Correct option is C
सही उत्तर:(C) उत्प्रेक्षा अलंकार
उत्तर की व्याख्या:
दी गई पंक्ति है:
'फूले कौस सकल महि छाई। जनु बरसा रितु प्रकट बुढ़ाई।'
'फूले कौस सकल महि छाई। जनु बरसा रितु प्रकट बुढ़ाई।'
इसमें काव्य की शोभा बढ़ाने के लिए उपमेय (फूलों की छाया) की तुलना उपमा (बरसात की ऋतु) से "जनु" (जैसे) शब्द के द्वारा की गई है।
"जनु बरसा रितु प्रकट बुढ़ाई" – यहाँ फूलों की छाया को वर्षा ऋतु के आने के समान कहा गया है, परंतु यह तुलना कल्पना पर आधारित है, न कि वास्तविक।
"जनु बरसा रितु प्रकट बुढ़ाई" – यहाँ फूलों की छाया को वर्षा ऋतु के आने के समान कहा गया है, परंतु यह तुलना कल्पना पर आधारित है, न कि वास्तविक।
यह कल्पनात्मक उपमा उत्प्रेक्षा अलंकार की पहचान है।
अन्य विकल्पों का विश्लेषण:
विकल्प | सही / गलत | कारण |
---|---|---|
A. श्लेष अलंकार | गलत | जब एक ही शब्द से एक से अधिक अर्थ निकलते हैं, तब श्लेष अलंकार होता है। यहाँ ऐसा नहीं है। |
B. यमक अलंकार | गलत | जब कोई शब्द एक ही रूप में दो बार प्रयुक्त होकर अलग-अलग अर्थ देता है, वह यमक होता है। यहाँ कोई शब्द दोहराया नहीं गया है। |
C. उत्प्रेक्षा अलंकार | सही | जब किसी वस्तु की किसी दूसरी वस्तु से कल्पनात्मक तुलना की जाती है और "जनु", "मनु", "इव" आदि शब्द होते हैं – वहाँ उत्प्रेक्षा होता है। |
D. रूपक अलंकार | गलत | जब उपमेय की पहचान समाप्त हो जाए और वह उपमा में पूरी तरह विलीन हो जाए (जैसे: ‘चाँद सा मुखड़ा’) – वह रूपक होता है। |
अतिरिक्त जानकारी:
अलंकार | परिभाषा | उदाहरण |
---|---|---|
उत्प्रेक्षा | कल्पना पर आधारित उपमा जिसमें ‘जनु’, ‘इव’ आदि आते हैं | “जनु सिंह पुर में पग धरा” |
रूपक | जब उपमेय को उपमा ही मान लिया जाए | “वह चाँद है” |
यमक | एक शब्द की पुनरावृत्ति अलग अर्थों में हो | “धन ही धन बिखरा पड़ा है” |
श्लेष | एक शब्द से एक से अधिक अर्थ निकले | “नवल नवल सब नवलिका देखी” |
निष्कर्ष:
उपमेय (फूलों की छाया) की उपमा (बरसात की ऋतु) से कल्पनात्मक तुलना के कारण इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
इसलिए सही उत्तर है – (C) उत्प्रेक्षा अलंकार।
इसलिए सही उत्तर है – (C) उत्प्रेक्षा अलंकार।