प्रसंग
- हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने उपभोक्ता परिवाद निवारण आयोगों में रिक्तियों को भरने के लिए केंद्र एवं राज्यों को आठ सप्ताह का समय दिया।
- न्यायालय ने केंद्र से 2019 के उपभोक्ता संरक्षण (सीपी) अधिनियम पर एक विस्तृत “विधायी प्रभाव अध्ययन“ करने के लिए भी कहा।
- न्यायालय वाद (मुकदमे) पर इस विधान के प्रभाव को जानना चाहती है।
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एससी द्वारा इंगित मुद्दा
- उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों में बढ़ती रिक्तियों को भरने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों की ओर से निष्ठा का अभाव।
- यह आम नागरिकों को न्याय से वंचित करता है और उन्हें परिवाद दर्ज करने से विरत करता है जो कि सीपी अधिनियम 2019 की भावना के विरुद्ध है।
- उपभोक्ता परिवाद आयोगों के कार्य संचालन हेतु प्रशासनिक बुनियादी ढांचे, सुविधाओं, कर्मचारियों, सदस्यों के लिए विधायी भावना की व्याख्या करने हेतु सरकार की ओर से पहल का अभाव।
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अधिनियम की मुख्य विशेषताएं
- उपभोक्ता को परिभाषित करता है: यह किसी व्यक्ति को एक उपभोक्ता के रूप में परिभाषित करता है जो सेवाओं का लाभ प्राप्त करता है अथवा प्रतिफल के लिए स्व-उपयोग हेतु कोई भी वस्तु क्रय करता है।
- अपवर्जित: एक व्यक्ति जो पुनर्विक्रय के लिए एक वस्तु अथवा वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए एक वस्तु अथवा सेवा प्राप्त करता है।
- आच्छादन: इसने ऑफलाइन, और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों, टेलीशॉपिंग, मल्टी-लेवल मार्केटिंग, या डायरेक्ट सेलिंग सहित सभी तरीकों से लेनदेन हेतु अपने आच्छादन (कवरेज) का विस्तार किया है।
- उपभोक्ता अधिकारों को परिभाषित करता है: यह छह उपभोक्ता अधिकारों का प्रावधान करता है एवं वे हैं-
- सुरक्षा का अधिकार।
- सूचना पाने का अधिकार।
- चयन का अधिकार।
- सुनवाई का अधिकार।
- निवारण की मांग करने का अधिकार।
- उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार।
- परिवाद निवारण तंत्र: यह जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता परिवाद निवारण आयोग (सीडीआरसी) का प्रावधान करता है। सीडीआरसी का क्षेत्राधिकार-
- जिला सीडीआरसी: 1 करोड़ मूल्य तक की वस्तुओं एवं सेवाओं के परिवाद।
- राज्य सीडीआरसी: 1 करोड़ से अधिक किंतु 10 करोड़ से कम मूल्य की वस्तुओं और सेवाओं के परिवाद।
- राष्ट्रीय सीडीआरसी: 10 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की वस्तुओं और सेवाओं के परिवाद के लिए।
- राष्ट्रीय सीडीआरसी के आदेश के विरुद्ध अपील सर्वोच्च न्यायालय में निहित है।
- केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए): उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, संरक्षित करने एवं प्रवर्तित करने हेतु केंद्र सरकार द्वारा स्थापित किया जाएगा। इसके मुख्य कार्य हैं-
- विनियमन: उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार प्रथाओं और भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों का।
- अनुसंधान एवं अन्वेषण स्कंध: सीसीपीए का अपना अन्वेषण स्कंध है, जिसका नेतृत्व एक महानिदेशक करते हैं, जो ऐसे उल्लंघनों का अन्वेषण अथवा अनुसंधान कर सकते हैं।
- परिवाद दर्ज करने हेतु आधार: उपभोक्ता निम्नलिखित के संबंध में सीडीआरसी में परिवाद दर्ज कर सकता है:
- अनुचित या प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार;
- दोषपूर्ण वस्तुएं अथवा सेवाएं;
- अधिक मूल्य लेना अथवा भ्रामक मूल्य; तथा
- विक्रय हेतु वस्तु अथवा सेवाओं की पेशकश जो जीवन एवं सुरक्षा के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकती है।
- उत्पाद दायित्व: निर्माता अथवा उत्पाद सेवा प्रदाता या उत्पाद विक्रेता में निहित होता है, जिसे दोषपूर्ण उत्पाद या सेवाओं में कमी के कारण हुई क्षति अथवा हानि की भरपाई के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा।
- मध्यस्थता के माध्यम से शीघ्र निवारण का प्रावधान: उपभोक्ता आयोगों द्वारा जहां शीघ्र निपटान की गुंजाइश है और पक्ष इसके लिए सहमत हैं।
- उपभोक्ता मध्यस्थता प्रकोष्ठों को एक ही उद्देश्य के लिए प्रत्येक स्तर पर संबंधित उपभोक्ता आयोगों से संबद्ध किया जाना है।
- मध्यस्थता के माध्यम से निवारण के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती है।
संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021