प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 2: शासन, प्रशासन और चुनौती- विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकार की नीतियां और अंतःक्षेप और उनकी रूपरेखा तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।
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प्रसंग
- हाल ही में, सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 प्रवर्तन में आए।
o यह पूर्वर्ती सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा निर्देश) नियम 2011 को प्रतिस्थापित करेगा।
o ये नियम इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) द्वारा तैयार किए गए हैं।
- केंद्र सरकार ने इन नियमों को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 87 (2) केअंतर्गत निर्मित किया है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से संबंधित प्रमुख दिशा-निर्देश:
इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय द्वारा प्रशासित किया जाना है।
- आज्ञापक सम्यक् तत्परता: सोशल मीडिया मध्यस्थों सहित अन्य मध्यस्थों द्वारा पालन किया जाना। यदि मध्यस्थ द्वारा सम्यक् तत्परता का पालन नहीं किया जाता है, तो सुरक्षित संश्रय प्रावधान उन पर लागू नहीं होंगे।
o आईटी अधिनियम 2000 की धारा 79 के अंतर्गत सुरक्षित संश्रय प्रावधान: यह कहता है कि किसी भी मध्यस्थ को किसी भी तीसरे पक्ष की सूचना, डेटा, या संचार सम्पर्क उपलब्ध कराने या उसके प्लेटफॉर्म पर पोषण करने के लिए विधिक या अन्यथा उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा।
- अनिवार्य शिकायत निवारण तंत्र: उपयोगकर्ताओं या पीड़ितों से परिवाद प्राप्त करने और उनका समाधान करने के लिए मध्यस्थों द्वारा परिवाद निवारण अधिकारी (जीआरओ) की नियुक्ति की जाएगी।
o जीआरओ चौबीस घंटे के भीतर परिवाद के प्राप्ति की सूचना देगा और इसकी प्राप्ति के पंद्रह दिनों के भीतर इसका समाधान करेगा।
- उपयोगकर्ताओं (विशेषकर महिलाओं की) की ऑनलाइन सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करना: मध्यस्थों को यौन सामग्री से संबंधित परिवादों की प्रति प्राप्ति के 24 घंटे के भीतर अभिगम को हटाने या अक्षम करने का निर्देश दिया जाता है।
o ऐसी शिकायत या तो व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अभिलेखित की जा सकती है।
- सोशल मीडिया मध्यस्थों का दो श्रेणियों में वर्गीकरण: नवाचारों को प्रोत्साहित करने एवं नवीन सोशल मीडिया मध्यस्थों के विकास को उनकी अनुपालन आवश्यकता को कम करके सक्षम बनाने हेतु।
- सोशल मीडिया मध्यस्थ और
- महत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थ
o सरकार उपयोगकर्ता आधार की सीमा को अधिसूचित करने हेतु अधिकार प्राप्त है जो सोशल मीडिया मध्यस्थों और महत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थों के मध्य अंतर करेगा।
- महत्वपूर्ण सोशल मीडियामध्यस्थों के लिए अतिरिक्त अनुपालन तंत्र: वे आज्ञापित हैं-
o एक मुख्य अनुपालन अधिकारी की नियुक्ति (अधिनियम और नियमों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी) और एक नोडल संपर्क व्यक्ति की विधि प्रवर्तन एजेंसियों के साथ 24×7 समन्वय के लिए। दोनों भारत के निवासी होंगे।
o मासिक अनुपालन रिपोर्ट प्रकाशित करने: प्राप्त परिवादों के विवरण और परिवादों पर की गई कार्रवाई के साथ-साथ सक्रिय रूप से हटाई गई सामग्री के विवरण का उल्लेख करना।
o सूचना के प्रथम प्रवर्तक का (संदेश सेवा प्रदाताओं द्वारा) अभिनिर्धारण : भारत की संप्रभुता और अखंडता से संबंधित अपराध के मामले में आवश्यक होगा।
o भारत में अनिवार्य भौतिक संपर्क पता इसकी वेबसाइट या मोबाइल ऐप या दोनों पर प्रकाशित करना।
o स्वैच्छिक उपयोगकर्ता सत्यापन तंत्र: उन उपयोगकर्ताओं को प्रदान किया जाना जो अपने विवरण को सत्यापित करना चाहते हैं।
हे उपयोगकर्ताओं को महत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थों द्वारा उनकी सामग्री को हटाने/अक्षम करने का विरोध करने के लिए उपयुक्त तंत्र प्रदान किया जाना है।
o महत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थों द्वारा उपयोगकर्ताओं को उनकी सामग्री को हटाने/अशक्त करने का विरोध करने के लिए उपयुक्त तंत्र प्रदान किया जाना है।
- गैर कानूनी सूचना/फर्जी समाचारों को हटाना: मध्यस्थों द्वारा न्यायालय के आदेश के रूप में या किसी अधिकृत सरकारी अधिकारी द्वारा वास्तविक जानकारी प्राप्त करने के पश्चात।
Important Prelims Articles – 13 July 2021
सोशल मीडिया मध्यस्थों से संबंधित नियमों से जुड़े मुद्दे:
- असहमति के मामले में मध्यस्थों को उनके सुनवाई के अधिकार से वंचित करना: क्योंकि सरकार से आदेश प्राप्त होने पर बिचौलियों से 36 घंटे के भीतर सामग्री को हटाने की अपेक्षा की जाती है।
- वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन: जो संविधान के अनुच्छेद 19 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार है क्योंकि ये नियम सरकार को ऑनलाइन आपत्तिजनक भाषण के अंतिम निर्णायक के रूप में अभिनिर्धारित करते हैं।
- सूचना के प्रवर्तक का पता ज्ञात करने के साथ समस्या: पहले, उपयोगकर्ता सामग्री और संदेशों के आरंभ से अंत तक कूट लेखन के परिणामस्वरूप मध्यस्थों तक अधिगम का अभाव होता था, इसलिए, सरकार से उन्मुक्ति इन सामग्रियों तक अधिगम प्रदान करने के लिए निर्देशित करती है।
o निजता के अधिकार का उल्लंघन: पता ज्ञात करने की अनिवार्यता को लागू करके, जो इस उन्मुक्ति को समाप्त कर देगा, जिससे इन वार्तालापों की गोपनीयता की सुरक्षा क्षीण हो जाएगी।
- निजता के लिए विधिक सुरक्षा का अभाव: चूंकि देश में एक समर्पितनिजता कानून नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप इन नियमों के छद्मवेश में नागरिकों की निजता का निर्बाध उल्लंघन हो सकता है।
- अत्यधिक अनुपालन बोझ: विशेष रूप से छोटे और नए प्लेटफार्मों पर इस क्षेत्र में नए खिलाड़ियों के नवाचार और विकास में बाधा आ सकती है।
आगे की राह:
- मतभेदों को समायोजित करना: नियमों के निर्माण के समय सभी संबंधित हितधारकों की भागीदारी और विचार-विमर्श सुनिश्चित करके।
- देश में निजताके बुनियादी ढांचे को सशक्त बनाना: एक व्यापक डेटा सुरक्षा कानून अधिनियमित कर। इस संदर्भ में, व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को पारित करने में गति लाने की आवश्यकता है।
- . वैधानिक समर्थन प्रदान करना: विशेषज्ञों और हितधारकों के साथ इस मुद्दे पर व्यापक रूप से चर्चा और विचार-विमर्श करके और इसे विधायी जांच के लिए संसदीय मंच पर रखना। यह विशेष रूप से सभी हितधारकों और सामान्य रूप से व्यक्तियों के मध्य इसकी स्वीकार्यता में भी वृद्धि करेगा।