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प्राथमिक स्तर पर हिंदी व्याकरण शिक्षण एक महत्वपूर्ण विषय है, जिससे बच्चों को हिंदी भाषा के मूल नियमों और संरचना का समझ विकसित करने में मदद मिलती है। यह उन्हें सही रचनात्मकता, व्याकरण, वाक्य रचना, और पाठबद्धता के लिए तैयार करता है।
व्याकरण शिक्षण
व्याकरण का शुद्ध प्रयोग करना एक कला है जिसके लिए चार कौशलों का होना अनिवार्य हैं- पढ़ना, लिखना, बोलना और सुनना। किन्तु भाषा कौशल के आ जाने से बालक केवल अर्थ और भाव ही ग्रहण कर पाता है। वह भाषा को शुद्ध नहीं कर पाता, अत: भाषा में शुद्धता लाने के लिए व्याकरण शिक्षण की आवश्यकता होती है। क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह दैनिक जीवन में आदान-प्रदान करने के लिए भाषा का प्रयोग करता है और भाषा की मितव्यता व्याकरण के माध्यम से आती है और भाषा को एक निश्चित रूप देने के लिए हम व्याकरण का प्रयोग करते हैं।
- परिभाषा “भाषा के रूप की शुद्ध व्यवस्था ही व्याकरण है”। – वहयूम फील्ड
- “प्रचलित भाषा सम्बन्धी नियमों की शद्ध व्यवस्था ही व्याकरण – डॉ. जगर
व्याकरण के शिक्षण उद्देश्य
- भाषा को विकृति से बचाने के लिए
- भाषा के शुद्ध रूप को समझने एवं उसमें स्थायित्व लाने के लिए
- भाषा की सीमाओं का उल्लंघन होने से बचाने के लिए
- भाषा के सर्वमान्य रूप को सीखने के लिए
- विद्यार्थियों में रचना तथा सर्जनात्मक प्रवृत्ति का निर्माण करने के लिए
- कम शब्दों में शुद्धतापूर्वक अपने भावों को व्यक्त करने के लिए
- भाषा की अशुद्धता को समझने व परखने के लिए
- छात्रों की ध्वनियों, ध्वनियों के सूक्ष्म अन्तर एवं उच्चारण के नियमों का ज्ञान कराना।
- विद्यार्थियों में विश्लेषण चिन्तन एवं तर्क क्षमता का विकास करना।
- भाषा के व्याकरण संगत रूप को सुरक्षित रखना।
व्याकरण के भेद
- औपचारिक व्याकरण – जब बच्चों को एक पाठ्य-पुस्तक की सहायता से विधिवत् ढंग से क्रमपूर्वक व्याकरण के नियमों, उपनियमों, उनके भेदों तथा उपभेदों का ज्ञान कराया जाता है, तो वह औपचारिक व्याकरण शिक्षण कहलाता है।
- अनौपचारिक व्याकरण – बच्चों में भाषा का सीखना अनुकरण विधि द्वारा होता है। वे दूसरों की नकल करके भाषा को सीखते हैं।
व्याकरण शिक्षण की विधियाँ
व्याकरण शिक्षण के लिए हम निम्नलिखित विधियाँ अपना सकते हैं –
- आगमन विधि – आगमन विधि में हम उदाहरणों के द्वारा पढ़ते है। उदाहरणों से सामान्य सिद्धान्त निकालते हैं। इस विधि में हम सरल से कठिन, ज्ञात से अज्ञात और स्थूल से सूक्ष्म की ओर चलते हैं।
- निगमन विधि – जब शिक्षण, नियमों पर आधारित होकर करवाया जाता है तो यह निगमन विधि कहलाती है। बच्चे बताए हुए नियमों को रट लेते हैं। यह विधि रट्टामार विधि मानी जाती है।
- समवाय विधि – इस विधि का दूसरा नाम सहयोग प्रणाली है। इस विधि में भाषा के अन्तर्गत मौखिक या लिखित कार्य कराते समय प्रासंगिक रूप से व्याकरण के नियमों का ज्ञान कराया जाता है।
- भाषा संसर्ग प्रणाली – यह विधि उच्च माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है। इस प्रणाली में बच्चों को ऐसे लेखकों की रचनाएँ पढ़ने के लिए दी जाएँ जिनका भाषा पर पूर्ण अधिकार है। इस विधि में बच्चे व्याकरण के नियमों पर ज्यादा बल न देकर, दूसरों द्वारा उच्चारित शब्दों का अनुकरण करके भाषा का शुद्ध रूप प्रयोग करते हैं।
- प्रयोग या विश्लेषण प्रणाली – इस विधि में अध्यापक उदाहरण देकर उनकी व्याकरण तथा प्रयोग के आधार पर व्याकरण के नियमों का ज्ञान करवाता है।
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