
Q1. जहाँ एक व्यंजन की आवृत्ति एक या अनेक बार हो, वहाँ होता है–
(a) छेकानुप्रास अलंकार
(b) वृत्यानुप्रास अलंकार
(c) लाटानुप्रास अलंकार
(d) यमक अलंकार
Q2. जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना की जाए, वहाँ होता है –
(a) उपमा अलंकार
(b) रूपक अलंकार
(c) उत्प्रेक्षा अलंकार
(d) अतिशयोक्ति अलंकार
Q3. ‘चिरजीवौ जोरी जुरे, क्यों न सनेह गंभीर।
को घटि ये वृषभानुजा’ वे हलधर के वीर॥
में कौन-सा अलंकार है ?
(a) वक्रोक्ति
(b) यमक
(c) श्लेष
(d) अनुप्रास
Q4. ‘पीपर पात सरिस मन डोला’ में मन क्या है?
(a) उपमेय
(b) उपमान
(c) वाचक
(d) धर्म
Q5. ‘पाँय महावर देन को, नाइन बैठी आय।
फिर-फिर जानि महावरी, एँडी मीड़त जाय।’
में कौन-सा अलंकार है ?
(a) अतिशयोक्ति
(b) भ्रांतिमान
(c) संदेह
(d) प्रतीप
Q6. ‘राम हृदय जाके नहीं, विपति सुमंगल ताहिं।
राम हृदय जाके, नहीं विपति सुमंगल ताहि॥’
इसमें कौन-सा अनुप्रास है ?
(a) श्रुत्यानुप्रास
(b) वृत्यानुप्रास
(c) लाटानुप्रास
(d) छेकानुप्रास
Q7. ‘दृग उरझत टूटत कुटुम्ब, जुरत चतुर चित प्रीत’ में कौन-सा अलंकार है ?
(a) विरोधाभास
(b) असंगति
(c) विभावना
(d) व्यतिरेक
Q8. जहाँ वर्गों की आवृत्ति बार-बार होती है उसमें कौन सा अलंकार होता है ?
(a) यमक
(b) श्लेष
(c) अनुप्रास
(d) उत्प्रेक्षा
Q9. निम्न में से कौन अर्थालंकार है ?
(a) श्लेष
(b) यमक
(c) वक्रोक्ति
(d) रूपक
Q10. ‘बिनु पग चले सुनै बिनु काना’ इसमें कौन-सा अलंकार है ?
(a) असंगति
(b) श्लेष
(c) रूपक
(d) वक्रोक्ति
Solutions
S1. Ans.(b)
Sol.छेकानुप्रास अलंकार क्या होता है :- जहाँ पर स्वरुप और क्रम से अनेक व्यंजनों की आवृति एक बार हो वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है।
जैसे :- रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै।
साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई दई।।
वृत्यानुप्रास अलंकार क्या होता है :- जब एक व्यंजन की आवर्ती अनेक बार हो वहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार कहते हैं।
जैसे :- “चामर-सी, चन्दन – सी, चंद – सी,
चाँदनी चमेली चारु चंद-सुघर है।”
लाटानुप्रास अलंकार क्या होता है :- जहाँ शब्द और वाक्यों की आवर्ती हो तथा प्रत्येक जगह पर अर्थ भी वही पर अन्वय करने पर भिन्नता आ जाये वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है।
जैसे :- तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ,
तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ।
S2. Ans.(c)
S3. Ans.(c)
S4. Ans.(a)
Sol.उपमा अलंकार
S5. Ans.(b)
S6. Ans.(c)
S7. Ans.(c)
Sol.जब किसी वस्तु का वर्णन करने पर विरोध न होते हुए भी विरोध का आभाष हो वहाँ पर विरोधाभास अलंकार होता है। जैसे :- ‘आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के। शून्य हूँ जिसमें बिछे हैं पांवड़े पलकें।’
जहाँ आपतात: विरोध दृष्टिगत होते हुए, कार्य और कारण का वैयाधिकरन्य रणित हो वहाँ पर असंगति अलंकार होता है। जैसे :- “ह्रदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।”
जहाँ पर कारण के न होते हुए भी कार्य का हुआ जाना पाया जाए वहाँ पर विभावना अलंकार होता है। जैसे :- बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।
जहाँ उपमान की अपेक्षा अधिक गुण होने के कारण उपमेय का उत्कर्ष हो वहाँ पर व्यतिरेक अलंकार होता है। जैसे :- का सरवरि तेहिं देउं मयंकू। चांद कलंकी वह निकलंकू।।
S8. Ans.(c)
S9. Ans.(d)
Sol.अर्थालंकार के भेद:
उपमा अलंकार
रूपक अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकार
S10. Ans.(a)