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वाक्य – शुद्धि
वाक्य रचना
भाषा हमारी अभिव्यक्ति का माध्यम है। भाषा में ध्वनि से शब्द, शब्द से पद, पद से वाक्यांश एवं वाक्यांश से पूर्ण वाक्य की रचना होती है। अत: संरचना की दृष्टि से पदों का सार्थक समूह ही वाक्य कहलाता है। वाक्य रचना में संज्ञा, सर्वनाम, विशेष क्रिया, अव्यय आदि से सम्बन्धित या अन्य प्रकार की अशुद्धियाँ हो सकती है। प्रकार की त्रुटियों को उदाहरण सहित दिया गया है, जो निम्न प्रकार हैं –
संज्ञा सम्बन्धी अशुद्धियाँ
वाक्य संरचना में संज्ञा सम्बन्धी अशुद्धियाँ प्राय: दो प्रकार की होती हैं- अनावश्यक संज्ञा शब्दों का प्रयोग तथा अनुपयुक्त संज्ञा अनुपयुक्त संज्ञा शब्द का प्रयोग।
जैसे–
- आपके प्रश्न का समाधान मिल गया। (उत्तर)
- हमारे प्रदेश के मनुष्य परिश्रमी हैं। (लोग)
- प्रेम करना तलवार की नोक पर चलना है। (धार पर)
- सफलता के मार्ग में संकट आते ही है। (बाधाएँ)
- तुमने इस पुस्तक का कितना भाग पढ़ लिया? (अंश)
सर्वनाम सम्बन्धी अशुद्धियाँ
संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द सर्वनाम कहलाते हैं। वाक्य में उनका प्रयोग करते समय उचित सावधानी रखनी चाहिए। हिन्दी में सर्वनाम सम्बन्धी अनेक प्रकार की अशुद्धियाँ देखी जाती हैं।
जैसे –
- उसने वहाँ जाना है। (उसे)
- मैंने यह नहीं करना है (मुझे)
- कहिए, आपको मेरे से क्या काम है? (मुझसे)
- मैं तेरे को बता दूंगा। (तुम्हें)
- कोई ने यह करने को बोला था। (किसी, कहा)
विशेषण सम्बन्धी अशुद्धियाँ
विशेषणों का अनावश्यक, अनुपयुक्त अथवा अनियमित प्रयोग करने से वाक्य में अनेक अशुद्धियाँ आ जाती हैं, जिनका निराकरण करना आवश्यक है।
जैसे –
- आगामी दुर्घटना के बारे में मुझे कुछ भी पता न था। (भावी)
- आप लोग अपनी राय दें। (अपनी-अपनी)
- वहाँ दो दिवसीय गोष्ठी थी। (द्वि-दिवसीय)
- प्रत्येक बालक को चार-चार केले दे दें। (चार)
- आकाश में दीर्घकाय बादल दिखाई दिया। (विशालकाय)
क्रिया सम्बन्धी अशुद्धियाँ
वाक्य में ‘अन्वय’ का होना परम आवश्यक है। अन्वय का तात्पर्य है कर्त्ता और क्रिया तथा कर्म और क्रिया का पारस्परिक समन्वय। किन स्थितियों में कर्ता के अनुरूप क्रिया होगी और किन स्थितियों में क्रिया कर्म के अनुरूप होगी, इसका ध्यान रखा जाना चाहिए।
जैसे-
- पत्र मेज पर डाल दो। (रख दो)
- कुलपति ने उपाधियाँ वितरित की। (प्रदान)
- यह अपराधी दण्ड देने योग्य है। (पाने)
- वह कमीज डालकर सो गया। (पहनकर)
- जब से नौकरी पाई है, दिमाग सातवें आसमान पर है। (मिली)
अव्यय सम्बन्धी अशुद्धियाँ
(केवल, मात्र, भर, ही)
इन अव्ययों के अर्थों में बहुत कुछ समानता है। अतः इनमें से किन्हीं दो शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, जैसे–
- एकमात्र दो उपाय हैं। (केवल)
- यह पत्र आपके अनुसार है। (अनुरूप)
- यह बात कदापि भी सत्य नहीं हो सकती। (कदापि)
- वह अत्यन्त ही सुन्दर है। (अत्यधिक)
- सारे देशभर में अकाल है। (सारे देश)
कारक सम्बन्धी अशुद्धियाँ
वाक्यों में कारक सम्बन्धी अशुद्धियाँ विविध प्रकार की होती हैं। अनुपयुक्त परसर्ग का प्रयोग करने से वाक्य में शिथिलता आती है और अर्थ समझने में बाधा पड़ती है। परसर्गों के समुचित प्रयोग में पर्याप्त सावधानी अपेक्षित है।
जैसे–
- हमने यह काम करना है। (हमें)
- मैने राम को पूछा। (से)
- सब से नमस्ते। (को)
- जनता के अन्दर असंतोष फैल गया। (में)
- नौकर का कमीज। (की)
लिंग सम्बन्धी अशुद्धियाँ
वाक्य में लिंग सम्बन्धी अशुद्धियाँ भी कई प्रकार की होती हैं। वाक्य में स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, बहुवचन, एकवचन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
जैसे–
- रामायण का टीका। (की)
- देश की सम्मान की रक्षा करो। (के)
- लड़की ने जोर से हँस दी। (दिया)
- दंगे में बालक, युवा, नर-नारी सब पकड़ी गयी। (पकड़े गये)
- परीक्षा की प्रणाली बदलना चाहिए। (बदलनी)
पदक्रम सम्बन्धी अशुद्धियाँ
- तुम जाओगे क्या? (क्या तुम जाओगे?)
- छात्राओं ने मुख्य अतिथि को एक फूलों (फूलों की एक माला) की माला पहनाई।
- भीड़ में पाँच दिल्ली के व्यक्ति भी थे। (दिल्ली के पाँच व्यक्ति)
- कई कम्पनी के कर्मचारियों ने प्रदर्शन (कम्पनी के कई कर्मचारियों) किया।
द्विरुक्ति/पुनरुक्ति सम्बन्धी अशुद्धियाँ
- नौजवान युवकों को दहेज प्रथा का ” (नौजवानों/युवकों) विरोध करना चाहिए।
- आपका भवदीय। (आपका/भवदीय)
- प्रातःकाल के समय टहलना (प्रातःकाल/प्रातः समय) चाहिए।
- राजस्थान का अधिकांश भाग (अधिकांश/अधिक भाग) रेतीला है।
- वे परस्पर एक-दूसरे से उलझ (परस्पर/एक-दूसरे से) पड़े।
अनावश्यक शब्द प्रयोग सम्बन्धी अशुद्धियाँ
- इस समय सीता की आयु सोलह वर्ष है। (उम्र/अवस्था)
- धनीराम की सौभाग्यवती पुत्री का विवाह कल होगा। (सौभाग्यकांक्षिणी)
- कर्मवान व्यक्ति को सफलता अवश्य मिलती है। (कर्मवीर)
- वह नित्य गाने की कसरत करता है। (का अभ्यास / का रियाज)
- सोहन नित्य दण्ड मारता है। (पेलता)
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