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भारत में मादक द्रव्यों / पदार्थों के सेवन का खतरा: कारण, प्रभाव और समाधान
प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 2: स्वास्थ्य; मानव संसाधन: से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।
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प्रसंग
- हाल ही में, भारत ने 26 द्विपक्षीय समझौते, 15 समझौता ज्ञापन और विभिन्न देशों के साथ सुरक्षा सहयोग पर दो समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, ताकि स्वापक, मादक द्रव्यों और मन:प्रभावी पदार्थों की अवैध तस्करी का मुकाबला किया जा सके।
- नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने अंतरराष्ट्रीय मादक पदार्थों की तस्करी से निपटने के लिए सूचना और आसूचना साझा करने के लिए विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ समन्वय किया है।
भारत में मादक द्रव्यों / पदार्थों का सेवन
- परिभाषा: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) मादक द्रव्यों के सेवन को शराब और अवैध मादक द्रव्यों सहित मनो-सक्रिय पदार्थों के हानिकारक या संकटपूर्ण उपयोग के रूप में परिभाषित करता है।
- व्यसन मादक द्रव्यों के सेवन का एक अग्रिम चरण है जहां व्यसनी मादक द्रव्य सेवन के लिए एक विवशता विकसित करता है, हानिकारक परिणामों के बावजूद इसके उपयोग में बना रहता है और लगभग किसी भी तरह से मादक द्रव्य प्राप्त करने का दृढ़ संकल्प प्रदर्शित करता है।
- भारत में मादक द्रव्यों के दुरुपयोग की समस्या की गंभीरता:
- सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में मादक द्रव्य व्यसनी व्यक्तियों की संख्या 7 करोड़ से अधिक है।
- फरवरी 2019 में एम्स के एक अध्ययन में पाया गया कि सर्वेक्षण के समय लगभग 5 करोड़ भारतीयों ने भांग और अफीम के उपयोग की सूचना दी थी।
- शराब सर्वाधिक दुरुपयोग किया जाने वाला मनो-सक्रिय पदार्थ है जिसके उपरांत भांग, ओपिओइड (हेरोइन, अफीम) और श्वासित्र आते हैं।
- यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग 8.5 लाख लोग मादक द्रव्य का इंजेक्शन लगाते हैं।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आत्महत्या के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में, मादक द्रव्यों के दुरुपयोग / शराब की लत के कारण कुल 7860 आत्महत्या पीड़ितों में से 7719 पुरुष थे।
भारत में मादक द्रव्यों के बढ़ते खतरे के कारण
- देश की अवस्थिति: भारत विश्व के 2 सर्वाधिक वृहद अफीम उत्पादक क्षेत्रों के मध्य स्थित है जो एक तरफ स्वर्ण त्रिभुज (थाईलैंड, म्यांमार, वियतनाम और लाओस शामिल हैं) और दूसरी तरफ स्वर्ण अर्धचंद्र (पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान शामिल हैं) है।
- सहयोगियों का दबाव और स्ट्रेस बस्टर होने के बहाने: विद्यालयों एवं महाविद्यालयों के छात्र प्रायः साथियों के दबाव में और परीक्षा के अत्यधिक दबाव में होने के बहाने मादक द्रव्यों का उपयोग करने लगते हैं.
- कानूनों का अपर्याप्त कार्यान्वयन: सीमा पार मादक द्रव्यों की तस्करी, पुलिस व्यवस्था में भ्रष्टाचार, विधि प्रवर्तन एजेंसियों की ओर से लापरवाही (उदाहरण के लिए रेव पार्टियों में ड्रग्स का उपयोग), आदि कानूनों के खराब कार्यान्वयन के कुछ उदाहरण हैं।
- पारंपरिक सामाजिक मूल्यों में बदलाव: औद्योगीकरण, शहरीकरण और प्रवास की प्रक्रियाओं ने सामाजिक नियंत्रण के पारंपरिक पद्धतियों को शिथिल कर दिया है, जिससे व्यक्ति आधुनिक जीवन के तनावों और दबावों के प्रति सुभेद्य हो गया है।
- वित्तीय समस्याएं और सामाजिक उपेक्षा: प्रायः यह पाया जाता है कि लोग अत्यधिक वित्तीय दबाव में, विशेष रूप से बेरोजगार युवा मादक द्रव्यों का सेवन करने लगते हैं।
- जब एक किशोर को परिवार में या मित्रों / अंतरंग सहयोगियों से पर्याप्त विधान एवं स्नेह प्राप्त नहीं, तो वह अक्सर उपेक्षित महसूस करता है और इससे निपटने के लिए, वे मादक द्रव्यों का उपयोग करना आरंभ कर देते हैं।
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व्यापक पैमाने पर मादक द्रव्यों के दुरुपयोग के प्रभाव
- समाज पर: लोगों, विशेष रूप से युवाओं के मध्य व्यापक पैमाने पर मादक द्रव्यों का उपयोग, परिवार, मित्रों के साथ संबंधों को दुष्प्रभावित करता है, जिससे भावनात्मक और सामाजिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
- मादक द्रव्यों के उपयोग को परिवार में महिलाओं के घरेलू शोषण में वृद्धि के साथ भी जोड़ा गया है।
- राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर: इसका परिणाम जनसांख्यिकीय लाभांश की बर्बादी है जो भारत में मादक द्रव्यों के उपयोग से व्यक्ति की मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक क्षमताओं को हानि पहुंचाता है, जिसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- स्वास्थ्य पर: मादक द्रव्यों के प्रयोग से प्रायः अनभिप्रेत चोट, दुर्घटनाएं, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और मृत्यु हो जाती है।
- आंतरिक सुरक्षा: आतंकवादी और अन्य चरमपंथी संगठन प्रायः अपनी आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन यह एकत्रित करने हेतु मादक द्रव्यों का विक्रय करते हैं, जिसके कारण, भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा एवं संप्रभुता को हानि पहुंचाते हैं।
भारत में मादक द्रव्यों के संत्रास के नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण सरकारी कदम
- नार्को-समन्वय केंद्र (एनसीओआरडी): प्रभावी मादक द्रव्य विधि प्रवर्तन के लिए गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा 2016 में स्थापित किया गया था। बेहतर समन्वय के लिए इस एनसीओआरडी प्रणाली को 2019 में जिला स्तर तक चार स्तरीय योजना में पुनर्गठित किया गया है।
- ई-पोर्टल ‘सिम्स‘ (अभिग्रहण सूचना प्रबंधन प्रणाली): एमएचए द्वारा 2019 में संपूर्ण भारत में मादक द्रव्य अभिग्रहण डेटा के डिजिटलीकरण के लिए विमोचित किया गया, जिसका उपयोग एनडीपीएस अधिनियम के अधिदेश के अंतर्गत समस्त मादक द्रव्य विधि प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा किया जाना है।
- नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस (एनडीपीएस) अधिनियम, 1985: यह किसी व्यक्ति को किसी भी स्वापक औषधि अथवा मन:प्रभावी पदार्थ के उत्पादन, प्रसंस्करण, क्रय, विक्रय, परिवहन, भंडारण और/या उपभोग करने से प्रतिबंधित करता है।
- यह भारत के बाहर के समस्त भारतीय नागरिकों और भारत में पंजीकृत जलयानों और विमानों पर समस्त व्यक्तियों पर भी लागू होता है।
- यह राजस्व आसूचना निदेशालय, सीमा सुरक्षा बल, सशस्त्र सीमा बल, भारतीय तटरक्षक बल, रेलवे सुरक्षा बल और राष्ट्रीय जांच एजेंसी को मादक द्रव्यों के अभिग्रहण करने का अधिकार प्रदान करता है।
- सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की भूमिका: यह मादक द्रव्यों की मांग में कमी के लिए नोडल मंत्रालय है जो मादक द्रव्यों के दुरुपयोग की रोकथाम के सभी पहलुओं का समन्वय और निगरानी करता है जिसमें समस्या की सीमा का आकलन, निवारक कार्रवाई, उपचार और व्यसनों के पुनर्वास सम्मिलित हैं।
- व्यसनों के लिए लगभग 350 से 400 एकीकृत पुनर्वास केंद्र (आईआरसीए) मंत्रालय के सहयोग से स्थापित हैं।
- नशामुक्ति केंद्रों को चलाने वाले गैर सरकारी संगठनों के क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण के लिए राष्ट्रीय मादक द्रव्य दुरुपयोग रोकथाम केंद्र की स्थापना की गई है।
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आगे की राह
- मादक द्रव्यों की समस्या सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था में गहरी जड़ें जमा चुकी विकृतियों की अभिव्यक्ति है। प्रणालीगत और बहुआयामी होने के कारण इसका समाधान प्रणालीगत और बहुआयामी ही होना चाहिए।
- मादक द्रव्यों की समस्या से जुड़े कलंक को कम करना: मादक द्रव्य व्यसन के शिकार लोगों के प्रति सहानुभूति रखना और उनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए।
- जागरूकता: सरकार द्वारा इस क्षेत्र में नागरिक समाजों के समन्वय के साथ किया जाना चाहिए।
- शैक्षिक पाठ्यक्रम को संशोधित किया जाना चाहिए एवं मादक द्रव्यों के व्यसन तथा इससे निपटने के तरीकों पर अध्याय सम्मिलित किया जाना चाहिए।
- मादक द्रव्य व्यसनी को गुणवत्तापूर्ण देखभाल और समाज में पुन: एकीकरण सुनिश्चित करने के लिए पुनर्वास और अन्य स्वास्थ्य की आधारभूत संरचना को सशक्त करना।