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Hindi Questions For DSSSB Exam : 10th August 2018 (Answers)

Hindi Questions For DSSSB Exam : 10th August 2018 (Answers)_30.1
हिंदी भाषा CTET परीक्षा का एक महत्वपूर्ण भाग है इस भाग को लेकर परेशान होने की जरुरत नहीं है .बस आपको जरुरत है तो बस एकाग्रता की. ये खंड न सिर्फ CTET Exam (परीक्षा) में एहम भूमिका निभाता है अपितु दूसरी परीक्षाओं जैसे UPTET, KVS,NVS DSSSB आदि में भी रहता है, तो इस खंड में आपकी पकड़, आपकी सफलता में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है.CTET ADDA आपके इस चुनौतीपूर्ण सफ़र में हर कदम पर आपके साथ है।
Directions (1-5): नीचे दिए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
भाषा का प्रयोग दो रूपों में किया जा सकता है-एक तो सामान्य जिससे लोक में व्यवहार होता है तथा दूसरा रचना के लिए जिसमें प्रायः अलंकारिक भाषा का प्रयोग किया जाता है। राष्ट्रीय भावना के अभ्युदय एवं विकास के लिए सामान्य भाषा एक प्रमुख तत्व है। मानव समुदाय अपनी संवेदनाओं, भावनाओं एवं विचारों की अभिव्यक्ति हेतु भाषा का साधन अपरिहार्यतः अपनाता है। इसके अतिरिक्त उसके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है। दिव्य-ईश्वरीय आनंदानुभुति के संबंध में भले ही कबीर ने ‘गूंगे केरी शर्करा’ उक्ति का प्रयोग किया था, पर इससे उनका लक्ष्य शब्द-रूप भाषा के महत्व को नकारना नहीं था। उन्होंने भाषा को ‘बहता नीर’ कह कर भाषा की गरिमा प्रतिपादित की थी। विद्वानों की मान्यता है कि भाषा तत्व राष्ट्रहित के लिए अत्यावश्यक है। जिस प्रकार किसी एक राष्ट्र के भू-भाग को भौगोलिक विविधताएँ तथा उसके पर्वत, सागर, सरिताओं आदि की बाधाएँ उस राष्ट्र के निवासियों के परस्पर मिलने-जुलने में अवरोध सिद्ध हो सकती है। उसी प्रकार भाषागत विभिन्नता से भी उनके पारस्परिक सम्बन्धों में निर्बाधता नहीं रह पाती। आधुनिक विज्ञानयुग में यातायात एवं संचार के साधनों की प्रगति से भौगोलिक-बाधाएँ अब पहले की तरह बाधित नहीं करती। इसी प्रकार यदि राष्ट्र की एक सम्पर्क भाषा का विकास हो जाए तो पारस्परिक सम्बन्धों के गतिरोध बहुत सीमा तक समाप्त हो सकते हैं।

मानव-समुदाय को एक जीवित-जाग्रत एवं जीवन्त शरीर की संज्ञा दी जा सकती है। उसका अपना एक निश्चित व्यक्तित्व होता है। भाषा अभिव्यक्ति के माध्यम से इस व्यक्तित्व को साकार करती है, उसके अमूर्त मानसिक वैचारिक स्वरूप को मूर्त एवं बिम्बात्मक रूप प्रदान करती है। मनुष्यों के विविध समुदाय हैं, उनकी विविध भावनाएँ हैं, विचारधाराएँ हैं, संकल्प एवं आदर्श हैं, उन्हें भाषा ही अभिव्यक्त करने में सक्षम होती है। साहित्य, शस्त्र, गीत-संगीत आदि में मानव-समुदाय अपने आदर्शो, संकल्पनाओं, अवधारणाओं एवं विशिष्टताओं को वाणी देता है, पर क्या भाषा के अभाव में काव्य, साहित्य, संगीत आदि का अस्तित्व सम्भव है? वस्तुतः ज्ञानराशि एवं भावराशि का अपार संचित कोष जिसे साहित्य का अभिधान दिया जाता है, शब्द रूप ही तो है। अतः इस सम्बन्ध में वैमत्य की किंचित् गुंजाइश नहीं है कि भाषा ही एक ऐसा साधन है जिससे मनुष्य एक-दूसरे के निकट आ सकते हैं, उनमें परस्पर घनिष्ठता स्थापित हो सकती है। यही कारण है कि एक भाषा बोलने एवं समझने वाले लोग परस्पर एकानुभूति रखते हैं, उनके विचारों में ऐक्य रहता है। अतः राष्ट्रीय भावना के विकास के लिए भाषा तत्व परम आवश्यक है।
Q1. उपर्युक्त अनुच्छेद का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक है-
(a) राष्ट्रीयता और भाषा-तत्व 
(b) बहता नीर भाषा का
(c) व्यक्तित्व-विकास और भाषा
(d) साहित्य 
Q2. मानव के पास अपने भावों, विचारों, आदर्शो आदि को सुरक्षित रखने के सशक्त माध्यम है-
(a) भाषा शैली 
(b) साहित्य और कला 
(c) साहित्य शास्त्र 
(d) व्यक्तित्व एवं चरित्र 
Q3. ‘भाषा बहता नीर’ से आशय है-
(a) लालित्यपूर्ण भाषा 
(b) साधुक्कड़ी भाषा 
(c) सरल-प्रवाहमयी भाषा
(d) तत्समनिष्ठ भाषा 
Q4. राष्ट्रीय भावना के विकास के लिए भाषा-तत्व आवश्यक है, क्योंकि-
(a) वह ज्ञान राशि का अपार भंडार है
(b) वह शब्दरूपा है और उसमें साहित्य सर्जना संभव है
(c) वह मानव-समुदाय की विचाराभिव्यक्ति का साधन है 
(d) वह मानव-समुदाय में एकानुभूति और विचाराभिव्यक्ति का साधन है 
Q5. ‘गूंगे केरी शर्करा’ से कबीर का अभिप्रायहै कि ब्रह्मानंद की अनुभूति-
(a) अनिर्वचनीय होती है
(b) अत्यन्त मधुर होती है 
(c) मौनव्रत से प्राप्त होती है 
(d) अभिव्यक्ति के लिए कसमसाती है 
Direction (6-10): नीचे दिए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

समय के साथ-साथ जीवन के मूल्य एवं (6) भी बदलते रहते हैं। मध्यकालीन संसार में जो सत्य था, नैतिकतापूर्ण था, युक्तियुक्त था, आज वह वैसा नहीं है। प्राचीन (7) की पवित्रता पर समय की धूल जम गई है। प्रयोग ने उसे दुर्लभ बना दिया है और संसार में उत्पन्न नवीन परिस्थितियों ने उसे असामाजिक और अनुपयुक्त ठहरा दिया है। इसमें न तो आश्चर्यचकित होने का कोई कारण है और न निराश होने का। प्रत्येक युग का (8) नया होता है और प्रत्येक युग में सत्य नये परिधान में सामने आता है। उससे अस्मित होने की बजाय उसका स्वागत करना ही श्रेयस्कर और लाभदायक होता है। आधुनिक युग में जो अनेक मौलिक परिवर्तन हुए हैं, उनमें प्रमुख है सम्पत्ति-धारण की विचारधारा। आज तक (9) का स्वामित्व-व्यक्तियों या परिवारों के हाथ में था, अधिक से अधिक यह होता था कि कुछ व्यक्ति या परिवार मिलकर किसी उद्योग की स्थापना कर लेते थे, लेकिन ऐसे उद्योगों में प्रत्येक व्यक्ति अथवा परिवार अपने-अपने भाग का स्वामी होता था। आज इस धारणा के बिल्कुल विपरीत एक नई धरणा जागृत हो गई है कि संपत्ति पर व्यक्ति का नहीं, राष्ट्र का अधिकार होना चाहिए। उद्योग-धंधो और कृषि का संचालन एवं नियंत्रण राष्ट्रीय सरकार को करना चाहिए। उससे होने वाला लाभ कुछ गिने-चुने व्यक्तियों की तिजोरी का (10) न बनकर समूचे राष्ट्र में बसने वाले नागरिकों के हितार्थ प्रयोग में लगाया जाना चाहिए।
Q6.
(a) सामाजिक परिवेश 
(b) परिवेश 
(c) आदर्श 
(d) वातावरण 

Q7.
(a) सत्य 
(b) असत्य 
(c) साहित्य 
(d) इतिहास 

Q8.
(a) समाज 
(b) साहित्य 
(c) परिवेश 
(d) परिस्थिति 

Q9.
(a) जमीन 
(b) सोना 
(c) सम्पत्ति 
(d) स्त्री 

Q10.
(a) श्रृंगार 
(b) आकार 
(c) रूप 
(d) अधिकार 
Answers

S1. Ans. (a)

S2. Ans. (b)

S3. Ans. (c)

S4. Ans. (d)

S5. Ans. (a)

S6. Ans. (c)

S7. Ans. (a)

S8. Ans. (c)

S9. Ans. (b)

S10. Ans. (a)