राजा दशरथ की तीन रानियाँ थी।
विशेष :- संबंध कारक की यह विशेषता हैं कि उसकी विभक्तियाँ (का, के, की)
संज्ञा, लिंग, वचन के अनुसार बदल जाती हैं।
जैसे – (क) लड़के का सिर दुख रहा है।
(ख) लड़के के पैर में दर्द है।
(ग) लड़के की टॉग में चोट है।
7. अधिकरण कारक – Adhikaran Karak
अधिकरण का अर्थ है आधार या आश्रय । संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से क्रिया के आधार (स्थान, समय, अवसर आदि) का बोध हो, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इस कारक के विभक्ति चिन्ह हैं – में, पे, पर ।
जैसे – (क) उस कमरे में चार चोर थे
(ख) मेज पर पुस्तक रखी थी।
8. सम्बोधन कारक – Sanbodhan karak
शब्द के जिस रुप से किसी को सम्बोधित किया जाए या
पुकारा जाए, उसे सम्बोधन कारक कहते हैं। इसमें ‘हे’, ‘अरे’ का प्रयोग किया जाता है।
जैसे – हे प्रभों, क्षमा करो। अरे बच्चो, शान्त हो जाओ।
विशेष :- कभी – कभी नाम पर जोर देकर सम्बोधन का काम चला लिया जाता है। वहाँ कारक चिन्हों की आवश्यकता नही होती। जैसे – अरे । आप आ गए। अजी। इधर तो आओ।