Directions (1-10): नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
तत्ववेत्ता शिक्षाविदों के अनुसार विद्या दो प्रकार की होती है। प्रथम वह है, जो हमें जीवन-यापन के लिए अर्जन करना सिखाती है और द्वितीय वह, जो हमें जीना सिखलाती है। इनमें से एक का अभाव भी जीवन को निरर्थक बना देता है। बिना कमाए, जीवन-निर्वाह संभव नहीं। कोई भी नहीं चाहेगा कि वह परावलम्बी हो, माता-पिता, परिवार के किसी सदस्य, जाति या समाज पर आश्रित रहे। ऐसी विद्या से विहीन व्यक्ति का जीवन दूभर हो जाता है। वह दूसरों के लिए भार बन जाता है। साथ ही दूसरी विद्या के बिना सार्थक जीवन नहीं जिया जा सकता। बहुत अर्जित कर लेने वाले व्यक्ति का जीवन यदि सुचारू रूप से नहीं चल रहा, उसमें यदि वह जीवन शक्ति नहीं है, जो उसके अपने जीवन को तो सत्पथ पर अग्रसर करती ही है, साथ ही वह अपने समाज, जाति एवं राष्ट्र के लिए भी मार्गदर्शन करती है, तो उसका जीवन भी मानव जीवन का अभिधान नहीं पा सकता। वह भारवाही गर्दभ बन जाता है या पूँछ-सींग विहीन पशु कहा जाता है। वर्तमान भारत में पहली विद्या का प्रायः अभाव दिखाई देता है, परन्तु दूसरी विद्या का रूप भी विकृत ही है, क्योंकि न तो स्कूलों-कॉलेजों में शिक्षा प्राप्त करके निकला छात्र जीविकोपार्जन के योग्य बन पाता है और न ही वह उन संस्कारों से युक्त हो पाता है, जिन्हें ‘जीने की कला’ की संज्ञा दी जाती है, जिनसे व्यक्ति ‘कु’ से ‘सु’ बनता है, सुशिक्षित, सुसभ्य और सुसंस्कृत कहलाने का अधिकारी होता है।
वर्तमान शिक्षा पद्धति के अन्तर्गत हम जो विद्या प्राप्त कर रहे हैं, उसकी विशेषताओं को सर्वथा नकारा भी नहीं जा सकता है। यह शिक्षा कुछ सीमा तक हमारे दृष्टिकोण को विकसित भी करती है, हमारी मनीषा को प्रबुद्ध बनाती है तथा भावनाओं को चेतन करती है, किन्तु कला, शिल्प, प्रौद्योगिकी आदि की शिक्षा नाम मात्र की होने के फलस्वरूप इस देश के स्नातक के लिए जीविकार्जन टेढ़ी खीर बन जाता है और बृहस्पति बना युवक नौकरी की तलाश में अर्जियाँ लिखने में ही अपने जीवन का बहुमूल्य समय बर्बाद कर देता है। जीवन के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए यदि शिक्षा के क्रमिक सोपानों पर विचार किया जाए तो भारतीय विद्यार्थी को सर्वप्रथम इस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए जो आवश्यक हो, दूसरी जो उपयोगी हो, और तीसरी जो हमारे जीवन को परिष्कृत एवं अलंकृत करती हो। ये तीनों सीढ़ियाँ एक के बाद एक आती हैं। इनमें व्यक्तिक्रम नहीं होना चाहिए। इस क्रम में व्याघात आ जाने से मानव-जीवन का चारू-प्रासाद खड़ा करना असभ्भव है। यह तो भवन की छत बनाकर नींव बनाने के सदृश है। वर्तमान भारत में शिक्षा की अवस्था देखकर ऐसा ही प्रतीत होता है। प्राचीन भारतीय दार्शनिकों ने ‘अन्न’ से ‘आनन्द’ की ओर बढ़ने को जो ‘विद्या का सार’ कहा था, वह सर्वथा समीचीन ही था।
Q1. मानव की संज्ञा पाने के लिए निम्नांकित विद्या अभीष्ट है-
(a) अर्जनकारी विद्या
(b) शिल्प और प्रौद्योगिकी विद्या
(c) जीवन-यापन के लिए उपयोगी विद्या
(d) जीना सिखलाने वाली विद्या
(e) इनमें से कोई नहीं
Q2. शिक्षा के सोपानों का क्रम इस प्रकार होना चाहिए-
(a) परिष्कार, उपयोगिता एवं आवश्यकता
(b) आवश्यकता, आविष्कार एवं उपयोगिता
(c) आवश्यकता, उपयोगिता एवं परिष्कार
(d) उपयोगिता, आवश्यकता एवं परिष्कार
(e) इनमें से कोई नहीं
Q3. अर्जनकारी विद्या इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वह व्यक्ति को सिखाती है-
(a) धनार्जन के साधन
(b) जीवन-यापन की विधि
(c) जीवन-उत्कर्ष की विधि
(d) ज्ञानार्जन के ढंग
(e) इनमें से कोई नहीं
Q4. प्रत्येक व्यक्ति जीवन-यापन के लिए स्वावलम्बी होना पसन्द करता है क्योंकि-
(a) वह जीने की कला सीखना चाहता है
(b) वह अपने जीवन को दूभर नहीं बनाना चाहता
(c) वह अपने सामाजिक ऋण से मुक्त होना चाहता है
(d) वह अपने परिवार के प्रति कृतज्ञ होता है
(e) इनमें से कोई नहीं
Q5. ‘कु’ से ‘सु’ बनने में यह आशय सन्निहित है-
(a) दुर्जन से सुजन बनना
(b) दुष्कर से सुकर बनना
(c) दुर्लभ से सुलभ बनना
(d) दुर्गम से सुगम बनना
(e) इनमें से कोई नहीं
Q6. मानव-जीवन की सर्वातोमुखी उन्नति का लक्ष्य क्या है?
(a) मनुष्य की भौतिक साधन सम्पन्नता
(b) मानव-जीवन की सम्पन्नता एवं परिष्कार
(c) सहज सुख-सुविधा सम्पन्न जीवन
(d) मनुष्य का स्वावलम्बन
(e) इनमें से कोई नहीं
Q7. ‘भारवाही गर्दभ’ पदबन्ध से अभिप्रेत क्या है?
(a) धनार्जन में अक्षम पुरूष
(b) अध्ययन में प्रवृत्त विद्यार्थी
(c) बोझा ढोने वाला श्रमिक
(d) जीने की कला से रहित साक्षर
(e) इनमें से कोई नहीं
Q8. उपर्युक्त अनुच्छेद का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक निम्नलिखित में कौन है?
(a) वर्तमान भारतीय शिक्षा
(b) शिक्षा के सोपान
(c) जीने की कला
(d) मानव जीवन की सार्थकता
(e) इनमें से कोई नहीं
Q9. ‘अन्न’ से ‘आनन्द’ की ओर बढ़ने में ‘विद्या का सार’ इसलिए निहित हैं क्योंकि ऐसी विद्या मनुष्य का-
(a) आध्यात्मिक विकास करती है
(b) सर्वांगीण विकास करती है
(c) भौतिक विकास करती है
(d) सामाजिक विकास करती है
(e) इनमें से कोई नहीं
Q10. ‘जीने के लिए अर्जन करना सिखाने वाली’ और ‘जीना सिखलाने वाली’ विद्याओं के पारस्परिक सम्बन्ध में निम्नांकित तथा सर्वाधिक उपयुक्त है-
(a) ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं
(b) ये दोनों विरोधी विधाएं हैं
(c) इन दोनों में पूर्वापर सम्बन्ध हैं
(d) इन दोनों में अन्योन्याश्रित संबंध हैं
(e) इनमें से कोई नहीं
Solutions:
S1. Ans. (d)
S2. Ans. (c)
S3. Ans. (d)
S4. Ans. (b)
S5. Ans. (a)
S6. Ans. (b)
S7. Ans. (d)
S8. Ans. (b)
S9. Ans. (b)
S10. Ans. (a)